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कहानी- पैरों की डोर 3 (Story Series- Pairon Ki Dor 3)

"यह तो मंगती की बेटी है. आप ही इसका कोई अच्छा सा नाम रख दो."

"सोनी ठीक रहेगा." "हां अच्छा नाम है." वह खुश हो कर बोली. "तुम्हारा नाम?" इतना सुनते ही वह चुप हो गई. "अपना नाम बताओ ना." "प्रकाशी." घर से निकाले जाने के बाद पहली बार उसने किसी को अपना असली नाम बताया था. आज तक सब उसे मंगती ही पुकारते.

    "खुशी के साथ मुझे उसकी मां के आंसू भूलाए नहीं भूलते हैं. पिछले साल मुझे देखकर कितना फूट-फूट कर रो रही थी वह." "तुमने पूछा नहीं तेरी मां कैसी है?" "इतना तो समय ही नहीं मिला उसका परिचय पाकर तो मेरे दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया." "कोई बात नहीं है. अब तो तुम उसी शहर में हो. कभी भी उससे मिलकर सारे हालचाल पता कर सकती हो." "तुम ठीक कहते हो. आज उसे देख कर बता नहीं सकती मुझे कितना अच्छा लगा." रेनू बोली. उसके बाद थोड़ी देर अपनी बात करके उसने बात खत्म कर दी. वह आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गई. अचानक लेटते ही प्रकाशी का चेहरा उसके जेहन में उबरने लगा. प्रकाशी को वह पिछले बीस सालों से भली-भांति जानती थी. तब वह जवान थी और पागलों की तरह छोटी-सी बच्ची को गोद में लेकर लोगों से पैसे मांगती थी. अपनी बच्ची को अपने से एक घड़ी के लिए भी अलग न करती. अक्सर स्कूल जाते हुए रास्ते में उससे भेंट हो जाती. उसे पता था मैं टीचर हूं, इसीलिए मुझे हमेशा नमस्ते किया करती.   यह भी पढ़ें: स्पिरिचुअल पैरेंटिंग: आज के मॉडर्न पैरेंट्स ऐसे बना सकते हैं अपने बच्चों को उत्तम संतान (How Modern Parents Can Connect With The Concept Of Spiritual Parenting) वक्त गुजर रहा था. उसकी छोटी-सी बेटी अब उसके साथ हाथ पकड़ कर लोगों से पैसे मांगने लगी थी. एक दिन रेनू ने उसे रोककर बोला, "तू अपनी बेटी को स्कूल में भर्ती क्यों नहीं करा देती?" "सच मैडमजी, आप इसे अपने स्कूल में भर्ती कर देंगी?" "हां करा दूंगी. तुम कल स्कूल आ जाना. मैं स्कूल में इसका दाखिला कर दूंगी." इतना सुनकर वह बहुत खुश हो गई. दूसरे दिन वह सुबह सवेरे ही स्कूल पहुंच गयी. उसने आज बेटी का मुंह अच्छे से धो रखा था और साफ कपड़े भी पहना रखे थे. रेनू ने एक फार्म निकाला और बोली, "क्या नाम है इसका?" "यह तो मंगती की बेटी है. आप ही इसका कोई अच्छा सा नाम रख दो." "सोनी ठीक रहेगा." "हां अच्छा नाम है." वह खुश हो कर बोली. "तुम्हारा नाम?" इतना सुनते ही वह चुप हो गई. "अपना नाम बताओ ना." "प्रकाशी." घर से निकाले जाने के बाद पहली बार उसने किसी को अपना असली नाम बताया था. आज तक सब उसे मंगती ही पुकारते. "और इसके पिता का नाम?" "वह लिखना जरुरी है." "बता देगी, तो बाद में सोनी को कोई परेशानी नहीं होगी." "जोत सिंह." "इसका पता क्या लिख दूं?" "मेरा कोई घर तो है नहीं, जो मर्जी हो वही लिख दो." "ठीक है मैं अपना पता लिख देती हूं." इतना कहकर रेनू ने उसका फार्म भर दिया. प्रकाशी के चेहरे पर खुशी देखने लायक थी. कुछ देर बाद वह अचानक उदास हो गई. "क्या हुआ प्रकाशी?" उसने और बच्चों की तरफ नजर दौड़ाई. वह समझ गई कि उसे सोनी के लिए स्कूल ड्रेस चाहिए. "तू चिंता मत कर स्कूल ड्रेस मैं ला कर दूंगी." इतना सुनते ही उसका चेहरा फिर से खिल उठा. रेनू ने उसकी बेटी को क्लास में बिठा दिया और उसे जाने को कहा. ममता की मारी मां सारे दिन स्कूल के गेट पर बैठी रही और छुट्टी के समय उसे साथ लेकर ही गई. स्कूल से बाहर निकलते हुए रेनू ने उसे समझाया, "प्रकाशी क्या तुम सारे दिन यहीं बैठी रही?" "हां बेटी को अकेले कैसे छोड़ती?" "तू उसकी चिंता न किया कर. मैं हूं उसे देखने के लिए. तू अपने काम पर जाया कर. चार पैसे नहीं जुटाएगी, तो बेटी को क्या खिलाएगी?" "ठीक है मैडमजी कल से नहीं आऊंगी..."

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  डॉ. के. रानी     यह भी पढ़ें: ऑनलाइन पढ़ाई के दौर में ज़रूरी है बच्चों के लिए डिजिटल डिटॉक्स? (Why Digital Detox Is Necessary For Children Doing Online Education?)         अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

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