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कहानी- प्यार जैसा कुछ नहीं, लेकिन… 3 (Story Series- Pyar Jaisa Kuch Bhi Nahi, Lekin… 3)

 

मैंने अगले कुछ महीने तक उस गली के अकेलेपन का अनुभव अपने भीतर किया. वहां शोर होता, किंतु मुझे गली मौन लगती. मानो वो अपने साथ गली की आवाज़ को भी ले गया. उसकी बेशर्म मुस्कुराहट कानों में आवाज़ देती, उसे वो जैसे मेरे आसपास ही छोड़ गया था. उस दौरान एक बात जो मैं स्वयं में टटोलती और फिर वहां ना पाकर आश्वस्त हो जाती, वह थी प्यार जैसी कोई भावना.

          ... वैसे लिफ़ाफ़े में झांकते ही मैडम का ख़ुशी के मारे फुला मुंह पहले तो पिचका फिर शरारत से खिल उठा. मुझे कुछ समझ नहीं आया, तो मैंने फिर कहा, “अब तो फेंक दे.” वह मेरी तरफ़ लिफ़ाफ़ा लहराते हुए बोली, “मैं तो फेंक दूंगी, लेकिन तू सोच ले, इस लिफ़ाफ़े के बिना तो तू परीक्षा देने से रही.” उसकी बात सुनते ही मेरी आंखें बड़ी हो गईं, “क्या बक रही है.” इतना कहकर मैंने लिफ़ाफ़ा उसके हाथ से छीन लिया. लिफ़ाफ़े में मेरा एडमिट कार्ड था. मैंने तुरंत अपने बैग को टटोला. वहां कॉलेजवाला लिफ़ाफ़ा तो था, लेकिन एडमिट कार्ड गायब. “कल कॉलेज से लौटते समय गिर गया होगा.” मैं केवल इतना ही कह पाई.   यह भी पढ़ें: सीखें हस्तरेखा विज्ञान: हृदय रेखा से जानें अपनी पर्सनैलिटी और लव लाइफ के बारे में (Learn Palmistry: Heart Line Tells A Lot About Your Personality And Love Life)     अगले दिन जब हम ऑटो स्टैंड पहुंचें, वो वहां पहले से खड़ा था. उसके चेहरे की मुस्कान मुझे असहज कर रही थी. मुझे ग़ुस्सा भी आया और रोना भी. ग़ुस्सा न मालूम किस पर आ रहा था. ख़ुद पर, उस पर, उस लिफ़ाफ़े पर जो उसे मिल गया या अपनी आंखों पर जो उठ ही नहीं रही थीं. कोई और उपाय न देखकर मैंने सामने खड़ी एक साइकिल को ग़ुस्से में लात मार दी. साइकिल अपने साथ खड़ी दो और साइकिलों को लेकर गिर गई. वह ज़ोर से हंस पड़ा. उसकी बेपरवाह हंसी की आवाज़ मेरे कानों में तब तक गूंजती रही, जब तक मैं ऑटो में बैठकर वहां से निकल नहीं गई. अगला एक साल भी यूं ही बीत गया. न मैंने अपना रास्ता बदला और न उसने अपना ठिकाना. फिर एक सुबह वो वहां नहीं था. उस दिन मैंने नज़र उठाकर पहली बार गली को ठीक से देखा. न जाने क्यों गली भी कुछ बेचैन-सी लगी. उस दिन मैंने यह भी जाना कि उस गली के साथ-साथ मुझे भी, उसकी प्रतीक्षारत आंखों की आदत हो गई थी. मेरे मन के अंदर के सवालों को गरिमा ने पढ़ लिया और फिर एक खुलासा किया, “मिश्राजी पोस्ट ग्रैजुएशन की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली कूच कर गए हैं. विश्वस्त सूत्रों से जानकारी प्राप्त हुई है कि उनका दाख़िला वहां के अच्छे कॉलेज में हो गया है.” मैंने चौंक कर उसे देखा और पूछ लिया, “कौन? किसके बारे में बात कर रही है?” मेरे इस दिखावे को उसने भी पकड़ लिया और आंख मारकर बोली, “इस गली का नाम शोभित मिश्रा है.” “शोभित...” मन ने जब यह नाम लिया, तो मैंने उसे डांटकर चुप करा दिया और गरिमा से बोली, “मुझे इस गली के नाम से क्या मतलब.” तब ये मैंने गरिमा से कहा या ख़ुद से, आज तक समझ नहीं पाई हूं. मैंने अगले कुछ महीने तक उस गली के अकेलेपन का अनुभव अपने भीतर किया. वहां शोर होता, किंतु मुझे गली मौन लगती. मानो वो अपने साथ गली की आवाज़ को भी ले गया.   यह भी पढ़ें: रोमांटिक रिलेशनशिप के लिए 13 Best & Effective लव टॉनिक (13 Best and Effective Love Tonic for Romantic Relationship)     उसकी बेशर्म मुस्कुराहट कानों में आवाज़ देती, उसे वो जैसे मेरे आसपास ही छोड़ गया था. उस दौरान एक बात जो मैं स्वयं में टटोलती और फिर वहां ना पाकर आश्वस्त हो जाती, वह थी प्यार जैसी कोई भावना.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

पल्लवी पुंडीर       अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES     डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.

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