कहानी- एक सपने का सच होना 3 (Story Series- Ek Sapne Ka Sach Hona 3)
धीरे-धीरे उसे मलय का प्यार ढकोसला लगने लगा. आख़िर शरीर का आकर्षण ही क्या प्यार की संतुष्टि कर सकता है? रंगों में सराबोर उसकी दुनिया में बेशक एहसास के चटख रंग थे, पर ज़िंदगी की कड़वी सच्चाई को वह समझना ही नहीं चाहता था. वह चाहता कि राजेश्वरी भी उसकी तरह झोला लटकाए बिना किसी मंज़िल के सड़कों पर घूमे, सागर की लहरों से अठखेलियां करे और वहीं रेत पर घरौंदा बना सो जाए.
वह हमेशा हंसता रहता, पैसा हो या न हो, मस्त रहना जैसे उसकी आदत थी. मां-बाप स्टेट्स में रहते थे. कुछ बनने और भारत की कला की खोज करने की चाह ने उसे यहीं रोक लिया था. जो कमाता, रंग और कैनवास ख़रीदने में लगा देता. उसके पास प्यार का अथाह सागर था और राजेश्वरी जो प्यार न मिलने के कारण अपने काम को समर्पित हो चुकी थी, उसे मलय का साथ तो अच्छा लगता, पर सोच नहीं.
“मलय, जीने के लिए पैसा चाहिए, वह भी बहुत सारा, वरना अपनी इच्छाओं को मार कर जीना पड़ता है.”
“यार, ये पैसे की बातें मेरे गले नहीं उतरतीं. मां-पापा के पास इतना पैसा है, पर सुख की तलाश हमेशा करते देखा है उन्हें. मैं एक कलाकार हूं और रंगों की दुनिया को ही सच मानता हूं. ज़िंदा रहने के लिए दो रोटी ही तो चाहिए ना मेरी जान, रोज़-रोज़ जंक फूड खाओगी, तो बीमार पड़ जाओगी.”
वह हर बात हंसी में उड़ा देता.
“तुम्हारी सोच प्रैक्टिकल नहीं है मलय, पता नहीं कैसे हम दोनों की दोस्ती हो गई.”
“दोस्ती कहां, यह तो प्यार है.” उसकी बांहें राजेश्वरी को पिघलाने लगतीं और वह असलियत को नकार ख़ामोशी से उसकी धड़कनें सुनने लगती. सच तो यह था कि राजेश्वरी मलय के साथ दो विरोधाभासों को झेलते हुए जी रही थी. उसे उसका साथ तो भला लगता था, पर उसकी सोच नहीं.
टकराहट तो अनिवार्य थी, पर मलय हर बार स्थिति को या तो उसके माथे पर एक चुंबन दे संभाल लेता या फिर हंसकर बात टाल जाता. दोनों को रोकने-टोकने वाला कोई नहीं था, इसलिए मिलने पर भी कोई बंदिश नहीं थी. राजेश्वरी के मन में कई बार ख़याल आया भी कि वह इस रिश्ते को कोई नाम दे दे, पर मलय फिलहाल शादी के बंधन में बंधने को तैयार नहीं था. वैसे भी राजेश्वरी जानती थी कि वह अभी तक सेटल हो नहीं पाया है और इस बात को लेकर वह गंभीर भी नहीं है. इसलिए ख़ुद को और ज़्यादा स्थापित करने व पैसे से दुनिया की हर ख़ुुशी हासिल करने के ख़याल से वह काम में डूबती गई.
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धीरे-धीरे उसे मलय का प्यार ढकोसला लगने लगा. आख़िर शरीर का आकर्षण ही क्या प्यार की संतुष्टि कर सकता है? रंगों में सराबोर उसकी दुनिया में बेशक एहसास के चटख रंग थे, पर ज़िंदगी की कड़वी सच्चाई को वह समझना ही नहीं चाहता था. वह चाहता कि राजेश्वरी भी उसकी तरह झोला लटकाए बिना किसी मंज़िल के सड़कों पर घूमे, सागर की लहरों से अठखेलियां करे और वहीं रेत पर घरौंदा बना सो जाए. वह जानती थी कि ये बातें स़िर्फ क़िताबों में अच्छी लगती हैं, यथार्थ से उनका कोई नाता नहीं है. पर फिर भी मलय से बंधे रहने में उसे सुख मिलता. प्यार के ख़ूबसूरत मायने उसी ने तो सिखाए थे उसे.
फिर अचानक एक दिन मलय कहीं चला गया. बिना बताए...
ग़ैरज़िम्मेदारी का आईना दिखाते हुए. दो महीने बाद एक ख़त आया, “मुझे भूल जाना, तुम्हारी और मेरी दुनिया अलग है. एहसास की जो गठरी तुम्हारे पास है, उसे एक बोझ समझ कहीं भी फेंक देना. मैं वापस नहीं लौटूंगा.”
वह समझ ही नहीं पाई कि आख़िर उससे कहां ग़लती हो गई थी. इस बात को पांच वर्ष बीत चुके हैं, मलय का कहीं पता न लगा. राजेश्वरी उसे भूल तो नहीं पाई, बस अपने दिल के दरवाज़ों को बंद कर दिया था. शायद प्यार उसके नसीब में था ही नहीं.
मन नहीं लगा तो केबिन से बाहर आ गई. ज़ोरदार हंसी का स्वर कानों में गूंजा. पलटकर देखा-मलय था, फ़ोटोग्राफ़र मलय. यहां तक चला आया.
सुमन बाजपेयी
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