Close

कहानी- सुपर किड 3 (Story Series- Super Kid 3)

डॉ. प्रवीण के सामने वाली कुर्सी पर चुपचाप बैठे-बैठे दक्ष चारों और कमरे का निरीक्षण करने में लगा था. पांच-दस मिनट बाद डॉ. प्रवीण ने अपनी फाइलों को समेटते हुए शांत बैठे दक्ष को देखकर कहा, ‘’हम लोग इतने चंचल व शरारती थे कि पलभर भी शांत नहीं बैठ पाते थे. मुझे और मेरे दोस्तों को तो मुहल्लेभर के लोग ‘वानरसेना’ के नाम से बुलाते थे....” कहते हुए डॉ. प्रवीण ने ज़ोरदार ठहाका लगाया. दक्ष भी थोड़ा मुस्कुरा दिया. डॉ. प्रवीण के लगातार किस्से-कहानियों व चुटकुलों के कारण वह काफी हद तक खुल गया था. “तो क्या बच्चे की ज़रूरतों व सुविधाओं का ध्यान रखकर हमने ग़लत किया? आख़िर बच्चे चाहते क्या हैं मां-बाप से...?” रोहन कुछ झल्ला सा गया. “कुल डाउन मि. रोहन.... कूल डाउन.... वैसे उम्र क्या है आपके बेटे की?” डॉ. प्रवीण ने प्रश्‍न किया, “तेरह वर्ष...” “हूं... ” कुछ सोचते हुए डॉ. प्रवीण ने लंबी सांस ली “स्कूल के अलावा और कहां-कहां अकेले जाने-आने की आज़ादी दे रखी है उसे आपने? बाहर वह कहां जाता है, किस-किस से मिलता है, ये सारी जानकारी रखते हैं आप? ये सारे प्रश्‍न इसलिए महत्वपूर्ण हैं मि. रोहन, क्योंकि आपका बच्चा उम्र के उस नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है जहां बच्चे खुद को अपनी समझ से कहीं ज़्यादा बड़ा समझने लगते हैं.... मां का पल्लू और बाप की मज़बूत हथेली से उंगली छुड़ाकर अकेले ज़िंदगी का सफ़र तय करना चाहते हैं... ऐसे में राह से भटकने की संभावनाएं कुछ अधिक ही रहती हैं.” “परंतु प्रवीणजी, इस मामले में तो हम लोग शुरू से ही सजग रहे हैं... यहां तक कि मेरी पत्नी ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी ताकि दक्ष पर पूरा ध्यान केंद्रित कर सके...” “ओ.के.! देखते हैं.... बच्चे से मिला बिना कुछ तय करना मुश्किल है...” डॉ. प्रवीण ने शांत स्वर में कहा, “आप ऐसा कीजिए, ताकि मैं उसकी मनःस्थिति का पूरा जायजा ले सकूं.... हां, पर एक बात ध्यान रखें... उसे नहीं पता चलना चाहिए कि मेरे साथ उसकी मीटिंग किसी ट्रीटमेंट का हिस्सा है...” “ठीक है डॉ. प्रवीण.... मैं कल ही दक्ष को आपके पास छोड़ता हूं...” कुछ आश्‍वस्त होते हुए रोहन ने कहा. अगले दिन रोहन दक्ष को लेकर बाज़ार में कुछ शॉपिंग करने आया. उसी बीच डॉ. प्रवीण के क्लीनिक के समीप अचानक एक अर्जेंट मीटिंग का बहाना कर दक्ष से बोला- “यही मेरे एक मित्र है. तुम उनके पास रूको, मैं कुछ ही देर में आता हूं...” दक्ष को डॉ. प्रवीण के पास छोड़ रोहन चला गया. यह भी पढ़ें: हथेली के रंग से जानें अपना भविष्य डॉ. प्रवीण के सामने वाली कुर्सी पर चुपचाप बैठे-बैठे दक्ष चारों और कमरे का निरीक्षण करने में लगा था. पांच-दस मिनट बाद डॉ. प्रवीण ने अपनी फाइलों को समेटते हुए शांत बैठे दक्ष को देखकर कहा, ‘’हम लोग इतने चंचल व शरारती थे कि पलभर भी शांत नहीं बैठ पाते थे. मुझे और मेरे दोस्तों को तो मुहल्लेभर के लोग ‘वानरसेना’ के नाम से बुलाते थे....” कहते हुए डॉ. प्रवीण ने ज़ोरदार ठहाका लगाया. दक्ष भी थोड़ा मुस्कुरा दिया. डॉ. प्रवीण के लगातार किस्से-कहानियों व चुटकुलों के कारण वह काफी हद तक खुल गया था. उसे डॉ. प्रवीण में किसी बड़े अंकल या टीचर से बिल्कुल अलग एक मित्र सी छवि दिखाई देने लगी, इस वजह से वह भी उनसे निःसंकोच बतियाने लगा. डॉ. प्रवीण का ट्रीटमेंट बिल्कुल सही दिशा पकड़ रहा था. वे अक्सर ही पैरेन्ट्स को समझाते थे कि यदि बच्चे के दिल को टटोलना हो तो सबसे पहले धीरे-धीरे गंभीर बुज़ुर्ग, उपदेश देने वाले शिक्षक अथवा हर व़क़्त आदेश देने वाले तानाशाह का चोल उतार फेंको. बच्चे के साथ उसके स्तर पर उतर कर ही कारगर बातचीत संभव है. डॉ. प्रवीण के साथ घुल-मिलकर बातें करने में दक्ष को समय का पता ही नहीं चला. कुछ देर में रोहन उसे लेने आ गया. रोहन ने देखा दक्ष हंस-हंस कर डॉ. प्रवीण से बातें कर रहा है. “आइये रोहन जी, बैठिये.... क्या लेंगे आप... ठंडा या गरम?” डॉ. प्रवीण ने मुस्कुराते हुए पुछा. “नो थैंक्स डॉक्टर... सॉरी मैं थोड़ा लेट हो गया, दक्ष ने आपको  बोर तो नहीं किया?” “ओह नो, रोहन जी! हम दोनों में तो पक्की दोस्ती हो गई है... दरअसल हम दोनों के कई शौक़ एक जैसे हैं... हमने परसों एक साथ बुक्स एक्ज़िबिशन में साथ-साथ जाने का कार्यक्रम भी बना लिया है. क्यों दक्ष चलोगे ना?” डॉ. प्रवीण ने प्रश्‍नवाचक नज़रों से दक्ष की ओर देखा. “ओह यस अंकल.... श्यूअर!” दक्ष की आवाज़ में उत्साह की खनक थी. इसी तरह डॉ. प्रवीण ने दक्ष के साथ दो-तीन मीटिंग्स के बाद एक मीटिंग रोहन और रिया के साथ भी की जिसमें उनसे दक्ष के संबंध में विस्तृत चर्चा करते रहे. “तीन दिन बाद आप मुझसे मिलिये.... समस्या कहां है व क्या है मैं विश्‍लेषित कर लूंगा... साथ ही आपको इसका समाधान भी बता दूंगा.” डॉ. प्रवीण के कथन पर रोहन व रिया दोनों ही आश्‍वस्त होकर घर लौट आए. तीन दिनों पश्‍चात निश्‍चित समय पर रिया व रोहन दोनों ही डॉ. प्रवीण से मिलने पहुंचे. दक्ष की समस्या जानने के लिए दोनों ही अति आतुर हो रहे थे. “समस्या पकड़ में आई डॉक्टर साहब?” मुस्कुराते हुए रोहन ने पूछा तो प्रत्युत्तर में डॉ. प्रवीण भी मुस्कूरा दिया. “हां बिल्कुल.... आप बैठिये ना... ” कहते हुए डॉ. प्रवीण ने नौकर को पानी लाने का आदेश दिया. “... समस्या तो पकड़ में आ गई है... अब समाधान आप दोनों के ही हाथों में है....” डॉ. प्रवीण ने रिया व रोहन की ओर मुख़ातिब होकर कहा. स्निग्धा श्रीवास्तव

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

 

Share this article

https://www.perkemi.org/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Situs Slot Resmi https://htp.ac.id/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor https://pertanian.hsu.go.id/vendor/ https://onlineradio.jatengprov.go.id/media/ slot 777 Gacor https://www.opdagverden.dk/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/info/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/vendor/ https://www.unhasa.ac.id/demoslt/ https://mariposa.tw/ https://archvizone.com/