बेबस दीप्ति मां के तर्कों के आगे हार गई और उनके गले लगकर रो दी. अंकुर के बारे में सोचकर उसका कलेजा मुंह को आने लगा.पंद्रह दिन बाद ही एक सादे समारोह में दीप्ति और विनय का विवाह हो गया. कुछ दिन विनय के माता-पिता दोनों के साथ रहे, फिर वापस दिल्ली चले गए. दीप्ति नए घर, नए परिवेश और नए रिश्ते में अपने आपको ढालने का प्रयत्न करने लगी. विनय बहुत समझदार, प्यार करनेवाला और ध्यान रखने वाला जीवनसाथी था. दीप्ति बहुत ख़ुश थी, बस यही बात रह-रहकर उसे कचोटती रहती थी कि काश विनय उसकी ममता की तड़प को भी समझ पाता और अंकुर को भी अपना लेता.
दीप्ति दोबारा विवाह करने के लिए बिल्कुल तैयार न थी, पर सास-ससुर के तर्कों और याचना के आगे उसे झुकना पड़ा. दो-चार जगह खोज-ख़बर के बाद उन्हें विनय और उसका परिवार बहुत अच्छा लगा.
सारी बातें तय हो गईं. विवाह की तिथि पक्की हो गई. तब एक दिन मां ने बताया कि विनय अंकुर को अपनाने को तैयार नहीं है. दीप्ति पर तो मानो वज्रपात ही हो गया. उस मासूम से तो पिता का प्यार छीन ही लिया क़िस्मत ने, अब मां भी छिन जाएगी.
“मां, मैं यह विवाह नहीं करूंगी. मैं अंकुर से अलग नहीं रह सकती. विनय से कहिए अगर मुझसे विवाह करना है, तो मेेरे अंकुर को भी अपनाना पड़ेगा, वरना इस रिश्ते में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है.” दीप्ति ने साफ़-सपाट शब्दों में कह दिया.
“ऐसा मत बोल बेटी. हम हैं न अंकुर के साथ. सब जगह तुम्हारे विवाह की ख़बर हो चुकी है और मुझे विश्वास है कि तुम अपने अच्छे व्यवहार से विनय का मन जीत लोगी, तो एक दिन वह अंकुर को अवश्य अपना लेगा. तब अंकुर को मां-पिता दोनों मिल जाएंगे.” मां ने दीप्ति को समझाया.
बेबस दीप्ति मां के तर्कों के आगे हार गई और उनके गले लगकर रो दी. अंकुर के बारे में सोचकर उसका कलेजा मुंह को आने लगा.
पंद्रह दिन बाद ही एक सादे समारोह में दीप्ति और विनय का विवाह हो गया. कुछ दिन विनय के माता-पिता दोनों के साथ रहे, फिर वापस दिल्ली चले गए. दीप्ति नए घर, नए परिवेश और नए रिश्ते में अपने आपको ढालने का प्रयत्न करने लगी. विनय बहुत समझदार, प्यार करनेवाला और ध्यान रखने वाला जीवनसाथी था. दीप्ति बहुत ख़ुश थी, बस यही बात रह-रहकर उसे कचोटती रहती थी कि काश विनय उसकी ममता की तड़प को भी समझ पाता और अंकुर को भी अपना लेता.
वैसे दीप्ति को इस बात की तसल्ली थी कि विनय उसी शहर में रहता था. उसके ऑफ़िस जाते ही घर के काम करके वो अपनी दुकान पर चली जाती. स्कूल से अंकुर को भी पिताजी दीप्ति के पास छोड़ जाते. दोपहर भर दीप्ति अंकुर के साथ समय बिता लेती. उसे लाड़-प्यार कर लेती. लेकिन शाम को जब वह वापस घर आने लगती, तब अंकुर रुआंसा होकर उसका पल्लू पकड़ लेता, तब दीप्ति का कलेजा तार-तार हो जाता. बड़ी मुश्किल से वह भरी आंखों से फिर मिलने का वादा कर उससे विदा लेती.
रातभर अंकुर का रोता चेहरा उसके सामने घूमता रहता और वो सो नहीं पाती. कुछ महीने इसी तरह बीत गए. एक दिन दीप्ति को पता चला कि वह मां बननेवाली है. विनय की ख़ुशी का ठिकाना न रहा. वह दीप्ति का हर तरह से ख़्याल रखता. कुछ और महीने बीतने पर दीप्ति का दुकान पर जाना बंद हो गया और अंकुर से मिलने का ज़रिया भी. कभी-कभी मां-पिताजी अंकुर को दीप्ति के घर ले आते, पर रोज़-रोज़ तो यह संभव न था. उसका हृदय विकल रहता.
नियत समय पर दीप्ति ने एक बेटे को जन्म दिया. इस समय विनय के माता-पिता उसके पास आ गए. जब नन्हा तीन महीने का हो गया, तो वे लोग वापस चले गए. अब दीप्ति दिनभर नन्हें के देखभाल में लगी रहती. नन्हें की देखभाल के दौरान उसे हर पल अंकुर का लालन-पालन याद आता और वह तड़प उठती. वह दोपहर में अक्सर नन्हें को सीने से लगाकर अंकुर की याद में रोती रहती. उसके मन में अंकुर के बचपन की स्मृतियां सजीव हो जातीं. वह उसकी मासूमियत भरी बातें सुनने को तरस जाती. जीवनसाथी मिलने और दोबारा मां बनने के बावजूद वो अधूरी थी.
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विनय ऑफ़िस से आकर घंटों नन्हें के साथ खेलता रहता. रात में भी उठकर उसे संभालता. उसे घुमाने ले जाता. नन्हा अब पांच महीने का हो गया था. उसकी किलकारी से घर गूंजता रहता.
नन्हें को वैक्सीन लगवाने के बाद दीप्ति घर लाई, तो उसे बुख़ार हो गया. वह सारा दिन रोता रहता और चिड़चिड़ करता रहता. दीप्ति उसे संभालते-संभालते बहुत थक गई थी.
“विनय अगर आप इजाज़त दें, तो मैं कुछ दिनों के लिए मां के यहां हो आऊं. वहां नन्हें की देखभाल भी ठीक से हो जाएगी.” उसने विनय से पूछा.
“हां, दीप्ति हो आओ. तुम्हें भी थोड़ा आराम मिल जाएगा. बहुत थक गई हो तुम. मेरी चिंता मत करना. ऑफ़िस का कैंटीन बहुत अच्छा है, मैं वहीं खाना खा लिया करूंगा.” विनय ने सहर्ष अनुमति दे दी.
डॉ. विनीता राहुरीकर
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