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कहानी- मेरे हिस्से का आकाश 2 (Story Series- Mere Hisse Ka Aakash 2)

“अक्षत अगर हम दोनों को ना भी मिला... और तुम्हें भी मिल गया, तो मैं बिना जॉब के ही तुम्हारे साथ चली जाऊंगी. तुम्हारी पत्नी की डिग्री के बल पर मुझे वहां इंटरी मिल जाएगी और अपनी डिग्री के बल पर जॉब,” लेकिन हुआ इसका उल्टा. प्रज्ञा को एक नामी कंपनी से आर्कषक सैलरी पैकेज के साथ, मनपसंद प्रोफाइल पर जॉब ऑफर हो गई, जबकि दोनों ही इस जॉब के लिए दावेदार थे. अक्षत का अहम बुरी तरह आहत हो गया.

      ... केशव का उसके प्रति सिर्फ़ दोस्ताना स्नेह था, लेकिन अक्षत और उसके बीच एक-दूसरे को चिढ़ाने और चिढ़ने के दरमियान प्रेम का कोमल अंकुर कब सिर उठाकर उन दोनों की तरफ़ निहारने लगा, वे समझ ही नहीं पाए. जब समझे, तो अंकुर फूटकर नन्हें पौधे में तब्दील हो चुका था. पत्तियां सज गई थीं. कलियां चटखने को तैयार थीं और वे मुग्ध भाव से उस पर मोहित थे. केशव उन दोनों के बीच पनपे उस सुंदर नेह बंधन का साक्षी था और हितैषी भी. बहुत कोशिश की उसने, उस पौधे को आंधी-तूफ़ान से बचाने की, उनके अंदर उग आए अहम व स्वाभिमान की अग्नि की तपिश से बचाने की, पर यह हो न पाया. जब तक सप्तरंग उनके हृदयाकाश से उतरकर ज़िंदगी के कैनवास पर बिखरते, अक्षत बिना कुछ बताए... प्रज्ञा की क्या, केशव की भी ज़िंदगी से निकल कर मुंबई चला गया. स्थान की दूरी इतनी मायने नहीं रखती, पर दिलों की रंचमात्र की दूरी भी, कदम भर के फ़ासले को मीलों में परिवर्तित कर देती है. यह भी पढ़ें: नाम के पहले अक्षर से जानें अपनी लव लाइफ (Check Your Love Life By 1st Letter of Your Name)   तीनों की इंजीनियरिंग का फाइनल ईयर था. कैंपस प्लेसमेंट के लिए कंपनियां कॉलेज में डेरा डाल रही थीं. केशव ऐसी किसी कंपनी में ट्राई नहीं करना चाहता था, जो उसे देश से बाहर भेजे. लेकिन अक्षत और प्रज्ञा तो विदेश उड़ना चाहते थे. दोनों चाहते थे कि फाइनल इम्तिहानों के बाद शादी की रस्म पूरी करके वे विदेश की राह पकड़ें. “अक्षत अगर हम दोनों को ना भी मिला... और तुम्हें भी मिल गया, तो मैं बिना जॉब के ही तुम्हारे साथ चली जाऊंगी. तुम्हारी पत्नी की डिग्री के बल पर मुझे वहां इंटरी मिल जाएगी और अपनी डिग्री के बल पर जॉब,” लेकिन हुआ इसका उल्टा. प्रज्ञा को एक नामी कंपनी से आर्कषक सैलरी पैकेज के साथ, मनपसंद प्रोफाइल पर जॉब ऑफर हो गई, जबकि दोनों ही इस जॉब के लिए दावेदार थे. अक्षत का अहम बुरी तरह आहत हो गया. वही जॉब उसे नहीं मिला और प्रज्ञा को मिल गया. भले ही वह प्रज्ञा से प्यार करता था, लेकिन प्रतिस्पर्धा में प्रज्ञा से आगे बढ़ने की रस्साकस्सी उसके दिमाग़ में हमेशा से थी. यह भी पढ़ें: महिलाएं बन रही हैं घर की मुख्य कमाऊ सदस्य (Women Are Becoming Family Breadwinners)   पीढ़ियों तक पुरुषों के अहम ने स्त्री पर संपूर्ण राज किया. स्त्री के स्वाभिमान को दबाया, कुचला और स्वयं तुष्ट हुआ. उसका अहम तो दूर की बात है, उसका अस्तित्व भी पुरुष के लिए मायने नहीं रखता था. स्त्री वह बेल है, जो सिर्फ पुरुष का सहारा लेकर फलफूल सकती थी. उसका दायरा उतना ही था, जितना उसका पुरुष तय करे. थोड़ा समय बदला, पुरुष ने स्त्री के अस्तित्व को स्वीकार करना शुरू किया और अधिक नहीं तो थोड़ा बहुत बाहरी मन से ही सही, बराबरी का दर्जा देना भी. लेकिन उसका दायरा उसकी स्त्री तय करे या वह उसका सहारा लेकर सफलता की सीढ़ी चढ़े, यह अभी भी स्वीकार करना विरलों के लिए ही सहज है.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...

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