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कहानी- प्रणय परिधि 5 (Story Series-Pranay Paridhi 5)

‘‘सोचा था, दोनों बहनें प्यार से एक ही घर में रहेंगी. इतना अच्छा लड़का, इतना बढ़िया घर-परिवार मिलेगा कहीं. परंतु नहीं, महारानी के सिर पर तो लव मैरिज का भूत सवार है. यह सब आपके सिर चढ़ाने का नतीज़ा है." पापा ख़ामोश रहे. मेरी रुलाई फूटने को हुई.

    ... ‘‘वह सुबह सात बजे ही हास्पिटल चला गया.’’ मेरा मन रोने को हो आया. मेरी तबियत की वजह से जीजू ने मेरी फ्लाइट कैंसिल करवा दी. मैंने भी इंकार नहीं किया. हो सकता है अपनी भूल को सुधारने का मौक़ा मिल जाए. किंतु राहुल ने वह मौक़ा मुझे नहीं दिया. सुबह छह बजे हास्पिटल के लिए निकलता और देर रात गए लौटता. क्यों इंसान सहज ही प्राप्त हुए सुख की कद्र नहीं करता? अब उसकी एक शरारतभरी मुस्कान के लिए मैं तरस रही थी. दस दिन बाद निराशा के गर्त में डूबी मैं वापस लौट आई. रातभर मैं सिसकती रही, पछताती रही अपनी नादानी पर. अनजाने ही मेरा मन राहुल से बंध गया था. शिद्दत से चाहने लगी थी मैं उसे, किंतु वह... वह मुझसे दूर हो चुका था. आख़िर क्यों भूल गई मैं कि हास-परिहास तो जीवन का हिस्सा है. ज़िंदादिली की निशानी है. उसी से जीवन में इन्द्रधनुषी रंग बिखरते हैं. इस सृष्टि में सिर्फ़ इंसान को ही ईश्वर ने हंसने का गुण दिया है. फिर क्यों नहीं उसकी छोटी-छोटी शरारतों पर मैं मुस्कुरा ना सकी? कहां चला गया था मेरा सेंस ऑफ हयूमर? सुबह कमरे से बाहर आई, तो सुना मम्मी पापा से कह रही थीं, ‘‘सोचा था, दोनों बहनें प्यार से एक ही घर में रहेंगी. इतना अच्छा लड़का, इतना बढ़िया घर-परिवार मिलेगा कहीं. परंतु नहीं, महारानी के सिर पर तो लव मैरिज का भूत सवार है. यह सब आपके सिर चढ़ाने का नतीज़ा है." पापा ख़ामोश रहे. मेरी रुलाई फूटने को हुई. हल्के-फुल्के ढंग से कही गई मेरी बात का ऐसा बतंगढ़ बन जाएगा, नहीं जानती थी. यह भी पढ़ें: प्यार में क्या चाहते हैं स्री-पुरुष? (Love Life: What Men Desire, What Women Desire) मेरी उदिग्नता दिनोंदिन बढ़ रही थी. हर पल राहुल का ख़्याल मेरे दिलोदिमाग़ पर छाया रहता. दिन में कितनी ही बार दीदी को फोन करती आख़िर कभी तो वह राहुल का ज़िक्र करेंगी, किंतु उनकी दुनिया जहान की बातों के बीच एक बार भी उसका नाम नहीं आया. एक दिन मम्मी ने मुस्कुराते हुए न्यूज़ दी, ‘‘कल शाम मीनू, रजत और राहुल आ रहे हैं.’’ मैं हुलस उठी. आंखों में उम्मीद की एक लौ सी प्रज्जवलित हुई. ‘‘कोई ख़ास बात है क्या मम्मी?" "राहुल शिकागो जा रहा है.’’ मुझे सारा घर घूमता-सा लगा. निराशा के घने कोहरे ने मन को अपनी गिरफ़्त में ले लिया. उम्मीद की लौ आंधी के थपेड़े से बुझ गई. आजीवन अपनी भूल पर पछताना ही अब मेरी नियति थी. अगले दिन ऑफिस में मन नहीं लगा. अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... Renu Mandal रेनू मंडल     अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

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