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कहानी- मुक्ति 3 (Story Series- Mukti 3)
प्रथम रात्रि को सुहागरात की मधुरिम कल्पना से रोमांचित मैं अनुराग की प्रतीक्षा कर रही थी. कुछ क्षण बाद भावहीन चेहरा लिए वह कमरे में आए थे और मुझे उस कड़वी सच्चाई से रु-ब-रु कराया, जिसे सुनकर मेरी सारी रोमांचक कल्पनाएं यथार्थ के कठोर धरातल से टकराकर बिखर गईं.
... स्नेह से माथे पर हाथ रख अपनत्व भरे स्वर में बोले, ‘‘सोने का प्रयास करो संध्या.’’ मेरी पलकों की कोरों से आंसू बहकर गालों पर लुढ़क गए. मन में कितना कुछ उमड़ने-घुमड़ने लगा. न जाने कितने वर्षों बाद आज इस छुअन में मुझे अपनेपन का गहन एहसास हो रहा है.
इसी अपनेपन के लिए मैं जीवनभर तरसती रही. क्या सचमुच इन्हें मेरे जाने का दुख हो रहा है या फिर पश्चाताप है, मेरे साथ किए अपने सुलूक पर अथवा इन्हें दुख हो रहा है, मेरे चले जाने पर अपने उस आराम के समाप्त हो जाने का, जो इन्हें सहजता से प्राप्त था और जिसके ये आदि हो चुके थे. गर्म खाना, धुले प्रेस किए हुए कपड़े और हर वह सुख-सुविधा, जो पत्नी से पति अधिकारपूर्वक प्राप्त कर सकता है.
पता नहीं, किसी के मन के बारे में विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता, किंतु सच यही है कि ज़िंदगीभर अनुराग ने मुझ पर अपना वर्चस्व कायम रखा. इनके साथ भावनात्मक जुड़ाव मैंने कभी महसूस ही नहीं किया. बस एक सतही-सा रिश्ता चलता रहा. नदी के दो किनारों की तरह जो साथ-साथ तो चलते रहते हैं, किंतु मिलते कभी नहीं. कभी-कभी माता-पिता द्वार लिया गया फ़ैसला किसी बेकसूर की ज़िंदगी को संघर्ष के हवन कुंड में झोंक देता है.
प्रथम रात्रि को सुहागरात की मधुरिम कल्पना से रोमांचित मैं अनुराग की प्रतीक्षा कर रही थी. कुछ क्षण बाद भावहीन चेहरा लिए वह कमरे में आए थे और मुझे उस कड़वी सच्चाई से रु-ब-रु कराया, जिसे सुनकर मेरी सारी रोमांचक कल्पनाएं यथार्थ के कठोर धरातल से टकराकर बिखर गईं.
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अनुराग को एक विजातीय लड़की से प्रेम था, किंतु मां-पिता ने विवाह की इजाज़त नहीं दी और विवश होकर अनिच्छा से उन्हें मुझसे विवाह करना पड़ा. महज़ एक औपचारिकता-सी पूरी कर अनुराग सो गए थे और मैं सारी रात जागकर आंसुओं से तकिया भिगोती रही. आख़िर नियति ने मुझे किस क़ुसूर की सज़ा दी.
स्वभाव से मैं बेहद शांत प्रवृत्ति की इंसान रही हूं. अनुराग के प्रति पूर्णतया समर्पित रहकर उनका सदैव अधिक-से-अधिक ख़्याल रखती रही, इस उम्मीद में कि कभी तो मेरे प्रेम और भावनाओं की उष्णता इनका हृदय परिवर्तन करेगी, किंतु वह दिन कभी नहीं आया. मेरी उपलब्धियों और योग्यताओं की उपेक्षा करना और मेरे प्रत्येक कार्य में कमी निकालना इनका स्वभाव बनता गया.
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
रेनू मंडल
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