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कहानी- उनसठ बरस का कुंवारा बसंत…3 (Story Series- Unasath Baras Ka Kunwara Basant… 3)

श्रीनाथजी ने बताया कि उनकी पत्नी को भी पढ़ने का बहुत शौक था. दोनों साथ ही एक ही किताब पढ़ते थे और फिर घंटों उस पर चर्चा करते. बताते हुए उनका स्वर भावुक हो गया और मीरा के मन में एक हल्की-सी ईर्ष्या जनित कसक उठ आई, "काश! मेरा जीवनसाथी भी ऐसा ही होता."

      ... दो बेटियों के जन्म के बाद उनके पालन-पोषण में ही ख़ुद को व्यस्त कर लिया मीरा ने. एक बौद्धिक साथी के साथ बौद्धिक वार्तालाप कर मस्तिष्क को तरोताज़ा करने की इच्छा ग्रीष्म की लता समान मुरझा गई. बेटियों के विवाह के बाद तो खाली समय काटने को दौड़ता और वह पगला जाती. दो वर्ष पहले जब प्रकाश अचानक ही नींद में ही चल बसे, तो शोक के बाद भी अंतर में कहीं एक शांति-सी अनुभव की थी उसने और बेटियों के बहुत आग्रह के बाद भी उनके पास न जाकर यही रहने का फ़ैसला किया. और सबसे पहला काम किया एक बुक शेल्फ और ढेर सारी किताबें ख़रीदने का. उम्रभर की प्यास घूंट-घूंट करके तृप्त होने लगी. नई पुरानी जो किताब मिलती वह ख़रीद लाती. अब ड्राॅइंगरूम से रसोईघर तक, घर में हर कहीं किताबे रहती, कोई टोकनेवाला नहीं. लेकिन कहीं किसी कहानी, परिस्थिति अथवा पात्र पर चर्चा करने को उसका बौद्धिक मन कुलबुला जाता. दूसरे दिन शाम को श्रीनाथजी पुस्तक लेकर हाज़िर हो गए. "यह लीजिए स्त्री मन की भीतरी दुनिया से परिचित करवाती बहुत ही अद्भुत पुस्तक है. मुझे विश्वास है आपको अवश्य ही पसंद आएगी." उन्होंने एक उपन्यास मीरा को थमा दिया. मीरा ने उन्हें बिठाया और दो कप चाय बना लाई. फिर तो पुस्तकों पर जो चर्चा छिड़ी, तो चाय के दूसरे कप तक चलती रही. मीरा बहुत सालों बाद जैसे मन से मुस्कुराई थी. मस्तिष्क को एक स्वस्थ पोषण जो मिल रहा था. शाम बहुत अच्छी गुज़री. बातों ही बातों में श्रीनाथजी ने बताया कि उनकी पत्नी को भी पढ़ने का बहुत शौक था. दोनों साथ ही एक ही किताब पढ़ते थे और फिर घंटों उस पर चर्चा करते. बताते हुए उनका स्वर भावुक हो गया और मीरा के मन में एक हल्की-सी ईर्ष्या जनित कसक उठ आई, "काश! मेरा जीवनसाथी भी ऐसा ही होता." यह भी पढ़ें: शराब से ख़राब होतीं ज़िंदगियां… (How Alcohol Ruins Lives…)   तभी पत्नी के गुज़र जाने और दोनों बच्चों के विदेश में बस जाने के बाद उन्होंने वह घर छोड़ दिया और यहां फ्लैट में रहने आ गए. अब अकेलेपन के साथी यह किताबें ही हैं. श्रीनाथजी की शाम की चाय अक्सर ही मीरा के ड्राॅइंगरूम में पुस्तक चर्चा के साथ बीतती थी. चार बजे से ही मीरा की आंखें घड़ी की ओर उठने लगती, जब तक श्रीनाथजी आ न जाते. ना आते तो वह दिन अधूरा-सा लगता. ढूंढ़कर मीरा ने अपनी चाय की केतली निकाली और केतली में चाय बनाकर टिकोजी से ढंक कर रख देती, ताकि बीच में उठकर चाय बनाने के कारण चर्चा में व्यवधान ना पड़े. अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...   Dr. Vinita Rahurikar डॉ. विनीता राहुरीकर       अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES  

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