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कहानी- फौजी की पत्नी 2 (Story Series- Fauji ki patni 2)

“मेरे लिए रहना क्या आसान होगा तुम्हारे बिना? बस, कुछ ही महीनों की तो बात है. सरहद और सीमा के आसपास के इलाकों में शांति हो जाए, फिर मैं तुम्हें भी अपने साथ ले चलूंगा या अपनी पोस्टिंग यहां करवाने की कोशिश करूंगा. अपने कमांडो पर भरोसा रखो. तुम्हारा प्यार और साथ है न मेरे साथ, विश्‍वास रखो मुझे कुछ नहीं होगा.” परम उसे गले लगाते हुए बोला. “अरे, ये आप क्या कर रहे हैं?” परम को रसोईघर में कुछ काम करते देखकर तनु ने पूछा. वह अभी नहाकर निकली थी. “पनीर की सब्ज़ी बना रहा हूं.” परम ने जवाब दिया. “आप बैठिए न, मैं बनाती हूं.” तनु ने प्यार से कहा. “तू रोटी बना, आज सब्ज़ी मैं अपने हाथ से बनाकर खिलाता हूं.” परम प्याज़, टमाटर काटते हुए बोला. तनु ने देखा कितना ख़ुश लग रहा था परम रसोई का काम करते हुए. हमेशा ग्रेनेड और बंदूक थामकर रखने को मजबूर हाथ आज अपनी पत्नी के लिए खाना बना रहे हैं. काश! ये ख़ुशियों के, सुकून के, खिलखिलाहटों के पल यहीं थम जाएं और हमेशा बने रहें. क्यों कुछ लोग चैन से रहना नहीं चाहते और अपनी महत्वाकांक्षाओं की आग में बसे हुए घरों को स्वाहा करते रहते हैं. परम की छुट्टी के पंद्रह दिन भी बीत गए. आज रात वह वापस जानेवाला था. तनु नहाने गई, तो बहते पानी के नीचे देर तक आंसू भी बहाती रही. सीने में अजीब-सा दर्द हो रहा था. परम के सामने रोकर वह उसे कमज़ोर नहीं करना चाहती थी, इसलिए शॉवर के नीचे ही अपने मन का गुबार निकाल रही थी. रात जब परम को बस स्टैंड तक छोड़ने के लिए ड्राइवर ने कार निकाल ली, तो तनु से फिर अपने आपको संभाला नहीं गया. वह परम के कंधे से लगकर सिसक पड़ी. “मत जाओ मुझे छोड़कर.” “पगली! तू तो हमेशा मुझे हिम्मत बंधाती रहती है. तू ही ऐसे कमज़ोर पड़ जाएगी, तो मेरा क्या होगा.” परम उसके सिर पर हाथ फेरता हुआ बोला. “मैं कैसे रहूंगी अब आपके बिना? आजकल तो एक पल के लिए भी चैन नहीं मिलता. हर पल एक डर लगा रहता है.” तनु बिलखते हुए बोली. “मेरे लिए रहना क्या आसान होगा तुम्हारे बिना? बस, कुछ ही महीनों की तो बात है. सरहद और सीमा के आसपास के इलाकों में शांति हो जाए, फिर मैं तुम्हें भी अपने साथ ले चलूंगा या अपनी पोस्टिंग यहां करवाने की कोशिश करूंगा. अपने कमांडो पर भरोसा रखो. तुम्हारा प्यार और साथ है न मेरे साथ, विश्‍वास रखो मुझे कुछ नहीं होगा.” परम उसे गले लगाते हुए बोला. यह भी पढ़ें: समय से पूर्व जन्मे बच्चे जल्द सीखते हैं भाषा तनु की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. “तनु लिपस्टिक लगाकर आ न.” अचानक परम बोला. “क्यों?” तनु आश्‍चर्य से बोली. “जा न लगाकर आ.” परम आग्रह से बोला. तनु जाकर लिपस्टिक लगाकर आई. “इस पर अपने होंठों के निशान दे न.” परम ने अपना मोबाइल फोन तनु के चेहरे के सामने कर दिया. तनु ने अपने होंठ मोबाइल के कवर पर रख दिए. उसके लाल होंठ स़फेद कवर पर छप गए. अब आगे कुछ महीनों के लिए यही स्मृति परम का आधार बनी रहेगी. दोनों ने भगवान को प्रणाम किया. परम ने तनु की मांग में सिंदूर भरा. एक नज़रभर उसे देखा. मन में पीड़ा की एक लकीर कौंधी और एक भयावह विचार आया, जिसे उसने बलपूर्वक उसी समय झटक दिया. तनु का हाथ थामकर भारी मन से घर के बाहर आया. जैसे-तैसे ताला लगाया और एक नज़र घर को देखा. क्या पता फिर देखना नसीब हो या न हो. किस बार का जाना आख़िरी बार का हो जाए, एक कमांडो के लिए इस बात का कोई भरोसा नहीं होता. बस में चढ़ने से पहले परम ने तनु को समझाया, “अपना ध्यान रखना और देख रोना बिल्कुल नहीं, वरना वहां मेरे लिए ड्यूटी निभाना बहुत मुश्किल हो जाएगा. हर पल मन तुझमें ही अटका रहता है.” “आप मेरी चिंता बिल्कुल मत करिए. आप बस अपना ध्यान रखना जी और जल्दी वापस आना.” तनु रोते हुए बोली. बस निकलने का समय हो गया था. परम ने बैग उठाया, एक नज़र तनु को देखा, उसे गले लगाया और पलटकर तेज़ी से बस में चढ़ गया. अगर वो एक पल और तनु के पास खड़ा रहता, तो जाना और भी मुश्किल हो जाता. “अपना ध्यान रखना तनु.” परम ने बस के दरवाज़े पर खड़े होकर कहा और हाथ हिलाकर उससे विदा ली. तनु भी उसे विदा करने लगी. बस धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी. आंसुओं के बीच धुंधली होती हुई परम की बस आख़िर में ओझल हो गई. तनु आकर कार में बैठ गई. सिर बुरी तरह सुन्न हो रहा था. फौजी की पत्नी के जीवन का यह क्षण सबसे कठिन होता है. ऐसा लगता है जैसे किसी ने दिल शरीर से बाहर निकालकर निचोड़ दिया है. कब घर आया, कब उसने ताला खोला पता नहीं. ड्राइवर गाड़ी रखकर अपने घर चला गया. नीचे के सारे दरवाज़े बंद करके वह ऊपर आ गई. कमरे में पैर रखते ही तनु के दिल में एक हौल उठी. खाली घर, खाली कमरा, खाली पलंग. कटे पेड़-सी वह पलंग पर गिर पड़ी. आंखों से आंसुओं की धाराएं बह रही थीं. सिर घूम रहा था. दिल में अजीब-सा दर्द हो रहा था. परम के बिना खाली घर, परम के बिना खाली कमरा, परम के बिना सूना बिस्तर, परम के बिना खाली-खाली मन और जीवन. Dr. Vinita Rahurikar डॉ. विनिता राहुरीकर

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