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कहानी- पराए घर की बेटियां 2 (Story Series- Paraye Ghar Ki Betiyaan 2)

“सुमति, बरही में मैंने काफ़ी सामान भेजा था. सास ने तो नहीं हड़प लिया?” “उन्होंने नहीं हड़पा, मैंने ही सब उन्हें सौंप दिया था. परिमार्जन बोले बेटा हुआ है तो सबका नेग बनता है. सास, दोनों ननदों और जेठानी को हम लोगों ने सोने के कंगन दे दिए.” अम्मा पर गाज गिरी, “बेसहूर, कंगाल हो जाएगी.” “न देती तो परिमार्जन को बुरा लगता.” “अपनी बड़ी बहनों को देखो पति को मुट्ठी में रखती हैं. कुछ सीखो.” स्त्रियों की मनोवृत्ति विचित्र होती है. बेटी को पढ़ाती हैं पति को मुट्ठी में रखो, बहू को आरोप देती हैं यह मेरे बेटे को मुट्ठी में रखती है. गोपी मायके जाए या न जाए या कब जाए, यह अम्मा तय करती हैं. गर्मी की छुट्टियों में गोपी के मायके में सभी भाई-बहन एकत्र होते हैं कि सबसे मिलना हो जाएगा. इधर यही समय गोपी की ननदों के आने का होता है. अम्मा उसे जाने की अनुमति नहीं देतीं. जब गोपी मायके जाती है, तब भाई-बहन जा चुके होते हैं. एक दिन उसने अम्मा से कहा था, “जाने दो अम्मा, शादी के बाद मैं अपने भाई-बहनों से कभी ठीक से नहीं मिली हूं.” अम्मा का स्पष्ट जवाब, “तुम्हें अब हमारी सुविधा-इच्छा देखना चाहिए. मीरा और नीरा साल भर में आती हैं, पर उनका ख़याल नहीं, भाई-बहनों का बहुत ख़याल रखती हो.” मीरा और नीरा के आगमन पर गोपी दिनभर चूल्हा संभालती है. विमल बड़े-बड़े झोले लिए बाज़ार दौड़ता है. मीरा और नीरा का पूरा समय ताश, सैर-सपाटे, बाज़ार में गुज़रता है. आमोद-प्रमोद में अम्मा तल्लीन हो जाती हैं. सुमति छह माह बाद मायके आई. अम्मा और गोपी के लिए साड़ी लाई. अम्मा से नहीं देखा गया, “मेरे लिए तो ठीक है, पर गोपी की चमची न बनो.” “अम्मा, भाभी को भी लगे कि कोई उनका ध्यान रखता है. वो हम सबका हमेशा ध्यान रखती हैं.” “बहू की लगाम जितना कसो, उतना ही क़ायदे में रहेगी.” “भाभी ने कभी क़ायदा तोड़ा अम्मा?” “ये बहस करना ससुराल में सीखा?” “हां. मैं बहू बनी, तो पता चला बहू की कुछ भावनाएं होती हैं. वह मान और सम्मान चाहती है. मेरी बड़ी ननद कनाडा लौट गई, पर छोटी के नखरे. उसकी जूठी थाली तक मैं उठाती हूं.” यह भी पढ़ेलघु उद्योग- कैंडल मेकिंग: रौशन करें करियर (Small Scale Industries- Can You Make A Career In Candle-Making?) अम्मा सदमे में, “सुमति तुम उसकी गुलाम नहीं हो.” “पर बहू तो हूं. बहू को ये सब करना चाहिए. अपने ही घर में देखती हूं अम्मा. गोपी भाभी...” “गई भाड़ में. परिमार्जन (सुमति का पति) से कहो तुम्हें अपने साथ ले जाए. अच्छी पोस्ट में है. तुम क्यों दबोगी इस छुटकी ननदिया से?” “वे ले जाना चाहते हैं, पर माताजी कहती हैं कुछ दिन हमारी सेवा करो.” “तुमने फेरे माताजी के साथ लिए हैं? बिटिया, तुम इस बुढ़िया की लगाम कसो.” अम्मा गोपी की लगाम कसना चाहती हैं और चाहती हैं सुमति अपनी दुराचारी सास की लगाम कसे. “नहीं अम्मा. परिमार्जन अपनी मां के सामने मुंह नहीं खोलते हैं.” “ऐसे भक्त हैं अम्मा के? प्रभु.” अम्मा को विमल पत्नी भक्त जान पड़ता है, परिमार्जन मातृ भक्त. “मैं चलूं अम्मा, भाभी का काम में हाथ बंटा दूं.” “चार दिन को आई हो. सुस्ता लो.” “अम्मा, यहां आदत बिगाड़ लूंगी तो ससुराल में अखरेगा. सुबह छह से रात बारह तक काम और काम.” “सुमति, तुम्हारी तो मजदूर से भी ख़राब हालत है.” गोपी और सुमति रसोई में आ गई. गोपी पूछने लगी, “सच कह रही हो क्या सुमति?” “भाभी मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है. वे अच्छे लोग हैं. मैं अम्मा को महसूस कराना चाहती हूं कि वे जो व्यवहार तुम्हारे साथ करती हैं, वही बेटी के साथ हो, तो कैसी आग लगती है. पर तुम अम्मा से ये सब नहीं बताओगी. आगे-आगे देखो, होता है क्या?” फिर सुमति अपने दो माह के बच्चे को लेकर मायके आई. अम्मा जल्दी ही मुख्य मुद्दे पर आ गईं, “सुमति, बरही में मैंने काफ़ी सामान भेजा था. सास ने तो नहीं हड़प लिया?” “उन्होंने नहीं हड़पा, मैंने ही सब उन्हें सौंप दिया था. परिमार्जन बोले बेटा हुआ है तो सबका नेग बनता है. सास, दोनों ननदों और जेठानी को हम लोगों ने सोने के कंगन दे दिए.” अम्मा पर गाज गिरी, “बेसहूर, कंगाल हो जाएगी.” “न देती तो परिमार्जन को बुरा लगता.” “अपनी बड़ी बहनों को देखो पति को मुट्ठी में रखती हैं. कुछ सीखो.” स्त्रियों की मनोवृत्ति विचित्र होती है. बेटी को पढ़ाती हैं पति को मुट्ठी में रखो, बहू को आरोप देती हैं यह मेरे बेटे को मुट्ठी में रखती है. “अम्मा यह गुर तो हमें आता नहीं. तुम्हीं से जाना है पहली संतान वह भी पुत्र हो तो सास-ननदों को कुछ देना चाहिए. गुड्डू (गोपी का पुत्र) हुआ तब तुमने भाभी के कंगन उतरवा लिए थे. दोनों जीजी और जीजाजी को क्या-क्या दिलवाया था. जब कि विमल भैया और भाभी की अलग से कमाई नहीं है. विमल भैया, बाबूजी के साथ दुकान संभालते हैं. मुझे याद है अम्मा, भैया सुनार की दुकान में जाकर भाभी के झुमके और अंगूठी साफ़ करवा लाए थे जीजी लोगों के लिए.” सुमति के द्रोह ने अम्मा की नींद उड़ा दी. दोनों बड़ी, अम्मा का निर्देश मानती हैं, लेकिन सुमति हौसले पस्त किए देती है. लड़की का यही आचरण रहा तो बेज़ुबान गोपी की ज़ुबान गजभर लंबी हो जाएगी. ग़ज़ब कर रही है लड़की. गर्मी में अम्मा ने तीनों बेटियों को बुलवाया. मीरा और नीरा ने योजना बना ली, लेकिन सुमति तो मानो उल्टी चाल ही चलेगी. फ़ोन कॉल किया उसकी तबियत ख़राब चल रही है. संभव हो तो भैया-भाभी कुछ दिनों के लिए आ जाएं. मदद मिल जाएगी और गुड्डू की आउटिंग भी हो जाएगी. भाभी नहीं आ सकती तो वह अपनी सास और छोटी ननद को बुला लेगी. अम्मा के सामने बड़ा चक्कर है. Sushma Munindra     सुषमा मुनीन्द्र

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