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कहानी- कोरोना 4 ( Story Series- Corona 4)

"याद मत दिला. मुंबई फंसी रह जाती, तो भूखों मर जाती. मैं तो आज भी आन्या को बताती हूं कि तब हर घर बिग बॉस का घर बन गया था. जो बाहर निकल गया, वो हार गया. जो अंदर क़ैद रह गया, वो विजेता बन गया. अंततः हम सभी विजेता बनकर बाहर निकले थे. पर उसके बाद डेढ़ महीने जयपुर घर पर रही, तो पक्की गृहिणी बनकर निकली." काव्या उन पलों को याद कर मुस्कुरा रही थी.

        ... "पूरा दिन काम में या फिर खेलने, बतियाने में निकल जाता था, पर रात को टीवी पर समाचार देखते, तो डर का भूत फिर तन-मन पर हावी हो जाता." दादी की आंखों में फिर दहशत का साया लहरा उठा था. "हां, पर इतना भय और दहशत आवश्यक भी था. उस दौरान पुलिस का रवैया भी मिलजुला-सा हो गया था. एक ओर वे व्यर्थ घूमते लोगों पर डंडे बरसा रहे थे, तो दूसरी ओर गरीबों के लिए ख़़ुद खाना बनाकर बांट रहे थे. सरकार ने अनिवार्य रूप से सबके वेतन में से भी सहायता राशि काटी थी." दादा ने याद दिलाया. "पापा, याद है दुकानों के आगे कैसे एक-एक मीटर के फ़ासले पर गोले बना दिए गए थे. लोगों को उनमें खड़े होकर ही सामान ख़रीदना होता था." राहुल को याद आया. "तूने मुझे उस दौरान बाज़ार जाने ही कहां दिया? सब कुछ तो तू और काव्या ऑनलाइन ऑर्डर कर घर पर ही मंगा लेते थे. सच, दो पीढ़ियों का इतना सहयोग और समन्वय मैंने तभी देखा. काव्या मां से घर में उपलब्ध सामग्री से ही खाना बनाना सीख रही थी और मां को ऑनलाइन सामान मंगाना सिखा रही थी. मैंने भी तेरे से बैंक ट्रांजेक्शन और बिलों का ऑनलाइन भुगतान करना सीखा था...’‘ "लो, शैतान को याद किया और शैतान हाज़िर! काव्या दीदी का वीडियोकॉल है... हां दीदी, आप ही को याद कर रहे थे." "क्यूं भला?" यह भी पढ़ें: टीनएज बेटी ही नहीं, बेटे पर भी रखें नज़र, शेयर करें ये ज़रूरी बातें (Raise Your Son As You Raise Your Daughter- Share These Important Points) "दस साल पहले का कोरोना का वक़्त याद कर रहे थे. किंशु को लेख लिखना है. याद है दीदी, आप मां से पहले कितनी बहस करती थीं कि खाना बनाना आना कतई ज़रूरी नहीं है. आईआईटी से इंजीनियरिंग कर रही हूं. कुक रखूंगी. वो छुट्टी पर होगी, तो ऑनलाइन मंगा लूंगी. जोमेटो, स्विगी ये हम जैसों के भरोसे ही तो चलते हैं. पर घर आकर जब आपको पता चला कि मुंबई में आपकी लोकेलिटी में बाई और बाहर का खाना सब निषिद्ध हो गया है, तो आपको अक्ल आ गई थी." राहुल बहन के मज़े ले रहा था. "याद मत दिला. मुंबई फंसी रह जाती, तो भूखों मर जाती. मैं तो आज भी आन्या को बताती हूं कि तब हर घर बिग बॉस का घर बन गया था. जो बाहर निकल गया, वो हार गया. जो अंदर क़ैद रह गया, वो विजेता बन गया. अंततः हम सभी विजेता बनकर बाहर निकले थे. पर उसके बाद डेढ़ महीने जयपुर घर पर रही, तो पक्की गृहिणी बनकर निकली." काव्या उन पलों को याद कर मुस्कुरा रही थी. "तुझे घर के कामकाज और खाना बनाना सिखाने के लिए हमें कोरोना को बुलाना पड़ा." राहुल बहन को छेड़ने से बाज़ नहीं आ रहा था. सब उनके हास-परिहास का आनन्द ले रहे थे. "पर अब मैं पक्की गृहस्थिन बन गई हूं. अपने अनुभव से सबक लेकर मैं पति-बेटी दोनों से घर के काम करवाती हूं. आज बाप-बेटी किचन में हाथ आज़मा रहे हैं, क्योंकि कुक छुट्टी पर है. सान्या नहीं दिख रही?" "ममा ऑफिस का काम कर रही हैं बुआ."

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...

[caption id="attachment_182852" align="alignnone" width="246"] संगीता माथुर[/caption]       यह भी पढ़ें: रंग तरंग- कोरोना, बदनाम करो न… (Rang Tarang- Corona, Badnaam Karo Na…)           अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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