काम करते-करते जब कभी हम थक जाते, तो जगन को मन ही मन दो गलियां देते, पर उसका यह शब्द हमें आराम नहीं करने देता. हमें शिक्षा देकर स्वयं तो कनाडा चला गया बंदा; आज उसका नाम वहां के सफल व्यापारियों में शुमार होता है; होना ही था आख़िर गुज्जू जो ठहरा.
... बहुत वाद-विवाद के पश्चात सब की राय यही बनी कि इस प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहिए; इसमें परिवार का सम्मान और आर्थिक उत्थान दोनों निहित है. एक झटके में मैंने विश्वविद्यालय की नौकरी छोड़ दी. एक निश्चित भविष्य को त्याग एक अनिश्चित यात्रा पर मैं शुभांगी के साथ निकल पड़ा. यह एक जोखिम भरा कदम था, पर जवानी का जोश, उफान मारता आत्मविश्वास और बेहतर भविष्य की कल्पना ने मेरे लिए कोई अन्य विकल्प छोड़ा ही नहीं. यहां पहुंचते अमेरिकी प्रोफेसर ने मेरा खुले दिल से स्वागत किया. हमारे रहने का इंतज़ाम करवाया और विश्वविद्यालय विभाग में मेरे लिए बैठने और काम करने की उचित व्यवस्था करवाई. अपने वायदे के अनुसार प्रोफेसर ने हमें रिकॉर्ड समय में ग्रीन-कार्ड दिलावाया; फिर शुरू हुई हमारे संघर्ष की कहानी. व्यवस्थित होते हम दोनों जी जान से अपने भविष्य को बेहतर बनाने में जुट गए; दिन में मैं विश्वविद्यालय के शोध-प्रोजेक्ट पर काम करता और देर शाम तक किसी सुपर स्टोर में. शुभांगी दिन में चाइल्ड केयर के लिए काम करती और शाम कम्युनिटी कॉलेज का कोर्स, जो उसे भविष्य में स्कूली शिक्षक बनाता. फिर देर रात तक जग कर हम अगले दिन की तैयारी करते, ताकि अपने अपने काम पर नए उत्साह के साथ लौट सकें. बड़ी कठिनाई भरे दिन थे, पर हमने हिम्मत नहीं हारी. उन दिनों की याद आए और मेरे मित्र जगन की तस्वीर जेहन में न उभरे यह संभव ही नहीं था. जगन, एक ज़िंदादिल गुजराती दोस्त था, जो सारी समस्याओं का समाधान मुस्कुराते हुए देने के लिए अपनी मित्र मण्डली में सब का अजीज था. एक दिन जगन ने मुझसे पूछा, "चल यह बता तू अल्कोहलिक शब्द से परिचित तो है ना, मैं एक और शब्द तुझे बताता हूं- शब्द है ‘वर्कोहलिक’. अर्थ तो तू समझ ही गया होगा. अब सुन यदि इस मुल्क में रहना है, कोई मुक़ाम हासिल करनी है, तो तुझे भी ‘वर्कोहलिक’ बनना पड़ेगा." काम करते-करते जब कभी हम थक जाते, तो जगन को मन ही मन दो गलियां देते, पर उसका यह शब्द हमें आराम नहीं करने देता. हमें शिक्षा देकर स्वयं तो कनाडा चला गया बंदा; आज उसका नाम वहां के सफल व्यापारियों में शुमार होता है; होना ही था आख़िर गुज्जू जो ठहरा. ख़ैर, बहुत मशक्कत के बाद मुझे फ्लोरिडा के एक सरकारी सहायता प्राप्त विश्वविद्यालय में अस्थाई प्राध्यापक की नौकरी मिल गई और शुभांगी ने भी उस राज्य की शिक्षक पात्रता परीक्षा में सफलता हासिल कर ली. कहते हैं न लगे रहो, तो ऊपरवाला भी सुनेगा ही, देर हो सकती है पर पुकार अनसुना नहीं जाएगा. हम धीरे-धीरे सीढियां चढ़ते गए और कुछ ही वर्षों में हम वहां पहुंच गए, जिसके सपने हमने देखे थे. यह भी पढ़ें: 6 साल की बच्ची ने किया पीएम मोदी से भावुक सवाल, 'छोटे बच्चों को इतना काम क्यों दिया जाता है मोदी साहब ?',बच्ची का क्यूट वीडियो हुआ वायरल ('Why So Much Homework, Modi Saab?,Adorable Video of 6-Year-Old Kashmiri Girl Complains to PM Modi Goes Viral) जिस मुल्क में बच्चे भी योजनानुसार ही धरती पर लाए जाते हैं, वहां एक बार पुनः बगैर किसी पूर्व सूचना के रोहन हमारे परिवार में आ जुड़ा. उसके आने के साथ परिवार में खुशियां भी आ जुडी; मुझे अपने उत्कृष्ट शोध के आधार पर टेक्सास के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद प्राप्त हो गया, शुभांगी एक अच्छे विद्यालय में शिक्षक हो गई. अपना घर, अपनी गाड़ी, रोहन का प्री-स्कूल जाना, लगा ड्रीम कम ट्रू चरितार्थ हो गया. अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... प्रो. अनिल कुमार अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES
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