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कहानी- जैनिटर से मिला गुरु ज्ञान 4 (Story Series- Jenitor Se Mila Guru Gyan 4)

"आंटी, मैं आपके कमरे में अपने समान रख लूं?"

"हां... हां... क्यों नहीं." इतना सुनते शुभांगी लट्टू हो गई. मुझे लगा उस लड़की ने एक वाक्य से ही शुभांगी को शीशे में उतार लिया. उसका बस चलता, तो रोहन के बिना कुछ बोले वह उस लड़की के साथ उसका उसी वक़्त लगन करा देती. पर अभी तो हमारे देसीपन की एक झलक दिखनी बाकी थी.

  मुझे विश्वविद्यालय से लौटते अक्सर देर हो जाती थी, पर शुभांगी अपने स्कूल से पांच बजे लौट आती थी. उस दिन जब मैं वापस आया, तो शुभांगी परेशान-सी दिखी. “देख लो अपने साहबजादे की कारगुजारी. आज शाम शिकागो से पहुंच रहे हैं हमारे साथ वीकेंड गुज़ारने, साथ में पता नहीं कोई एक लड़की भी है.” मैंने हंसते हुए कहा, “होगी कोई अमेरिकी गर्लफ्रेंड, तैयार हो जाओ होनेवाली बहू का स्वागत करने के लिए.” इतना सुनते शुभांगी के भीतर की ‘भावी देसी सास’ जग गई. “अरे, ऐसी कोई कलमुही हुई, तो मैं दरवाज़े में न घुसने दूं, देख लेना तुम. और ख़बरदार जो उसका पक्ष लिया तो.” मैंने भी ‘जय एकता माई’ का नारा लगाया और कपड़े बदलने अपने कमरे की और बढ़ गया, पर उसे चैन कहां. मेरे आने से पहले उसने रोहन की पसंद के ढेर सारे पकवान बना डाले. बार बार घड़ी देखती. छोटी-सी आवाज़ पर भी गेट खोलने को आतुर; एकदम ठेठ देसी मां! रोहन आया, साथ में एक लंबी, प्यारी-सी लड़की, जिसके चेहरे पर बेहद ख़ूबसूरत हिन्दुस्तानी आभा थी. मैंने चैन की सांस ली. उस लड़की को देखते शुभांगी का चेहरा भी दमक उठा. "आंटी, मैं आपके कमरे में अपने समान रख लूं?" "हां... हां... क्यों नहीं." इतना सुनते शुभांगी लट्टू हो गई. मुझे लगा उस लड़की ने एक वाक्य से ही शुभांगी को शीशे में उतार लिया. उसका बस चलता, तो रोहन के बिना कुछ बोले वह उस लड़की के साथ उसका उसी वक़्त लगन करा देती. पर अभी तो हमारे देसीपन की एक झलक दिखनी बाकी थी. थोड़ी देर बाद रोहन और उसकी मित्र संचिता फ्रेश होकर अपने-अपने कमरे से निकले और हम सब किचन के सामने रखे खाने की मेज़ पर विराजमान हो गए. संचिता के बारे में जानने को मैं भी बेचैन था, पर ज़ाहिर न होने दे रहा था. दूसरी तरफ़ शुभांगी तो बड़ी मुश्किल से स्वयं को रोके हुए थी. चाय के साथ बातचीत का सिलसिला शुभांगी ने ही शुरू किया, “तुम दोनों एक ही दफ़्तर में काम करते हो?” "नहीं आंटी, मैं आईटी इंजीनियर हूं, हमारे दफ़्तर एक ही काम्प्लेक्स में हैं." संचिता ने ही जवाब दिया, रोहन तो चुपचाप बैठा था. “हिंदुस्तान में तुम लोग कहां से हो?” यह भी पढ़ें: जानें 9 तरह की मॉम के बारे में, आप इनमें से किस टाइप की मॉम हैं?(Know About 9 Types Of Moms, Which Of These Are You?) मैं इस प्रश्न का इन्तज़ार कर रहा था, क्योंकि यही प्रश्न तो उसके रूट तक ले जाएगा. संचिता ने बगैर किसी झिझक के बताया, “मेरे पिता रेल विभाग में सामान्य मुलाजिम थे; पैसे तो कम थे पर पापा शिक्षा पर बहुत ज़ोर देते थे. अफ्रीका में जब रेल लाइन बन रही थीं, तो पापा को रेलवे की तरफ़ से वहां जाने का मौक़ा मिला. चूंकि यह लंबे समय तक चलनेवाली पोस्टिंग थी, अतः हमारा पूरा परिवार ही वहां चला आया. वहां के अच्छे स्कूल में हमारी पढ़ाई-लिखाई हुई, क्योंकि पढ़ाई का ख़र्च भारत सरकार से अलग से मिल जाता था. वहीं एक अमेरिकन ऑफिसर से पापा की मुलाक़ात हुई. वे पापा के काम से बहुत प्रभावित हुए. उन्हीं के प्रयास से हम बहुत पहले इस मुल्क में आ गए और आज आप सब के सामने हूं.” अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... Prof. Anil Kumar प्रो. अनिल कुमार अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

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