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हिंदी कहानी- रिटर्न गिफ्ट (Story- Return Gift)

Hindi Short Story
उसे मन ही मन हंसी आ गई- बर्फ को भला किसी ने पकड़ा है. अपनी सोच है, अपना जीने का ढंग, पर वरुण तो ख़ूब रंगने लगे हैं इस रंग में. उसे कभी-कभी थोड़ा डर लगने लगता है. वह अपने वरुण, जुगनू और तितली को इंसानियत से क़दम मिलाकर चलते देखना चाहती है. ऐसा भी क्या कि इंसान के पास इंसान के लिए वक़्त नहीं.
पार्टी क्या है, मानो पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है. हर तरह से मेहमानों का ध्यान रखा गया है. बच्चों के लिए तो इतने इंतज़ाम किए गए हैं कि क्या कहने. खाने-पीने की बेहतरीन चीज़ें. मनोरंजन के लिए मैजिक, पपेट और हूला-हूप्स जैसे शोज़ और गेम्स. आंखों को लुभाती सजावट, जगमगाता संगीतमय माहौल. ताज़ातरीन फैशनेबल परिधानों में सुसज्जित मेहमानों के बीच आरोही के क़दम ठिठकने-से लगे. वरुण ने उसे बांहों में लेकर चीयर अप किया. “कम ऑन अरु!” फुसफुसाहट में भी उसका ग़ुस्सा झलक पड़ा. “कोई गंवारपना मत कर बैठना.” प्रत्यक्षतः बोला, “आओ तुम्हें बॉस से मिलवाता हूं.” वह वरुण के साथ आगे बढ़ी. उनके बच्चे जुगनू और तितली मारे ख़ुशी के पंछियों से चहक उठे हैं. लॉन में चारों ओर उड़ते गुब्बारे, यहां-वहां आइस्क्रीम व कैंडीफ्लॉस के स्टॉल्स से खिंचे वे न जाने कब आरोही की उंगली छोड़ बच्चों की टोली में शामिल हो गए हैं. आरोही मंत्रमुग्ध फव्वारों, लॉन की हरी मखमली घास पर उकेरे शब्दों और झाड़ियों को छांटकर तराशी जीव-जंतुओं की आकृतियों में खोती-सी वरुण के साथ आगे बढ़ी. हॉल में प्रविष्ट होने से पहले उसने बच्चों की ओर देखा. वे अन्य बच्चों के साथ मस्त हो चुके थे. यूनिफॉर्म में सजे सुरक्षा गार्ड्स और परिचारिकाओं की मौजूदगी ने उसे आश्‍वस्त कर दिया. बॉस की पत्नी हॉल के बीचोंबीच सजी बड़ी-सी मेज़ के पास अपनी बेटी सांझ के साथ खड़ी थीं. उनकी ख़ूबसूरती जरदोज़ी से सजी क्रीम शिफॉन और हीरों के सेट को मात दे रही थी. अदा से लिया गया आंचल कंधों से झूलता नीचे कारपेट तक फिसलता जा रहा था. उनकी बेटी सांझ भी तो कितनी प्यारी प्रिंसेस जैसी लग रही है. ऐसे में आरोही को अपनी दस-ग्यारह बार पहनी बालूचेरी साड़ी का रंग कुछ उड़ा और फीका-सा लगा. उसने सकुचाते हुए स्वयं को पल्लू से लपेट लिया. वरुण ने अपने बॉस और उनकी पत्नी से आरोही का परिचय करवाया. मिसेज़ रोशनी ने उसके हाथों से गिफ्ट का पैकेट बगल में खड़ी परिचारिका को देते हुए बड़ी ख़ुशमिज़ाजी और बेतकल्लुफ़ी से उससे बेटी को मिलवाया. तभी स्टेज पर तीन-चार दंपतियों के आगे बढ़ आने से आरोही पीछे वरुण के साथ बाहर आ गई. वह थोड़ा किनारे स्विमिंग पूल के पास लगी छतरियों के नीचे एक मेज़ पर जा बैठी. वह सोचने लगी, कितने बड़े लोग हैं, पर घमंड तो रंचमात्र नहीं छू गया. वरुण अपने सहकर्मियों की ओर हो लिया, तो वह भी ऑर्केस्ट्रा की धुन सुनती हुई आसपास के वातावरण को पढ़ने लगी. जुगनू ने उसे दूर से देख लिया था. वह तितली का हाथ पकड़े उसके पास दौड़कर आ गया. उन दोनों को तो जैसे अपने सपनों की दुनिया मिल गई है. कभी इस स्टॉल, तो कभी उस स्टॉल पर दौड़ते, उछलते-कूदते अन्य बच्चों के साथ कितने मस्त हैं. आरोही चौकस थी कि बच्चे कोई शरारत न कर बैठें, लेकिन वहां उपस्थित सभी अपने में रमे हुए थे. अचानक वरुण के दोस्त और सहकर्मी नितिन की पत्नी राशि के दिखते ही आरोही का मन चहक उठा. दोनों इधर-उधर की बातों के बीच खाने-पीने का लुत्फ़ उठा रही थीं. बॉस और उनकी पत्नी की तारीफ़ करती आरोही ने कहा, “कितना बढ़िया अरेंजमेंट किया है रोशनी मैडम ने.” राशि ने लापरवाही से कंधे उचकाकर पानीपूरी का दोना टब में डाला और टिश्यू से हाथ पोंछती हुई बोली, “अरेंजमेंट रोशनी मैडम ने थोड़े ही न किया है. बड़े लोगों की बात है भई. नितिन बता रहे थे कि बॉस ने उसी के एक परिचित ऑर्गेनाइज़र को सारा ज़िम्मा सौंपा था.” वरुण इस शहर में नया ही आया था. राशि जानती थी कि आरोही उत्तर प्रदेश के एक छोटे-से कस्बे से है, पर इतना तो आजकल टीवी सीरियलों में भी दिखाते हैं. उसे बड़ा अचरज-सा हुआ. बातों के क्रम में राशि ने जाना कि आरोही तो बहुत आदर्शवादी, साहित्य-कला प्रेमी क़िस्म की महिला है, जिसके जीवन का चक्र उसके बच्चों और पति के ही इर्दगिर्द घूमता है. आरोही से एक बार मिलना हुआ, जब वे सामूहिक पिकनिक पर गए थे, पर कम बोलने वाली आरोही को राशि अब समझ पा रही है. राशि को लग रहा था जैसे आरोही किसी और ही दुनिया से आई है. उसे आश्‍चर्य हो रहा था कि कोई महिला आज भी इतनी सहज और सरल हो सकती है? आरोही ज़्यादातर पहाड़ों पर वृद्ध ससुर और विधवा बुआ सास के साथ ही रहती थी. वरुण की पोस्टिंग गांव से 70-80 कि.मी. दूर थी. अतः वह सप्ताहांत परिवार के साथ बिताता था. जब इस शहर में उसका तबादला हुआ, तो सभी की सहमति से वरुण आरोही और बच्चों के साथ वहां शिफ्ट हो गया. पार्टी में शोर-शराबा ज़ोरों पर था. राशि अन्य परिचितों के साथ व्यस्त हो गई, तो आरोही वापस उसी जगह आ बैठी. उसे कितना अनोखा-सा लग रहा है सब कुछ. अजीब-सा लग रहा है लोगों की बातचीत और मिलने-मिलाने का तौर-तरीक़ा. बेहद औपचारिक. समय इतना भी नहीं बदला, पर यहां इस शहर में लोग समय की रफ़्तार से भी ज़्यादा तेज़ भागना चाहते हैं. उसे मन ही मन हंसी आ गई- ब़र्फ को भला किसी ने पकड़ा है. अपनी सोच है, अपना जीने का ढंग, पर वरुण तो ख़ूब रंगने लगे हैं इस रंग में. उसे कभी-कभी थोड़ा डर लगने लगता है. वह अपने वरुण, जुगनू और तितली को इंसानियत से क़दम मिलाकर चलते देखना चाहती है. ऐसा भी क्या कि इंसान के पास इंसान के लिए वक़्त नहीं. स्टेज पर रोशनी मैडम बच्चों को सांझ के हाथों रिटर्न गिफ्ट दिलवा रही थीं. सभी बच्चों को परिचारिकाएं स्टेज पर ले आई थीं. थोड़ी भीड़-सी हो गई थी. पार्टी लगभग समाप्ति पर थी. वह अपनी जगह बैठी उत्सुकता से देखती रही. राशि अपनी सहेलियों के साथ गप्पे मारने में मशगूल थी. आरोही उससे नज़रें मिलते ही मुस्कुरा दी. राशि भी मुस्कुराई. किसी महिला ने उससे पूछा, “ये कौन है भई, हमें भी मिलवाओ.” राशि ने प्रत्युत्तर दिया, “अरे, क्या मिलोगी उस बहनजी से. पता नहीं किसी आदर्शवादी कॉलेज की ग्रेजुएट हैं मैडम. एकदम आउटडेटेड!” “कैसे-कैसे लोग हैं न दुनिया में आज भी.” “अठारहवीं सदी में जीती हुई महिला!” दूसरी ने बिना एक मिनट गंवाए टिप्पणी जड़ी. मेज़बानों से विदा लेकर जब वे पार्टी हॉल से बाहर आए, तो तितली एकदम उनींदी हो चुकी थी. हालांकि अभी साढ़े नौ ही बजे थे, पर वह आरोही की गोद में चढ़ उसके कंधे पर सिर रखे सो गई. अलबत्ता जुगनू दोनों गिफ्ट हैंपर्स थामे, उछलता-कूदता, पापा की उंगली पकड़े चल रहा था. बाहर नई क़ीमती गाड़ियों की कतारें लगी थीं. वरुण को अपनी गाड़ी निकालते हुए आधा घंटा लग गया. तितली को लिए वह पिछली सीट पर जा बैठी. आगे की सीट पर बैठा जुगनू अपनी बाल-सुलभ उत्सुकतावश जल्दी से जल्दी गिफ्ट हैंपर से चॉकलेट्स और खिलौने निकालकर मां को दिखाता हुआ चहक रहा था. तभी अचानक एक चमकता हुआ ईयररिंग पैकेट में पड़ा देख आरोही चौंकी. उलट-पुलट के देखते हुए उसे ध्यान आया कि यह तो उसी जोड़े में से एक था, जो अभी-अभी पार्टी में रोशनीजी ने पहन रखा था. “ओह वरुण! लगता है रोशनीजी का ईयररिंग रिटर्न गिफ्ट देने की जल्दबाज़ी में गिर गया है. चलो न, जाकर उन्हें वापस कर आते हैं. इस पर हॉलमार्क है, रियल डायमंड लगता है. ऐसी ही ईयररिंग्स आशा दी ने बेटी की शादी में ख़रीदे थे. बता रही थीं कि कोई एक-सवा लाख के थे. बेचारी कितनी चिंतित हो रही होंगी.” वरुण ने एक बार ईयररिंग को, फिर एक बार पत्नी की ओर देखा, गाड़ी बॉस के घर से ज़रा दूर एक पेड़ के नीचे पार्क करता हुआ बोला, “बच्चों को छोड़कर दोनों नहीं चल सकते. तुम इसे वापस कर जल्दी आओ.” आरोही ने पसीने से तरबतर तितली को गोद से हटाकर सीट पर लिटा दिया. मुड़ी-तुड़ी साड़ी का पल्लू खींचा और थोड़ा-सा बिखर आई लटों को संवार ईयररिंग पर्स में डालकर एक बार पुनः उसी लॉन, रास्तों और सजावट से गुज़रती हुई हॉल में प्रविष्ट हो गई. हॉल में कुछ गिने-चुने लोग थे, जो खाना खा रहे थे. एक ओर थके-से बैठे बॉस और उनकी पत्नी पर नज़र पड़ते ही आरोही उनकी तरफ़ बढ़ी. रोशनीजी उसे देखते ही चौंकी और इससे पहले कि वे कुछ पूछें, आरोही ने पर्स से ईयररिंग निकालकर उनकी ओर बढ़ाया, “जी आपकी ईयररिंग मेरे बच्चे की गिफ्ट बास्केट में गिरी हुई मिली तो मैं...” रोशनी ने लपककर अपने कान छुए, बाईं ईयररिंग नदारद थी. “ओह थैंक्यू!” कहते कौतूहल और प्रसन्नता के भाव उसके चेहरे पर बिखर गए. आरोही ने हाथ जोड़े और वापस मुड़ गई. वह आत्मसंतोष से परिपूर्ण हो चंद क़दम ही चल पाई थी कि उसने रोशनीजी की आवाज़ सुनी, “थैंक गॉड रोहन! आज भी दुनिया में कुछ बेव़कूफ़ ज़िंदा हैं वरना...” आरोही को लगा कॉरीडोर में लगा फ़ानूस छनाके से गिरकर किरिच-किरिच हो गया है. आडंबर के इस मलबे पर उस जैसी सरल-सहज स्त्री का क्या काम. वह तेज़ क़दमों से जल्द से जल्द बाहर निकल जाना चाहती थी उस खोखली दुनिया से. उसके कानों में शब्द लगातार प्रतिध्वनित हो रहा था- “बेव़कूफ़”... 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