"गंजी दुल्हन कितनी ख़राब दिखेगी न?" अनन्या ने मेरा हाथ थामकर पूछा. आज उसके चेहरे पर एक अजीब-सी ख़ुशी थी. मैंने बनावटी ग़ुस्से से डपटा,
"ख़बरदार! मेरी दुल्हन को कुछ कहा तो..." वो मेरे सीने पर सिर टिकाकर बैठ गई थी. कितने सुकून भरे पल थे वो... मैं उसका कंधा सहलाते हुए बोलता जा रहा था, "तुम उस दिन सुबह मिलने आई थी, तो क्या बोली थी कि आख़िरी बार मिलने आई हो? वो बात ग़लत निकली न, देखो हम फिर से मिले...
... अनन्या के सिर वाली चुन्नी खिसक गई थी... उसके बाल थे ही नहीं, बस हल्के-हल्के रोएं थे, थोड़ी-थोड़ी दूरी पर! "कीमोथेरेपी सारे बाल ले गई अमन..." अनन्या ने ज़बरन कोशिश करके मुस्कुराने की कोशिश की. मेरी आंखें ढंग से कुछ देख ही नहीं पा रही थीं. आंसुओं ने सब धुंधला कर दिया था... मैं एक चेयर लेकर उसके बेड के बगल में जाकर बैठ गया. मनीषा हमें कमरे में अकेला छोड़ कर चली गई थी. अनन्या रुक-रुककर, टूटे-फूटे शब्दों में बताती जा रही थी... ब्रेस्ट कैंसर अडवांस्ड स्टेज में था, कीमोथेरेपी और रेडिएशन ने उसका शरीर खोखला कर दिया था. आंखों के नीचे गाढ़े काले घेरे, कांपते हुए हाथ... कहां गई मेरी अनन्या, जो उस दिन सुबह मुझसे आख़िरी बार मिलने आई थी? पति का कहीं अफेयर था. फैमिली प्रेशर में शादी की और दो सालों के अंदर तलाक़ हो गया. वो मायके भी वापस नहीं गई. किसी स्कूल में नौकरी करके ख़ुद को संभालती रही. बीमारी की इस हालत में भी सहेली के घर पर है... ये सब सुनकर मैं बिखरता जा रहा था. "तुम मेरे पास क्यों नहीं आई अनन्या? इतनी दूर हो गए थे क्या हम? सब कुछ अकेले झेला..." बोलते हुए मेरा गला भर आया था, वो मुस्कराई. "मुझे पता चला था कि तुम्हारी शादी हो गई. बच्चे हैं... फिर कैसे दख़ल देती? कुछ दिनों पहले मम्मी देखने आई थीं. उन्होंने बताया कि तुम्हारी शादीवाली बात उन्होंने झूठ बोली थी. तो लगा... मिल लेना चाहिए..." थोड़ी देर बात करके वो फिर निढाल होकर सो गई थी. मैं अपने कमरे में आकर कुर्सी पर ढेर हो गया था. बीते कुछ सालों में कितना कुछ हो गया और मुझे कोई ख़बर ही नहीं? पूरी रात मैंने चहलकदमी करते हुए बिताई. सुबह मनीषा को जगाकर मैंने अपना फ़ैसला सुनाया, "आज मैं और अनन्या शादी कर रहे हैं... कहां और कैसे, आप अरेंज कीजिए." वो मुझे ऐसे देख रही थी जैसे नींद में सुन रही हो, "लेकिन इस तरह अचानक? वो अभी कहीं जाने की हालत में नहीं है... मंदिर तक भी नहीं..." "तो आप पंडितजी को घर बुलाइए. कैसे भी, कुछ भी करिए, लेकिन ये अधूरा काम पूरा होगा.. आज ही..." मैं इस बीच बहुत कुछ सोच चुका था. अनन्या को यहां से ले जाऊंगा, मिसेज़ अमन बनाकर... देश-विदेश कहीं भी, अच्छे-से-अच्छा इलाज... इस बार हमें क़िस्मत अलग कर ही नहीं सकती, चाहकर भी नहीं... "गंजी दुल्हन कितनी ख़राब दिखेगी न?" अनन्या ने मेरा हाथ थामकर पूछा. आज उसके चेहरे पर एक अजीब-सी ख़ुशी थी. मैंने बनावटी ग़ुस्से से डपटा, "ख़बरदार! मेरी दुल्हन को कुछ कहा तो..." वो मेरे सीने पर सिर टिकाकर बैठ गई थी. कितने सुकून भरे पल थे वो... मैं उसका कंधा सहलाते हुए बोलता जा रहा था, "तुम उस दिन सुबह मिलने आई थी, तो क्या बोली थी कि आख़िरी बार मिलने आई हो? वो बात ग़लत निकली न, देखो हम फिर से मिले... ऐसे ही तुमने कहा था कि हमारी कहानी कभी पूरी नहीं होगी, वो भी ग़लत निकली.. आज से हम और तुम मिस्टर एंड मिसेज़, है ना! खाना कौन बनाएगा घर में... फ़िलहाल तो मैं, फिर जब तुम ठीक हो जाओगी, तब तुम... ये डील ठीक है ना? हां बोलो, तब फाइनल करें.. अनन्या.. सो गई..?" यह भी पढ़ें: 28 समर केयर होम रेमेडीज, जो बचाएंगे आपको गर्मियों में होनेवाली हेल्थ प्रॉब्लम्स से (28 Best Summer Care Home Remedies To Stay Healthy This Summer) वो मेरी किसी बात का जवाब नहीं दे रही थी, उसको नींद आ रही थी. मैंने धीमे से अपना हाथ उसके कंधे पर से हटाया. लिटाने की कोशिश की, तो उसने मेरा हाथ कसके थाम लिया, फिर उसकी पकड़ ढीली होती चली गई, "अनन्या... इधर देखो, एक बार..." मेरी आवाज़ ऊंची हो गई थी, "अनन्या.. प्लीज़... इस बार नहीं अलग होना..." मैं बड़बड़ा रहा था... चिल्ला रहा था... क़िस्मत एक बार फिर कहीं कोने में खड़ी मुस्कुरा रही थी. मुझसे एक बार फिर कह रही थी- 'हर प्रेम कहानी पूरी नहीं होती...' [caption id="attachment_153269" align="alignnone" width="196"] लकी राजीव[/caption] अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES
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