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कहानी- एक रस्म प्यार की 5 (Story Series- Ek Rasm Pyar Ki 5)
"कुछ बोलोगी प्लीज़?" मैं बेसब्र हो रहा था, वो मेरी आंखों में आंखें डालकर बोली, "मैंने आपसे कुछ कहा है? या जीजी ने उस दिन के बाद से कुछ कहा? आपको क्या लगता है मैं आपसे कुछ मांगने आई हूं? मेरा एग्ज़ाम था, शाम को चली जाऊंगी. बस इसीलिए आई थी! और जहां तक मूव ऑन की बात है, आप अपनी लाइफ से मतलब रखिए मुझे क्या करना है, वो मैं देख लूंगी."
"नहीं, मैं आ जाऊंगा. थोड़ा काम है पास में. इतना ही टाइम मुझे भी लग जाएगा."
बोलते ही मैं चौंक गया था. ये किस झोंक में बातें कर रहा था मैं? तीन घंटे एक लड़की के लिए मैं उस सेंटर के बाहर खड़ा रहूंगा. ये मेरे अंदर से कौन बाहर आ रहा था?
मैं जो सवाल ख़ुद से पूछता था, उनके जवाब सुनने से कतरा जाता था.
विनीता एग्ज़ाम दे के निकली, तो घर जाने की बजाय मैंने गाड़ी एक रेस्ट्रां के बाहर रोक दी थी. विनीता बिना कोई सवाल किए मेरे साथ चली आई थी. मैंने ही बात शुरू की, "क्या खाओगी? चाय और कुछ सैंडविच या"
"केवल चाय." एक छोटा-सा जवाब आया.
इससे ज़्यादा परेशान मैं कभी नहीं हुआ. मैं क्या कहना चाहता था मुझे ख़ुद नहीं मालूम था. थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मैंने बोलना शुरू किया, "विनीता, इधर देखो. मुझे पता है तुम नाराज़ हो मुझसे, लेकिन मैंने वो सब जान-बूझकर नहीं किया था. इट वाज़ ए मिस्टेक, मूव ऑन..."
मैंने एक झटके में पूरी बात समझाते हुए सब कुछ कह दिया था. विनीता चुपचाप चाय पीती रही. वो चुप थी, उसकी आंखें भर आई थीं.
"कुछ बोलोगी प्लीज़?" मैं बेसब्र हो रहा था, वो मेरी आंखों में आंखें डालकर बोली, "मैंने आपसे कुछ कहा है? या जीजी ने उस दिन के बाद से कुछ कहा? आपको क्या लगता है मैं आपसे कुछ मांगने आई हूं? मेरा एग्ज़ाम था, शाम को चली जाऊंगी. बस इसीलिए आई थी! और जहां तक मूव ऑन की बात है, आप अपनी लाइफ से मतलब रखिए मुझे क्या करना है, वो मैं देख लूंगी."
विनीता के इस जवाब के लिए मैं तैयार ही नहीं था! मुझे लगा था या तो वो इस रिश्ते के लिए मुझ पर दबाव बनाएगी या घरवालों का डर दिखाएगी, लेकिन यहां बात कुछ और ही थी! रास्तेभर मेरी और विनीता की बात नहीं हुई थी. विनीता की ये चुप्पी भारी पड़ रही थी! वो लड़ लेती, झगड़ लेती, आग भड़क जाती, तो शांत भी हो जाती... यहां तो गीली लकड़ी सुलग रही थी, वो भी उस तरह कि धुआं आंखों में चुभ रहा था!
मां ने उस दिन विनीता को वापस जाने नहीं दिया था. रात में सबको बैठाकर अपनी शादी के क़िस्से सुना रही थीं! सब हंस रहे थे. मेरी नज़रें बार-बार विनीता पर टिक जाती थी. ऐसे ही तो उस दिन गांव में हम लोग बैठे थे, जब मेरी और विनीता की शादी की बात छिड़ी थी.
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मैं अब तक इस सच से भाग रहा था कि विनीता मुझे शुरू से पसंद थी और वो भी मुझे पसंद करती थी. क्या मैंने गांव में नहीं महसूस किया कि वो मुझे ही देखती रहती थी. मुझे कब क्या चाहिए, तुरंत कैसे लाकर देती थी? क्या मैंने पढ़ा नहीं उन आंखों में कुछ, जो मुझे देखते ही बदल जाती थीं? क्या मैंने उसके चेहरे के बदलते रंग नोटिस नहीं किए थे, जब हमारी शादी की बात को लेकर चिढ़ाया जा रहा था?
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
[caption id="attachment_153269" align="alignnone" width="196"] लकी राजीव[/caption]
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