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कहानी- प्रीत के रंग हज़ार 1 (Story Series- Preet Ke Rang Hazar 1)

श्‍लोक से जुड़ने से पहले जीवन के सूने जलते रेगिस्तान में नंगे पैर अकेली ही तो वह दौड़ रही थी. चारों ओर फैली ख़ामोशियों एवं वर्षों की तन्हाइयों से जूझती हुई वह टूटकर बिखरने ही वाली थी कि श्‍लोक की सबल बांहों ने उसे थाम लिया. ऋचा का बावरा मन एक ओर प्रीत के लहराते समंदर में डूब रहा था, वहीं उसके अंतर्मन में अतीत के चक्रवाती झंझावात भी चल रहे थे.  ‘’ओह अभी तक उठे भी नहीं! हमें देरी हो रही है.” अपनी प्यारभरी नज़रों से सहलाते हुए ऋचा ने अपने पति श्‍लोक को झकझोर कर उठाते हुए कहा. प्रत्युत्तर में श्‍लोक ने उसे खींचकर अपनी बांहों में भर लिया, तो वह निहाल हो उठी. श्‍लोक के प्रगाढ़ बंधन में बंधने को उसका आतुर मन स्वतंत्र होने की असफल चेष्टा में और बंधता रहा. उसके भीगे बालों में अटकी पानी की बूंद मोती बनकर श्‍लोक के तन पर बिखर रही थी. ऋचा ने आज भरपूर सिंदूर से अपनी मांग सजाई थी, जिसकी लाली श्‍लोक की छाती को रंगे जा रही थी. श्‍लोक की आगोश में सिमटी 33 वर्षीय ऋचा किसी नवयौवना की तरह सिहर रही थी. युगों तक वह अपने पति की आगोश में यूं ही बंधी रहे, उसका रोम-रोम गुनगुना रहा था. शादी के चार हफ़्ते हो रहे थे, पर उसका तन-मन अभी तक प्यासा सावन ही बना हुआ था. श्‍लोक से जुड़ने से पहले जीवन के सूने जलते रेगिस्तान में नंगे पैर अकेली ही तो वह दौड़ रही थी. चारों ओर फैली ख़ामोशियों एवं वर्षों की तन्हाइयों से जूझती हुई वह टूटकर बिखरने ही वाली थी कि श्‍लोक की सबल बांहों ने उसे थाम लिया. ऋचा का बावरा मन एक ओर प्रीत के लहराते समंदर में डूब रहा था, वहीं उसके अंतर्मन में अतीत के चक्रवाती झंझावात भी चल रहे थे. 10 साल पहले अमरनाथ यात्रा के दौरान मम्मी-पापा को खोने के बाद भारत कहां जा पाई. पापा की सारी संपत्ति के मालिक उसके चाचा थे. दो हफ़्ते बाद श्‍लोक से वह शादी कर रही है, इसकी सूचना अपने चाचा को दे दी थी. उनके लाख समझाने के बावजूद भारत आकर शादी करने के लिए वह तैयार नहीं हुई. शादीवाले दिन अपने गिनती के दोस्तों के साथ गणपति मंदिर के लिए वह प्रस्थान करने ही वाली थी कि नाना प्रकार के तामझाम के साथ उसके चाचा भारत से भागते हुए आए, तो मम्मी-पापा को याद कर उसकी आंखें बरस पड़ी थीं. फिर शादी की सारे रस्मों को उन्होंने सहर्ष निभाया. जाते समय भारत की सारी प्रॉपर्टी को बेचकर जो एक्सचेंज लाए थे, श्‍लोक को आशीर्वाद के रूप में थमा गए. हनीमून के लिए वे स्विट्ज़रलैंड गए. वहां की ख़ूबसूरत वादियों का दोनों ने ख़ूब आनंद उठाया. वहां से आने के बाद आज हफ़्तेभर बाद भी उनके प्यार की ख़ुमारी अभी तक उतरी नहीं थी. न्यूयॉर्क घूमने का आज उनका प्रोग्राम था और श्‍लोक को बिस्तर छोड़ने का मन ही नहीं हो रहा था. मिलन के ऐसे पल कितने मादक होते हैं, उसे इसका एहसास कहां था. श्‍लोक के प्यार ने उस पर अपनी चांदनी क्या बिखेरी, वह समंदर बनकर ही उमड़ पड़ी. ऐसे भी जीवन में उसे जो कुछ भी प्यारा लगा, वक़्त उससे आज तक छीनता ही तो रहा है. बचपन में अपने से 10 साल छोटे भाई को, उसकी नन्हीं मां बनकर प्यार किया. एक दिन की बीमारी में ही वह छोड़ गया, तो उसका नन्हा-सा मन कितना टूटा था. इस आघात को भूलने में उसे वर्षों लगे थे. भाई की मृत्यु के बाद सभी तरह से टूटे मम्मी-पापा के जीने का आसरा वही बनी. समय के साथ खेल-खेल में ही जब वह फिज़िक्स और मैथ्स के कठिन प्रश्‍नों को हल करने लगी, तो उसकी अद्भुत प्रतिभा को देख सभी दंग रह गए. स्कूल के सारे पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए इंजीनियरिंग में प्रथम स्थान लेकर जब वो आईआईटी, कानपुर गई, तो मम्मी-पापा की ख़ुशियों का ठिकाना नहीं था. जिस स्थान पर आज तक लड़के ही विराजते रहे, उस पर अपना आधिपत्य जमाकर उसने सारे देश को चौंका दिया था. फिर बधाइयों का सिलसिला महीनों तक चलता रहा. आईआईटी कानपुर से निकलने के पहले ही हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल अमेरिका ने वीजा, लोन और हॉस्टल में रहने की व्यवस्था करके, उसकी प्रतिभा और उपलब्धियों को गगनचुंबी बना दिया. ऋचा ने भी उनके किए का मान रखने में कोताही ना बरती. यह भी पढ़े: रिश्तों में बदल रहे हैं कमिटमेंट के मायने… (Changing Essence Of Commitments In Relationships Today) इन छह सालों में न जाने कितनों ने उसकी राहों में आंखें बिछाईं, उसे थामने के लिए कितने हाथ बढ़े, पर वह इन सबसे बेख़बर किसी दूसरे देश में, अपने देश का नाम रौशन करती रही. हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल से निकलने के पूर्व ही दुनिया की सबसे नामी कंपनी ने बहुत ऊंचे पद पर उसकी बहाली करते हुए उसके वीज़ा आदि का प्रबंध हाथोंहाथ कर दिया, तो उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. उसके ग्रैजुएशन के प्रोग्राम में उसके मम्मी-पापा आनेवाले थे. टिकट भी बन चुका था. दो साल की लंबी अवधि के बाद उन दोनों से मिलने की आकांक्षा में बड़ी बेसब्री के साथ दिन बीत रहे थे कि उन दोनों की असमय मौत की सूचना बिजली बनकर गिरी. ब़र्फ के प्रचंड तूफ़ान ने ना जाने उनके हल्के-फुल्के शरीर को हज़ारों फीट नीचे किस घाटी में फेंक दिया था कि उनके मृत शरीर भी नहीं मिल सके. बड़े ही बुझे मन से वह भारत गई और मृत्यु के बाद सभी विधियों को पूरा करके वापस लौट आई. उस नाज़ुक दौर में वेद का उसके जीवन में आना किसी दैविक चमत्कार से कम नहीं था. उसकी बांहों में लिपटकर मम्मी-पापा की मृत्यु की असहनीय वेदना को भूलने की कोशिश करती रही. सारे रिश्तों का पर्याय बना वेद हर प्रतिकूल परिस्थितियों में उसे संभालता रहा. कितना टूटकर प्यार किया था दोनों ने एक-दूसरे को. प्रीत की इंद्रधनुषी कायनात, फूलों और परियों की नगरी न्यूयॉर्क की ज़मीं पर उतर आए थे. “चलो, आज ही किसी मंदिर में शादी कर लेते हैं.” वेद का ऐसा कहना उसे कितना रोमांचित करके रख देता था. तब उससे एकाकार होने के लिए वह कितनी लालायित हो उठती थी. पर दूसरे पल ही वेद के संपूर्ण व्यक्तित्व पर उतर आई दैविक आभा से वह घुंघरुओं की तरह खनक कर रह जाती. Renu Srivastava      रेणु श्रीवास्तव

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