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कहानी- सुलझी हुई सोच (Short Story- Suljhi Hui Soch)

काजल को कुछ समझ नहीं आ रहा था. मां इतनी शांत कैसे हैं? शायद ये तूफ़ान से पहले की शांति है.
सोच में डूबी काजल के मुंह से निकला, "मां, आप और पापा खाना…" बाकी शब्द उसके मुंह में ही रह गए.
"तुम्हारे पापा और मेरे लिए मैंने दलिया बना लिया था. तुम जानती हो हम ज़्यादा लेट खाना नहीं खाते."
सास की बात सुनकर काजल के दिमाग़ में अनार फूटा, 'आ गईं अपने रूल्स एंड रेगुलेशंस पे, अब क्लास लेंगी मेरी.'

ऑफिस में देर होने के कारण हड़बड़ाती काजल घर पहुंची, तो पति राजीव किचन में खड़े थे. काजल यह देखकर हैरान रह गई कि राजीव ने सब्ज़ियां डाल कर पुलाव बना लिया था और रायता बनाने की तैयारी कर रहे थे. बेशक किचन कुछ फैला हुआ था, लेकिन फिर भी जिस काम की टेंशन से काजल का दिलोदिमाग़ भारी हो रहा था, वो हुआ मिला तो उसने राहत की सांस ली. उसका तनाव एक क्षण में तिरोहित हो चुका था… यह उसके लिए हर्ष मिश्रित आश्चर्य की बात थी कि राजीव रसोई का काम करना जानते थे.
अभी इस झटके को वो आत्मसात कर ही रही थी कि एक नई चिंता उसे सताने लगी. राजीव तो काजल की मदद करने के लिए खाना बना रहे थे, पर सासू मां? वो कहां थीं?
आज पहली बार मैं उनके सामने इतनी देर से आई हूं, पता नहीं वो सीधे मुंह बात भी करेंगी या नहीं…
काजल अभी भी रसोई में खड़ी सोच ही रही थी कि राजीव ने उसकी आंखों के सामने हाथ लहराया, "नींद से जागो मैडम, अब तक तुम्हें बचाने के चक्कर में मां की लल्लो-चप्पो कर रहा था. अब आगे तुम ख़ुद संभालो, मां बहुत गुस्से में है. अभी कह रही थीं, "बहू- बेटियों का इतनी देर तक बाहर रहना ठीक नहीं. ऐसे जॉब का भी क्या फ़ायदा, जो आदमी को घर ही भुला दे… हम पहली बार यहां तुम दोनों के पास आए हैं, कम से कम हमारा ही लिहाज कर लेती. अभी ये हाल है, तो आगे पीछे पता नहीं क्या करती होगी."

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पति की बातें सुनकर काजल के हाथ-पैर ठंडे हो गए. काजल और राजीव की शादी को अभी तीन महीने ही तो हुए थे… काजल जहां अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी, वहीं राजीव अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे.
पढ़ने-पढ़ाने और उसके बाद नौकरी के चक्कर में दोनों को ही लव-शव का समय ही नहीं मिला.
सही समय पर पैरेंट्स ने मिलवाया, तो दोनों को ही एक-दूसरे का साथ भा गया. इसमें इस बात की भी बहुत बड़ी भूमिका थी कि दोनों एक ही शहर मुंबई में जॉब करते थे.
चट मंगनी पट ब्याह हुआ और शादी के फ़ौरन बाद ही दोनों अपनी-अपनी नौकरी के कारण कानपुर से मुंबई आ गए थे.
अभी एक-दूसरे को जानने-समझने की कोशिश कर ही रहे थे कि पिछले हफ़्ते राजीव के माता-पिता उनके साथ समय बिताने की इच्छा लिए उनके पास रहने आ गए.
काजल को यूं तो अपनी सास से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन उनकी ज़रूरत से ज़्यादा अनुशासित जीवन जीने की आदत कभी-कभी काजल को परेशान कर देती थी.
राजीव की मां एक अध्यापिका थीं और कुछ समय पहले ही सेवानिवृत्त हुई थीं. अपने पूरे जीवन में उन्होंने हर काम बहुत सलीके से और समय पर किया था.
इस सलीके और अनुशासन की उनको इतनी आदत पड़ चुकी थी कि अब अगर मस्तमौला काजल की कोई बात उन्हें पसन्द न आती, तो वो कहतीं तो कुछ नहीं, लेकिन उनके हाव-भाव काजल को बता देते थे कि उन्हें ये बात पसंद नहीं आई है.
काजल, जो पहले से ही डरी हुई थी, राजीव की बातों से और घबरा गई. उसने जल्दी से मुंह-हाथ धोया… कपड़े बदले और हिचकिचाते हुए अपने सास-ससुर के कमरे में उनसे बात करने चली गई.
"अरे काजल! आ गई? आज बहुत देर हो गई…''.उसे देखते ही सास के मुंह से निकला.
"वो… हां मां…" काजल ने कुछ कहने की कोशिश की इससे पहले ही उसकी सास ने उसे टोक दिया, "तुम्हारा चेहरा पीला पड़ गया है. बहुत थकी हुई लग रही हो… जाओ! जाकर खा-पीकर समय पर सो जाओ."
काजल को कुछ समझ नहीं आ रहा था. मां इतनी शांत कैसे हैं? शायद ये तूफ़ान से पहले की शांति है.
सोच में डूबी काजल के मुंह से निकला, "मां, आप और पापा खाना…" बाकी शब्द उसके मुंह में ही रह गए.
"तुम्हारे पापा और मेरे लिए मैंने दलिया बना लिया था. तुम जानती हो हम ज़्यादा लेट खाना नहीं खाते."
सास की बात सुनकर काजल के दिमाग़ में अनार फूटा, 'आ गईं अपने रूल्स एंड रेगुलेशंस पे, अब क्लास लेंगी मेरी.'

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सासू मां की आवाज़ ने उसके दिमाग़ के सरपट दौड़ते घोड़ों को फिर से ब्रेक लगाया.
"तुम दोनों के लिए पुलाव राजीव ने बना लिया है. कुछ और चाहिए तो बता दो, मैं बना देती हूं."
अपनी सास की बात सुनकर काजल सकपकाई सी उनका चेहरा देखने लगी, मानो कोई चोरी पकड़ी गई हो.
"इतना हैरान मत हो बेटा, मैं जानती हूं कि कभी-कभी मेरा व्यवहार कुछ ज़्यादा ही सख़्त हो जाता है, क्योंकि मुझे लगता है कि हर व्यक्ति को अपनी ज़िम्मेदारी समयनुसार निभानी चाहिए. इसका मतलब यह नहीं है कि मैं एक कामकाजी महिला की समस्याओं को समझ नहीं सकती.

मैंने स्वयं जीवनभर स्कूल में पढ़ाया है और मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि एक औरत के लिए घर-बाहर की दोहरी ज़िम्मेदारी निभाना कितना मुश्किल होता है. सारे काम सिर्फ़ उसके हिस्से में न आ जाएं, इसलिए मैंने अपने बच्चों को घर का काम सिखाया है. आज मैं चाहती तो खाना बना सकती थी, लेकिन यहां तुम्हारे साथ राजीव को रहना है. हम तो दो-चार दिन रहकर चले ही जाएंगे… राजीव को अपनी पत्नी का हाथ बंटाने की आदत होनी चाहिए.
मैंने हम दोनों के लिए खाना बनाकर अपने बेटे का बोझ तो हल्का कर दिया, पर उसे ये याद रखना होगा कि तुम्हारा बोझ हल्का करने की ज़िम्मेदारी उसकी है."
अपनी पत्नी और मां की बातें सुनते ससुरजी और राजीव के होंठों पर तो मुस्कुराहट थी ही काजल को भी अनुशासित सास में छिपी स्नेहिल मां नज़र आ गई थी.
उसने मन ही मन अपने पिता को धन्यवाद दिया, जिन्होंने उसके लिए इतना सुलझा हुआ परिवार चुना था.

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सास-ससुर को गुड नाइट बोलकर काजल और राजीव उनके कमरे से बाहर निकले, तो काजल को झूठ-मूठ धमकाने के लिए राजीव ने कान तो पकड़े पर उसकी आंखें अभी भी शरारत से चमक रही थीं, परंत काजल की आंखों में राजीव के लिए बस प्यार ही प्यार और भविष्य के सुनहरे सपने थे.

- शरणजीत कौर

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