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कहानी- परिधान 2 (Story Series- Paridhan 2)

“सब बढ़िया चल रहा है ममा. आप सुनाइए, आप मौसी के यहां शादी में गई थीं, कैसी रही शादी? कैसी है उनकी नई बहू?” रीमा ने जैसे केतकीजी की दुखती रग पर हाथ रख दिया. रीमा अपनी मां के बहुत क़रीब थी, इसलिए केतकी ने अपने दिल का गुबार बेटी के सामने निकाल दिया. मां का हताशाभरा यह रूप देखकर रीमा अवाक् रह गई. उसे समझ ही नहीं आया कि क्या कहे.  दोपहर में मंजू हॉल में बच्चों को पढ़ा रही थी कि तभी केतकीजी ने उसे ख़बर दी, “मंजू, आज रीमा घर पर आ रही है, साथ में उसके सास-ससुर भी आ रहे हैं. वे तो आज ही चले जाएंगे, पर रीमा कुछ दिन रहेगी.” “वाह! बुआ आ रही है, फिर तो बड़ा मज़ा आएगा. ख़ूब मस्ती करेंगे.” बच्चे अपनी इकलौती बुआ के आगमन की बात सुनकर खिल उठे. बुआ से उनकी बहुत पटती जो थी और कोई न कोई गिफ्ट भी ज़रूर मिलता था. सूचना देकर केतकीजी जाने लगीं, तभी उनकी नज़र मंजू के कपड़ों पर पड़ी. मंजू स़फेद टॉप और ब्लू जींस में बैठी थी, बालों को ऊपर से लपेटकर क्लिप लगाया हुआ था. बहुओंवाला कोई बनाव-शृंगार नहीं था. केतकीजी की आंखों के सामने साड़ी में लिपटी सजी-धजी लता की मोहक छवि तैर आई. मन एक बार फिर खिन्न हो गया. “सुनो मंजू, रीमा के सास-ससुर के सामने ऐसे मत रहना. ज़रा बन-संवर के आना, हो सके तो साड़ी पहन लेना.” “मम्मीजी, मुझसे ये साड़ी-वाड़ी नहीं संभलती. अगर पहन भी ली, तो फिर मुझसे कोई काम नहीं हो सकेगा. साड़ी संभालूंगी या उनकी मेज़बानी करूंगी. ऐसा कीजिए साड़ी आप पहन लेना और काम मैं संभाल लूंगी.” कहकर मंजू अपने चिर-परिचित अंदाज़ में खिलखिलाकर हंस पड़ी, लेकिन केतकीजी को उसका यूं हंसना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. मंजू का ऐसा ही स्वभाव था. बात-बात पर हंसना-खिलखिलाना, जो दिल में है झट से कह देना. अभी तक केतकीजी को मंजू की यह बात बहुत पसंद थी, पर आज उसे यह ज़ुबान लड़ाना लग रही थी. यह भी पढ़ेपारंपरिक रिश्तों के बदल रहे हैं मायने (Changing Culture Of Relationship) रीमा अपने सास-ससुर के साथ आ गई थी. मंजू ने सबकी गरम-गरम नाश्ते के साथ, ख़ूब हंस-बोलकर आवभगत की. सब कुछ अच्छा चल रहा था, पर केतकीजी कुछ बुझी-सी थीं, जिसे रीमा ने भी महसूस किया था. जिस तरह से केतकीजी मंजू को देख रही थीं, रीमा ने भांप लिया कि ज़रूर भाभी और मां में कुछ शीत युद्ध चल रहा है. हालांकि वो आश्‍चर्यचकित थी, क्योंकि पिछले आठ सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ था. अपने समधियों को विदा कर केतकीजी रीमा के साथ बतियाने बैठ गईं. “और सुना, क्या हालचाल हैं तेरे? हमारे दामादजी का क्या हाल है?” “सब बढ़िया चल रहा है ममा. आप सुनाइए, आप मौसी के यहां शादी में गई थीं, कैसी रही शादी? कैसी है उनकी नई बहू?” रीमा ने जैसे केतकीजी की दुखती रग पर हाथ रख दिया. रीमा अपनी मां के बहुत क़रीब थी, इसलिए केतकी ने अपने दिल का गुबार बेटी के सामने निकाल दिया. मां का हताशाभरा यह रूप देखकर रीमा अवाक् रह गई. उसे समझ ही नहीं आया कि क्या कहे. “अच्छा चलो छोड़ो ममा, मुझे अपने हाथ की एक कप गरम-गरम अदरकवाली चाय पिलाओ ना...” कहकर रीमा ने बातों की धारा बदली. “हां-हां, क्यों नहीं, अभी बनाकर लाई.” केतकीजी ख़ुशी-ख़ुशी चाय बनाने चली गईं. वहीं दूसरी ओर रीमा सोच में पड़ गई कि यह बैठे बिठाए मां को क्या हो गया. केतकीजी चाय बनाकर लाईं, तो रीमा अपने बैग से कुछ निकाल रही थी. “ममा, पिछले महीने बैंगलुरू गई थी ना, तुम्हारे लिए कुछ लेकर आई हूं. देखो, लेने से मना मत करना, वरना मुझे बहुत दुख होगा.” रीमा ने झूठा ग़ुस्सा दिखाते हुए कहा. “अरे, क्यों मना करूंगी भला. वैसे भी तू मेरे टेस्ट को अच्छे से जानती है. तेरी लाई हुई सभी चीज़ें मुझे बहुत पसंद आती हैं.” रीमा ने ख़ुश होते हुए बैग से एक सुंदर-सा अनारकली सूट निकालकर केतकीजी की ओर बढ़ा दिया. सूट देखकर केतकीजी अचरज में पड़ गईं, पर रीमा की भावनाओं का ख़्याल रखते हुए थोड़ा संयत हुईर्ं, “रीमा, क्या ये अनारकली तू मेरे लिए लाई है? लेकिन तुझे तो पता है ना, मैं ये सब नहीं पहनती. बस, साड़ी ही पहनती हूं.” “मैं जानती हूं ममा, तुम नहीं पहनती, पर जब मैंने इसे देखा तो बस तुम्हारी ही याद आई, मेरे दिल ने कहा तुम इसमें कितनी ख़ूबसूरत और यंग लगोगी.” “पर रीमा...” “पर-वर कुछ नहीं ममा, क्या तुम मेरी ख़ुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकती. ये अनारकली तो तुम्हें पहनना ही पड़ेगा.” रीमा केतकीजी के गले में बांहें डालते हुए एक बच्चे की तरह ज़िद करने लगी. “ममा, क्या तुम्हें यह पसंद नहीं?” रीमा का स्वर रुआंसा हो चला. “पसंद तो है, बहुत सुंदर सूट है. ऐसा कर, तू इसे अपनी भाभी को दे दे, उस पर यह ख़ूब सूट करेगा.” यह भी पढ़ेलघु उद्योग- इको फ्रेंडली बैग मेकिंग: फ़ायदे का बिज़नेस (Small Scale Industries- Profitable Business: Eco-Friendly Bags) “नहीं ममा, मंजू भाभी के लिए नहीं, यह मैंने बड़े चाव से आपके लिए ही ख़रीदा है और मेरी यह ज़िद है कि आप ही इसे पहनेंगी. चलिए, अब जल्दी से इसे पहनकर दिखाइए.” केतकीजी की तो जैसे जान ही सकते में आ गई. Deepti Mittal      दीप्ति मित्तल

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