आर्यन के घर बिताया वह एक दिन अविस्मरणीय था. आर्यन की यादों की जुगाली करते हुए उसके माता-पिता, रिश्तेदार, पड़ोसी उसके बारे में जो कुछ उगले जा रहे थे, मेरे लिए वो सब पचाना बहुत मुश्किल हो गया था. ऐसा लग रहा था वे श्री के बारे में बातें कर रहे हैं. कितना अद्भुत साम्य था दोनों में! मैं व्यर्थ ही नीरा पर नाराज़ होता रहा. तीन दिन हो गए हैं, बेचारी को अकेले छोड़े, रोते-रोते बेहाल हो गई होगी. चिंतातुर मैंने घर में प्रवेश किया, पर वहां की तो फ़िज़ा ही बदली हुई थी.
“फालतू की बातें सोचकर मेरा और अपना दिमाग़ ख़राब मत करो नीरा. वह चालाक लड़का तुम्हारे दिल में और फिर इस घर में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा है. याद नहीं, उसकी मां ने क्या कहा था? वह बहुत होमसिक है.”
मेरी ओर से निराश होकर नीरा बगीचे में जाकर पौधों को पानी देने लगी थी. अपने व्यवहार पर मैं ख़ुद ही शर्मिंदा हो उठा था. क्या ज़रूरत थी मुझे उस मासूम से दिल को ठेस पहुंचाने की? क्या मैं उसे ख़ुश नहीं देखना चाहता? मैं आत्मविश्लेषण करने लगा था. और इस प्रक्रिया में मन की कई अव्यक्त ग्रंथियां स्वतः ही मेरे सम्मुख खुलती चली गई थीं. मैं जानता था यह लड़का जल्दी ही नीरा के दिल में बेटे की जगह बना लेगा. नीरा ख़ुश रहने लगेगी. लेकिन कल को, जब यह पढ़ाई पूरी कर घर लौट जाएगा तब? तब नीरा का क्या होगा? बड़ी मुश्किल से तो श्री के जाने का ग़म थोड़ा हल्का कर पाई है. सब कुछ जानते-समझते हुए मैं उसे एक बार फिर से भावनाओं के गहरे कुएं में कैसे धकेल सकता हूं? नहीं, उसका आर्यन से इतना जुड़ाव ठीक नहीं. पर मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया था. आर्यन का घर में आना-जाना और नीरा का उसे दुलारना बढ़ता ही चला गया था. मेरी नापसंदगी शायद दोनों ने ही भांप ली थी, इसलिए उनका यह मेल-मिलाप, लाड़-दुलार मेरी अनुपस्थिति में ही ज़्यादा होता था. फिर एक दिन नीरा ने मेरे सम्मुख एक अप्रत्याशित-सा प्रस्ताव रख दिया...
उसने सहमते हुए बताया कि मधु भाभी का फोन आया था. आर्यन इस घर में इतना हिलमिल गया है कि वह हॉस्टल छोड़कर यहीं आ जाना चाहता है, तो हम उसे पेइंग गेस्ट रख लें.
“यह तो होना ही था. पकड़ लिया न उंगली पकड़ते-पकड़ते पहुंचा.” मेरा ग़ुस्सा फट पड़ा था. नीरा एकदम मायूस हो गई थी.
“आप ग़लत समझ रहे हैं जी. आर्यन ऐसा नहीं है. मैं आपसे सच कह रही हूं. वह हमारा श्री ही है.”
“नीरा, तुम बहुत भोली हो. ख़ैर, अब मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा. तुम्हें जिसमें ख़ुशी मिलती है, तुम वैसा करो. पर हां, हम उनसे कोई पैसे नहीं लेंगे.” मैंने ज़बर्दस्ती मुस्कुराते हुए उसे सीने से लगा लिया था और वह बच्चों की तरह ख़ुश होकर मुझसे लिपट गई थी. मैंने ख़ुद को समझा लिया था कि भविष्य में जो होगा, देखा जाएगा, पर वह सब सोचकर मुझे नीरा की वर्तमान ख़ुशियां छीनने का कोई अधिकार नहीं है.
आर्यन अगले ही दिन हमारे घर शिफ्ट हो गया था और मैंने उसे गले लगाकर उसका भी भय दूर कर दिया था. ज़िंदगी फिर एक ख़ुशहाल ढर्रे पर चल पड़ी थी. गर्मी की छुट्टियों में आर्यन अपने मम्मी-पापा के पास चला गया था और तभी वह दिल दहला देनेवाली ख़बर आई थी. नक्सलियों ने आर्यन को अगवा करके मार डाला था. नीरा का हाड़ कंपा देनेवाला रुदन सुनकर मैं एक बार फिर दहल गया था. इसी दुर्दिन की आशंका ने तो मुझे इतना निष्ठुर बनने पर मजबूर किया था. अगले ही दिन आर्यन का दाह-संस्कार और बैठक थी. मुझे आज ही रवाना होना पड़ेगा. मैं नहीं चाहता था नीरा साथ चले. इस बार शायद भगवान ने मेरी यह छोटी-सी अर्ज सुन ली. मेरे सामने एक अच्छा बहाना भी आ गया. हमारे नए किराएदार कल ट्रेन से पहुंचनेवाले थे और आज किसी भी व़क्त उनके सामान का ट्रक आ सकता था. हम दोनों में से किसी एक का घर पर होना बहुत ज़रूरी था. और आश्चर्य, नीरा एक ही बार में मान गई. उसने साथ चलने की ज़िद नहीं की.
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आर्यन के घर बिताया वह एक दिन अविस्मरणीय था. आर्यन की यादों की जुगाली करते हुए उसके माता-पिता, रिश्तेदार, पड़ोसी उसके बारे में जो कुछ उगले जा रहे थे, मेरे लिए वो सब पचाना बहुत मुश्किल हो गया था. ऐसा लग रहा था वे श्री के बारे में बातें कर रहे हैं. कितना अद्भुत साम्य था दोनों में! मैं व्यर्थ ही नीरा पर नाराज़ होता रहा. तीन दिन हो गए हैं, बेचारी को अकेले छोड़े, रोते-रोते बेहाल हो गई होगी. चिंतातुर मैंने घर में प्रवेश किया, पर वहां की तो फ़िज़ा ही बदली हुई थी. डाइनिंग टेबल पर एक 5-6 साल की लड़की बैठी थी और नीरा उसे गर्म-गर्म आलू का परांठा परोस रही थी. लड़की ने मुझे नमस्ते किया, तो नीरा का ध्यान मेरी ओर गया.
“अरे, आप आ गए. हाथ-मुंह धोकर आ जाइए. आप भी गर्म खाना ले लीजिए.” मेरी उम्मीद के विपरीत नीरा बिल्कुल सामान्य थी.
“अरे, मैंने तो बताया ही नहीं... यह पिंकी है. हमारे नए किराएदार की बेटी. पति-पत्नी दोनों जॉब में हैं. इसलिए बेटी को के्रच में डाल रहे थे. मैंने बड़ी मुश्किल से रोका. अब यह 12 बजे स्कूल से छूटते ही मेरे पास आ जाती है. मैं भी तब तक घरेलू कामों से निवृत्त हो जाती हूं, फिर शाम तक यह मेरे ही पास रहती है. बहुत प्यारी और एक नंबर की बातूनी है और पता है, इसे भी हमारे श्री और आर्यन की तरह आलू के परांठे बेहद पसंद हैं. ले, आधा और ले ले...”
मैं सीधा पूजाघर में घुस गया और देवी मां के सम्मुख मत्था टेक दिया.
“अब कभी तुझे नहीं कोसूंगा मां. तेरी लीला अपरंपार है. समझ गया हूं. तेरे रहते कभी किसी ममतामयी मां की कोख खाली नहीं रह सकती.”
संगीता माथुर
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