दोनों आपस में चुहलबाज़ियां कर रही थीं. उन्होंने सामने बैठी नूपुर को देखा, तो नूपुर ने एक हल्की-सी स्माइल देते हुए ‘हैलो’ बोला. उन्होंने भी पलटकर स्माइल दी. “आप दोनों सहेलियां हैं?” नूपुर ने पूछा. “हां, आप यह भी कह सकती हैं... दरअसल, हम दोनों बहनें हैं और साथ ही हम बहुत अच्छे दोस्त भी हैं.” उनके जवाब से नूपुर के चेहरे पर फीकी-सी मुस्कुराहट दौड़ गई. इस मुस्कुराहट के पीछे दिल चीरनेवाला दर्द भी था, जिसे उसने बड़ी मुश्किल से भीतर दबा रखा था.
जैसे ही नूपुर का ऑटो रेलवे स्टेशन पर आकर रुका, कुलियों की भीड़ ने जैसे धावा बोल दिया. इतना शोर सुनकर उसके हाथ-पैर फूल गए. वह ऑटो से संभलकर उतरी और अपना लगेज पकड़ सधे कदमों से चलने लगी. खचाखच भरे रेलवे स्टेशन को देख उसकी वापस हालत पतली हो गई. इतनी भीड़ में चलने, संभलने की आदत ही छूट गई थी उसकी. बरसों से अमेरिका में रह रही थी. वहां इतनी भीड़, इतनी मारामारी नहीं होती. तीन साल बाद भारत आई थी और इस बार तो उसे सड़क पर चलते हुए भी डर लग रहा था. ख़ैर, जैसे-तैसे उसने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से दून शताब्दी ट्रेन पकड़ी और अपनी सीट पर बैठ राहत की सांस ली.
उस कोच में उसकी सेंटर प्लेस पर सीट थी. सामनेवाली सीट पर दो युवा लड़कियां बैठी थीं. देखने में कॉलेज स्टूडेंट लग रही थीं. बैठते ही दोनों ने सेल्फी ली, “चल इसे पापा को व्हाट्सऐप कर दे, उन्हें चैन पड़ जाएगा कि हम ठीक से बैठ गए.” एक ने दूसरी से कहा.
दोनों आपस में चुहलबाज़ियां कर रही थीं. उन्होंने सामने बैठी नूपुर को देखा, तो नूपुर ने एक हल्की-सी स्माइल देते हुए ‘हैलो’ बोला. उन्होंने भी पलटकर स्माइल दी. “आप दोनों सहेलियां हैं?” नूपुर ने पूछा.
“हां, आप यह भी कह सकती हैं... दरअसल, हम दोनों बहनें हैं और साथ ही हम बहुत अच्छे दोस्त भी हैं.” उनके जवाब से नूपुर के चेहरे पर फीकी-सी मुस्कुराहट दौड़ गई. इस मुस्कुराहट के पीछे दिल चीरनेवाला दर्द भी था, जिसे उसने बड़ी मुश्किल से भीतर दबा रखा था. वह ज़रा भी ज़ेहन में आता, तो आंखों से नमकीन पानी टपकने लगता, इसलिए वह अपना मन कहीं और लगाने की भरपूर कोशिश कर रही थी, मगर सामने बैठी इन दो बहनों ने उसके ताज़ा ज़ख़्मों पर जैसे नमक छिड़क दिया था. अपनी छोटी बहन नंदिनी के बारे में भी वह यही सोचा करती थी. हम बहनों से बढ़कर सच्चे दोस्त हैं... एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी. एक-दूसरे के विश्वसनीय हमराज़, मगर इस बार उसका यह अटूट विश्वास बुरी तरह चकनाचूर हुआ था.
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एक समय था जब वे दोनों बहनें भी ऐसी ही घुली-मिली खिलखिलाती रहतीं. हर व़क्त हंसी ठट्टा, कभी इसकी खिंचाई, कभी उसका मज़ाक... सारा दिन यूं ही हंसते-खेलते निकल जाता. फिर उनके पिता को एक गंभीर बीमारी ने घेर लिया, जिसके चलते दोनों बहनों के आनन-फानन में मैट्रीमोनियल से देख रिश्ते पक्के कर दिए गए. नूपुर को एक एनआरआई से शादी कराकर अमेरिका भेज दिया गया और नंदिनी दिल्ली के एक बिज़नेसमैन से ब्याह दी गई. उनकी शादी के तीन साल के
अंदर ही पहले पिता और फिर मां, दोनों का देहांत हो गया. अब वे दोनों बहनें ही एक-दूसरे का मायका थीं. नंदिनी तो कभी अमेरिका नहीं जा पाई, मगर नूपुर साल-दो साल में एक चक्कर लगा ही लेती.
मां के गुज़र जाने के बाद नंदिनी अपने पति के साथ मायके के पुश्तैनी मकान में शिफ्ट हो गई. नूपुर को कहा इस घर में रहने से ऐसा लगता है जैसे मम्मी-पापा साथ ही हैं. नूपुर भी ख़ुश थी कि चलो, जब वह भारत आएगी, तो उसे भी मायके की चौखट खुली मिलेगी. भारत आकर वह उस घर की दीवारों को चूमती. पुराने परदों, मां की रखी पुरानी साड़ियों से लिपट जाती और अपने अतीत को जीने की भरपूर कोशिश करती. नंदिनी के पति थोड़े सख़्त स्वभाव के थे और ज़्यादातर अपने बिज़नेस में व्यस्त रहते. नूपुर वहां आती, तो दोनों बहनें खूब घूमती-फिरतीं, शॉपिंग करतीं और जी भरकर गप्पे लड़ातीं. वहां आकर जैसे नूपुर के बुझे दिल में भी थोड़ी उमंग जाग जाती.
नूपुर के पति दिनेश का अमेरिका में इंपोर्ट-एक्सपोर्ट का बिज़नेस था. वह एक प्रैक्टिकल और महत्वाकांक्षी इंसान था. भावनात्मक जुड़ाव क्या होता है, वह जानता ही नहीं था. उसने नूपुर का हमेशा एक शोपीस की तरह अपने व्यापारिक फ़ायदों के लिए ही प्रयोग किया. उसके क्लाइंट को कंपनी देना, उन्हें लंच-डिनर पर ले जाना, अपनी अदाओं और लुभावनी बातों से बहला-फुसलाकर रखना... कभी-कभी क्लाइंट अपनी हद से आगे बढ़ने की कोशिश भी कर जाते, मगर पति से शिकायत करने पर उसे अच्छी-ख़ासी डांट ही मिलती, “कब तक स्मॉल टाउन गर्ल बनी रहोगी? थोड़ी-सी परिपक्वता दिखाओ और प्रैक्टिकल बनने की कोशिश करो. ये सब बाज़ारी हथकंडे हैं. इन्हें इतना गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं. इसे बस पार्ट ऑफ जॉब समझकर अपना लो.”
दरअसल, दिनेश ने कभी उनकी शादी को भी गंभीरता से लिया ही नहीं था. तभी तो उसने अपनी शादी के बाहर कितने रिश्ते बनाए और तोड़े थे, उसे ख़ुद भी याद नहीं था. सब कुछ तो सहती आ रही है अपने इकलौते बेटे की ख़ातिर.
दीप्ति मित्तल