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कहानी- सॉरी मॉम 1 (Story Series- Sorry Mom 1)

 

मैं तय जगह पर खड़ी बाकी दोस्तों का इंतज़ार कर रही थी, तभी मेरी नज़र ऐस्कलेटर से ऊपर जा रही एक लेड़ी पर पड़ी. ये तो बिल्कुल मॉम जैसी लग रही है... वैसे ही खुले सीधे बाल, ब्लैक कुर्ते पर वाइट प्लाजो, सुबह ऐसा ही कुछ तो पहना था उन्होंने, जब वो ऐस्कलेटर से उतरकर चलने लगी, तो देखा मॉम ही थी. मॉम यहां… मॉल में? यानी उन्हें ऑफिस में नहीं, यहां ज़रूरी काम था...

        किसी भी इंजीनियरिंग बैचलर के जीवन का वो सबसे बड़ा दिन होता है, जब उसे उसकी ड्रीम जॉब मिलती है. अपने करियर की इस शानदार शुरुआत से आज मैं बहुत ख़ुश थी. ऑफर लेटर लेकर कंपनी से निकली, तो मन किया उड़कर सीधा घर पहुंच जाऊं... मॉम को बताऊं कि वो सपना जो मेरी आंखों के साथ-साथ उनकी आंखों में भी सजा था... आज वो सच हो गया है. मैं ऑटो में बैठ, लैपटॉप बैग को दोनों घुटनों में जकड़े मॉम के चेहरे की कल्पना करने लगी... मेरा पहला ऑफर लेटर देखकर कैसा रिएक्शन होगा उनका... मुझे बांहों में भींच लेंगी या आंखें छलक उठेंगी? मॉम के बारे में सोचते हुए मेरी आंखें नम हो आईं. सोचने लगी, आज कह दूंगी उनसे, तुम्हारा स्ट्रगल ख़त्म हुआ मॉम... अब तुम्हारी बेटी कमाएगी और तुम आराम से बैठकर राज करना... ऐसे ही ख़्यालों में मस्त मैं 20 मिनट बाद अपने फ्लैट के सामने खड़ी, मेनगेट के बाईं ओर लगी नेमप्लेट निहार रही थी, उस पर लिखा था- ‘वसुधा एंड जियाज् ड्रीम्स होम’   यह भी पढ़ें: दोस्ती में बदलता मां-बेटी का रिश्ता (Growing Friendship Between Mother-Daughter)   मैंने एक्साइटमेंट में तीन-चार बार डोरबेल बजा दी, मगर दरवाज़ा नहीं खुला. "सात बज गए, मॉम अभी तक नहीं आई?" बुदबुदाते हुए मैं अंदर आई. डायनिंग टेबल पर बैग पटके और घर की लाइट्स ऑन कर दी. दिन ढले का अंधेरा, ऊपर से मॉम का घर पर ना होना मुझे ज़रा भी अच्छा नहीं लगता था, मन अजीब-सी उदासी से भर जाता. मैंने मॉम को कॉल करने के लिए फोन उठाया, तो देखा उनका मैसेज था- 'आज ऑफिस में कुछ ज़रूरी काम है, देर हो जाएगी... खाना गर्म करके खा लेना.' “ओह मॉम... नॉट टुडे.” मेरा सारा जोश उकताहट में बदल गया. मैंने अपने लिए कॉफी बनाई और वहीं हॉल में टीवी पर एक म्यूज़िक चैनल लगाकर सोफे पर पसर गई. थोड़ी देर बाद फोन घनघनाया. मेरी बैचमेट तनिषा का था. “हे लिसिन, अगर फ्री हो तो फटाफट एसजी मॉल आ जा. पूरा गैंग आ रहा है...” उसने ज़रूरी डिटेल देकर फोन रख दिया. जाने का मन नहीं था, मगर अकेला घर भी काटने को दौड़ रहा था. मैंने तैयार होकर कैब बुक की और निकल पड़ी. फ्राइडे इवनिंग को मॉल में कुछ ज़्यादा ही चहल-पहल थी. मैं तय जगह पर खड़ी बाकी दोस्तों का इंतज़ार कर रही थी, तभी मेरी नज़र ऐस्कलेटर से ऊपर जा रही एक लेड़ी पर पड़ी. ये तो बिल्कुल मॉम जैसी लग रही है... वैसे ही खुले सीधे बाल, ब्लैक कुर्ते पर वाइट प्लाजो, सुबह ऐसा ही कुछ तो पहना था उन्होंने, जब वो ऐस्कलेटर से उतरकर चलने लगी, तो देखा मॉम ही थी. मॉम यहां… मॉल में? यानी उन्हें ऑफिस में नहीं, यहां ज़रूरी काम था... शायद कुछ शॉपिंग करने आई हों...   यह भी पढ़ें: स्पिरिचुअल पैरेंटिंग: आज के मॉडर्न पैरेंट्स ऐसे बना सकते हैं अपने बच्चों को उत्तम संतान (How Modern Parents Can Connect With The Concept Of Spiritual Parenting)   कहीं मेरे लिए कुछ सरप्राइज़ शॉपिंग करने तो नहीं आईं... फिर तो उनसे पहले मैं ही उन्हें सरप्राइज़ दे देती हूं... मैं चहकते हुए ऐस्कलेटर पर चढ़ गई और मॉम को फॉलो करने लगी.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

Deepti Mittal दीप्ति मित्तल       अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES       डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.

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