मेरा मन न जाने कैसा-कैसा हो आया. एयरपोर्ट पहुंचकर मेरी नज़रें उसे तलाशती रहीं. मन में कितना कुछ उमड़-घुमड़ रहा था, जो आंखों के रास्ते नमी बनकर बह जाना चाहता था.
विमुखता में क्या कोई चुंबकीय शक्ति होती है. शायद हां, तभी तो उसका निरंतर मुझे नज़रअंदाज़ करना मुझे उसकी ओर खींच रहा था. जब दो लोग प्यार में होते हैं, तो कुछ भी ग़लत नहीं होता. पहले वह मेरे प्यार में था, तो मेरा क्रोध, मेरी नाराज़गी उसे बुरी नहीं लग रही थी... अब जबकि वो मुझसे विमुख हो चुका था, मेरा मन उसके प्यार में भीग चुका था ओस की नन्हीं बूंदों सा. चाहती थी मेरे वापस लौटने से पहले बस एक बार वह मुझे नज़र भरकर देख ले. मुझसे बात कर ले. उसकी नज़रों की जुम्बिश मेरे रेगिस्तान जैसे तृप्त हृदय को ठंडक पहुंचा दे. किंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. शाम छह बजे मेरी दिल्ली के लिए फ्लाइट थी. दोपहर में मैं अटैची में कपड़े रख रही थी. दीदी ने कितनी ही चीज़ें दे दी थीं. मम्मी और मेरी साड़ियां, पापा की पेंट-शर्ट, मिठाइयां और भी न जाने क्या-क्या, जिन्हें मैं बिना देखे बस अटैची में भरे जा रही थी. मेरी बेचैनी बढ़ रही थी. पता नहीं राहुल आएगा या नहीं? मैं उससे मिल पाऊंगी या नहीं? तभी जीजू कमरे में आकर बोले, ‘‘मीनू, राहुल को फोन करो. अभी तक आया क्यों नहीं? पता है अनु जा रही है फिर भी. लापरवाही की हद है.’’ ‘‘अरे बिज़ी होगा, आ जाएगा. घर नहीं तो एयरपोर्ट पर तो अवश्य आएगा.’’ ‘‘तुम्हारी यही प्राॅब्लम है मीनू. उसकी ग़लती में भी उसी की साइड लेती हो.’’ मेरा मन न जाने कैसा-कैसा हो आया. एयरपोर्ट पहुंचकर मेरी नज़रें उसे तलाशती रहीं. मन में कितना कुछ उमड़-घुमड़ रहा था, जो आंखों के रास्ते नमी बनकर बह जाना चाहता था. मेरी बेचैनी को भांप दीदी बोलीं, ‘‘इतना परेशान क्यों हो रही है? जल्दी आऊंगी मैं.’’ मैं मायूस हो गई. दीदी भी मेरी भावनाओं को समझ नहीं रही थीं. सारी औपचारिकताएं पूरी कर मैं प्लेन में जा बैठी. बादलों के ऊपर उड़ना सदा से मुझमें रोमांच पैदा करता रहा है, किंतु आज निस्पृहभाव से बस मैं उन्हें ताक रही थी.यह भी पढ़ें: रिश्तों को लेंगे कैज़ुअली, तो हो जाएंगे रिश्ते कैज़ुअल ही… ऐसे करें अपने रिश्तों को रिपेयर! (Relationship Repair: Simple Ways To Rebuild Trust & Love In Your Marriage)रात हो गई थी मुझे घर पहुंचने में. दस दिनों बाद घर लौटी थी. बताने को बहुत कुछ था मम्मी-पापा को, किंतु कुछ भी कहने-सुनने की इच्छा नहीं थी, इसलिए नींद का बहाना बनाकर अपने कमरे में चली गई. थकान के बावजूद मैं सो नहीं पा रही थी. स्मृतियों के भंवर में उठती लहरों के थपेड़े मुझे विगत दिनों में घसीट रहे थे... अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
रेनू मंडल
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