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कहानी- हैप्पीवाला न्यू ईयर 1 (Story Series- Happywala New Year 1)

“मेरे सारे फ्रेंड्स के घर कितने सुंदर लगते हैं, मुझे तो उन्हें घर पर बुलाने में भी शर्म आती है. मेरा बेड भी चेंज करवा दो पापा. न्यू ईयर में कुछ-कुछ हैप्पी-हैप्पी इफेक्ट देना चाहिए डेकोर में.” काव्या हिम्मत करते हुए बोली, हालांकि चेहरे पर छाए भाव बता रहे थे कि वह सहमी हुई है.
“मां-बेटी दोनों को ख़र्च करवाने के सिवाय कोई काम नहीं है. बेकार की बातें करने की ज़रूरत नहीं. और क्या नए साल का ढोल पीट रही हो, कोई पहली बार आ रहा है क्या नया साल? क्या फ़र्क़ पड़ जाएगा नए डेकोर से या एक और साल आने से. ज़िंदगी जैसी चल रही है, वैसी ही चलेगी.
सीलन तो सूख गई है, पर सूखने के बाद दीवार पर पपड़ियां आ गई हैं. ठीक नहीं कराया, तो कुछ दिनों में नीचे गिरने लगेंगी. मैं सोच रही थी कि क्यों नहीं, नया साल आने से पहले ही पेंट करा लिया जाए. वैसे भी देखने में कितना बुरा लग रहा है. घर में इस बार नए स्टाइल में कुछ करते हैं, कुछ अलग और सुखद-सा.” उर्मि ने बहुत सहजता से कहा और प्रतिक्रिया जानने के लिए पति की ओर देखने लगी. उसने तो ऐसे ही एक सामान्य-सी बात कही थी, पर जानती थी कि विस्फोट होगा. हर बात पर धमाकेदार प्रतिक्रिया देना, केशव की आदत बन चुकी है.
“हर साल की मुसीबत है यह. सर्दियों के मौसम में बारिश आती है और ऊपरवाले के घर से हमारे घर में सीलन आ जाती है. सोसाइटी फ्लैट्स में रहने की यही द़िक्क़तें हैं. कोई-न-कोई बवाल खड़ा ही रहता है. हर साल पेंट कराते रहो. पैसे क्या पेड़ पर लगे हैं. है भी तो एकदम बेकार आदमी ये ऊपरवाला. इससे बात भी करने का मन नहीं करता. मुंह में पान दबाए जो बोलना शुरू करता है, तो अगले को चुप होना ही पड़ता है. और ये क्या नए स्टाइल का कुछ करने का कह रही हो. जैसा पेंट हुआ है, बस उसी की कोटिंग करवा लो.”
केशव का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था. मानती हूं कि हर साल उन्हें पेंट करवाना पड़ता है और बेवजह पैसे ख़र्च हो जाते हैं, पर कोई विकल्प भी तो नहीं है.
“पापा, प्लीज़, इस बार मैट फिनिश के साथ पेंट करवा लें और डेकोर में भी चेंज कर लें. दीवारों पर दो-तीन कलर्स लगवा लेते हैं और कुछ कलाकृतियां भी ख़रीद लेंगे. एथनिक लुक अच्छा लगेगा. कारपेट का फैशन आउटडेटेड हो गया है. वुडन फ्लोरिंग करवा लेते हैं. मेरे सारे फ्रेंड्स के घर कितने सुंदर लगते हैं, मुझे तो उन्हें घर पर बुलाने में भी शर्म आती है. मेरा बेड भी चेंज करवा दो पापा. न्यू ईयर में कुछ-कुछ हैप्पी-हैप्पी इफेक्ट देना चाहिए डेकोर में.” काव्या हिम्मत करते हुए बोली, हालांकि चेहरे पर छाए भाव बता रहे थे कि वह सहमी हुई है.
“मां-बेटी दोनों को ख़र्च करवाने के सिवाय कोई काम नहीं है. बेकार की बातें करने की ज़रूरत नहीं. और क्या नए साल का ढोल पीट रही हो, कोई पहली बार आ रहा है क्या नया साल? क्या फ़र्क़ पड़ जाएगा नए डेकोर से या एक और साल आने से. ज़िंदगी जैसी चल रही है, वैसी ही चलेगी. आता हूं मैं थोड़ा घूमकर. रात को देर हो जाएगी. खाना दोस्तों के साथ ही खाऊंगा. चाबी ले जा रहा हूं, इसलिए मेरे लिए जागकर एहसान जताने की ज़रूरत नहीं है.”
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18 साल हो गए हैं, केशव के साथ रहते हुए उर्मि को और हर बार जब केशव की कड़वाहट उन पर बिखरती है, तो यही ख़्याल मन में आता है कि इस इंसान से शादी करके उसने कोई ग़लती तो नहीं की. चुना तो पापा ने ही था, पर उससे पूछा गया था, उसकी राय मांगी गई थी और किसी तरह का दवाब भी नहीं डाला गया था. कैसे पसंद कर लिया उसने केशव को, यह बात आज तक उसे मथती रहती है. पढ़ी-लिखी है, नौकरी भी करती थी और उमंग और उत्साह से लबालब रहती थी. सपनों का आसमान भी बहुत सतरंगी था. जबकि केशव कम बोलनेवाले इंसान थे और सपने देखना या अधिक उत्साहित होने को बचपना मानते थे और आगे बढ़ने का मतलब उनके लिए था बहुत सारे पैसे कमाना और बैंक बैलेंस बढ़ाना. पता नहीं कैसे तब उनका कम बोलना और गंभीर चेहरा उसे भा गया था. सोचा था कि वह तो निर्बाध नदी है, शांत समंदर का मेल जीवन को सुचारु रूप से चलाने में मदद करेगा. उसे क्या पता था कि यह गंभीरता, परिपक्वता नहीं, एक तरह से किसी चिढ़ का पर्याय है, जो किस बात के कारण उनके अंदर पैठ बनाए हुए है, आज तक जान ही नहीं पाई है.
गलती तो की ही है उसने, अब उसे इस बात पर कोई शक नहीं है. कैसे कोई आदमी नीरस हो सकता है. कोई जिजीविषा नहीं, ज़िंदगी जैसी चल रही है, चलती रहे. तटस्थता नहीं कह सकते हैं. एक तरह की ज़िद है कि जो मैंने कहा, वही अंतिम सत्य, फिर चाहे दूसरों की भावनाएं आहत ही क्यों न हो जाएं.
शादी के दो साल बाद जब काव्या का जन्म हुआ, तो उसी ने नौकरी न करने का फैसला किया, ताकि उसकी परवरिश अच्छी तरह से हो सके. कहीं-न-कहीं वह तब तक समझ चुकी थी कि केशव से कोई सहयोग नहीं मिलेगा, इसलिए उसके पापा के समझाने के बावजूद उसने नौकरी छोड़ दी.
सुमन बाजपेयी
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