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कहानी- एक रस्म प्यार की 4 (Story Series- Ek Rasm Pyar Ki 4)
मैंने दो-चार बहाने खोज लिए थे, पहले तो मैं देर से सोकर उठूंगा या फिर कोचिंग में कोई एक्स्ट्रा क्लास का बहाना भी बनाया जा सकता है और कुछ नहीं तो पेटदर्द, एसिडिटी, मोच... अपने घटियापन पर अचानक घिन-सी आ गई. केवल उसका सामना करने से कतरा रहा हूं, इसलिए उसकी मदद भी नहीं करना चाहता? जब मैं उसके यहां मेहमान था, तो वो कोई मौक़ा नहीं छोड़ती थी, कितना ध्यान रखती थी... और मैं ये कैसी हरकत कर रहा था?
... विनीता के आने की बात सुनकर मैं तय कर चुका था, जो कुछ बिगड़ा है, वो सब ठीक करना होगा. मैं उसको समझाऊंगा कि ऐसे खेल-खेल में रिश्ते नहीं जुड़ते. इस ग़लतफ़हमी वाले रिश्ते के लिए जीवन तबाह नहीं किया जाता!
विनीता को आए थोड़ी देर हो गई थी. मैं, मां के साथ, सकुचाते हुए बाहर आया. एक उचटती हुई निगाह विनीता पर डाली. एकदम बुझी हुई, उदासीन. जैसे कोई फूल मुरझाने पर आमादा हो.
"अरे, तुम हमारे पैर काहे छू रही हो. बिटिया पैर थोड़ी छूती हैं."
मां ने हड़बड़ाकर विनीता से कहा. उसने भाभी को देखा, भाभी ने मुझे और मैंने ये सब होते देखा. कितने भारी पल थे... ऐसा लगा जैसे किसी ने वो रिपोर्ट कार्ड निकालकर सामने रख दिया हो, जिसमें मैं फेल हो गया था! मैं अपने कमरे में वापस आ गया था, लेकिन मेरा पूरा ध्यान उधर ही लगा हुआ था. मां कभी विनीता से गांव के हाल पूछतीं, कभी उसके उतरे चेहरे को लेकर परेशान हो जातीं.
"चेहरा कित्ता उतर गया तुम्हारा. इसी पेपर के लिए परेशान हो क्या? और सहेली के यहां काहे रुकना था तुमको?"
विनीता ने धीरे से कहा, "यहां से सेंटर बहुत दूर है, साढ़े सात बजे पहुंचना है."
विनीता के बोलते ही मां ने तुरंत रास्ता सुझा दिया,
"अरे, कहीं भी हो सेंटर! अनूप छोड़ आएगा सुबह, उसमें क्या?"
अरे यार! मां भी न, कभी-कभी हद कर देती हैं... ना कुछ सोचना, ना पूछना, बस कह दिया, जो मन में आया!
मैंने दो-चार बहाने खोज लिए थे, पहले तो मैं देर से सोकर उठूंगा या फिर कोचिंग में कोई एक्स्ट्रा क्लास का बहाना भी बनाया जा सकता है और कुछ नहीं तो पेटदर्द, एसिडिटी, मोच... अपने घटियापन पर अचानक घिन-सी आ गई. केवल उसका सामना करने से कतरा रहा हूं, इसलिए उसकी मदद भी नहीं करना चाहता? जब मैं उसके यहां मेहमान था, तो वो कोई मौक़ा नहीं छोड़ती थी, कितना ध्यान रखती थी... और मैं ये कैसी हरकत कर रहा था? मैं उस रात साढ़े पांच बजे का अलार्म लगाकर सोया था और सुबह साढ़े छह बजे कार की ड्रायविंग सीट पर बैठ चुका था.
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पूरे रास्ते हम दोनों की कोई बात नहीं हुई. सेंटर के पास गाड़ी रोकते हुए मैंने गला खंखारा, "ये सामनेवाली बिल्डिंग है. कितने बजे तक चलेगा पेपर?"
"तीन घंटे का है... मैं ऑटो करके आ जाऊंगी. रास्ता समझ में आ गया है." उसने गाड़ी से उतरते हुए बिना मेरी ओर देखे जवाब दिया...
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
[caption id="attachment_153269" align="alignnone" width="196"] लकी राजीव[/caption]
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