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दूर होते रिश्ते, क़रीब आती टेक्नोलॉजी (Technology effecting negatively on relationships)

Technology effecting on relationships वर्तमान में पति-पत्नी, माता-पिता, बच्चे या फिर दोस्त ही क्यों न हों, सभी टेक्नोलॉजी (Technology effecting on relationships) की चपेट में इस कदर आ गए हैं कि वे चाहकर भी इससे निकल नहीं पा रहे. ऐसा क्यों? इसी विषय पर मनोचिकित्सक रेनू कुंदर से हमने बात की. उन्होंने कई छोटी-छोटी बातों के ज़रिए टेक्नोलॉजी के फ़ायदे-नुक़सान की पैरवी की. * ग्लोबली हमें अपनी पोज़ीशन बनाए रखनी है, तो टेक्नोलॉजी को अपनाना ही पड़ेगा, वरना हम अपने ही दायरे में सिमट जाएंगे. इसके प्रभाव और फ़ायदों को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स भी कम नहीं हैं. * आज सोशल साइट्स पर एक्टिव रहना, अपडेट करते रहना, हर किसी का शग़ल बनता जा रहा है. इसका साइड इफेक्ट यह हो रहा है कि हमारे पास अपनों से बात तक करने का व़क्त नहीं मिल पाता है. * पति-पत्नी दोनों ही वर्किंग हैं, तो वैसे ही वे एक-दूसरे को कम व़क्त दे पाते हैं, उस पर जो समय मिलता है, उसमें पति महाशय सोशल साइट्स में बिज़ी रहते हैं, वहीं पत्नी अपने फेवरेट सीरियल्स का मोह छोड़ नहीं पाती. * आज बच्चों के पास पैरेंट्स ही नहीं, अपने ग्रैंड पैरेंट्स के लिए भी बिल्कुल व़क्त नहीं है. वे अपने स्कूल-कॉलेज, पढ़ाई, दोस्तों के बाद जो भी व़क्त मिलता है, उसे घंटों सेल फोन पर गेम्स (Technology effecting on relationships) खेलने, कंप्यूटर पर सर्फिंग करने, चैटिंग करने आदि में बिताते हैं. Technology effecting on relationships * अब तो आलम यह है कि कइयों को रात को सोने से पहले और सुबह उठने पर बिना अपने सेल फोन पर मैसेज देखे, दोस्तों व सोशल गु्रप्स को ‘गुड मॉर्निंग’ कहे बगैर दिन की शुरुआत ही नहीं होती. वहीं क़रीब बैठे पार्टनर से दो मीठे बोल कहने का भी व़क्त नहीं रहता. * ताज्जुब होता है तब कॉलेज स्टूडेंट लता कहती हैं- “मैं बिना खाए-पीए रह सकती हूं, पर अपने सेल फोन, लैपटॉप और आईपॉड की दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकती.” यानी गैजेट्स हम पर डिपेंड हैं या हम गैजेट्स के ग़ुलाम(Technology effecting on relationships) हो गए हैं. * एक ज़माना था, जब शादी के निमंत्रण कार्ड दूर तो नहीं, पर क़रीबी रिश्तेदारों को पर्सनली मिलकर मिठाई के साथ दिए जाते थे, पर अब तो ईमेल और सोशल साइट्स के ज़रिए ही इन्वाइट कर दिया जाता है. सफ़ाई यह दी जाती है कि इससे व़क्त, पैसे और ग़ैरज़रूरी परेशानी से बच जाते हैं. * आज की पीढ़ी का यह मानना है कि टेक्नोलॉजी न केवल आपको सहूलियत देती है, बल्कि आपका स्टेटस भी बढ़ाती है. इसलिए न चाहते हुए भी आपको इसे मेंटेन तो करना ही पड़ेगा. Technology effecting on relationships टेक्नोलॉजी एडिक्शन से कैसे बचें? - इसमें टाइम मैनेजमेंट अहम् भूमिका निभाती है. सेल फोन का अधिक इस्तेमाल, नेट पर सर्फिंग करना, लैपटॉप पर चैटिंग करना इत्यादि बातें ग़लत नहीं, पर इसका एडिक्ट हो जाना नुक़सानदायक होता है. इसलिए अपना रोज़ का शेड्यूल कुछ इस तरह बनाएं कि इन सब बातों को व़क्त देने के साथ-साथ अपनों के साथ भी क्वॉलिटी टाइम बिताएं. - पार्टनर के साथ हों, तो जितना कम हो, उतना गैजेट्स के साथ व़क्त बिताएं. - ऐसा भी न हो कि जीवनसाथी आपको अपनी ऑफिस से जुड़ी कोई समस्या बता रहा हो और आप सेल फोन पर चैटिंग करने में मशगूल हैं. तब तो यही बात हो जाएगी कि क़रीब के दूर होते चले गए और जो कोसों दूर थे, वे न जाने कितने पास आ गए. - अक्सर कहा जाता है कि बच्चों का अपना सर्कल होता है, वे उसी में एंजॉय करते हैं और उनके पास न अपने पैरेंट्स के लिए व़क्त रहता है और न ही ग्रैंड पैरेंट्स के लिए. लेकिन यह सही नहीं है. यह तो हमारी सोच है, जो जाने-अनजाने में बच्चों ने भी उस पर सहमति की मोहर लगा दी. यदि घर का एक नियम बन जाए कि चाहे सुबह का नाश्ता, दोपहर या शाम का खाना हो, कोई भी एक समय पूरा परिवार साथ मिलकर खाएं और क्वॉलिटी टाइम बिताएं, एक-दूसरे की दिनभर की एक्टिविटीज़ को जानें-समझें, तो इसमें ग़लत क्या है? Amitabh.Bachchan - सेलिब्रिटीज़ भी आपसी संवाद के महत्व को समझते हैं, तभी तो सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के बाऊजी ने भी अपने दौर में यह नियम बना दिया था कि दिनभर कोई भी एक समय पूरा परिवार साथ हो. फिर चाहे वो खाने का समय हो या रात को सोने के लिए जाते समय. हां, आउटडोर शूटिंग या कोई और कारणों से कोई सदस्य आउट ऑफ स्टेशन है, तो यह और बात है. बकौल अमितजी के, “यही छोटी-छोटी बातें आपसी रिश्तों को जोड़ती हैं और रिश्तों में आपसी मिठास और अपनापन बनाए रखती हैं.” - माना सोशल साइट्स की अलग ही दीवानगी और एडिक्शन है, जो छूटता ही नहीं, पर जीवंत रिश्तों को दांव पर लगाकर बेजान चीज़ों से मोह भला कहां की समझदारी है. - क्यों न एक बार फिर अपने रिश्तों को रिवाइव किया जाए, जिनसे बरसों न बात हुई और न ही मुलाक़ात, उनसे मिला जाए. देखिए, यक़ीनन उस सुखद एहसास से आप ही नहीं, वे भी सराबोर हो जाएंगे. - याद रहे, टेक्नोलॉजी हमारे कामों को आसान करने और सुविधा मुहैया कराने के लिए ज़रूरी है, न कि रिश्तों से दूर होने और संवेदनशीलता को मारने के लिए.

- ऊषा गुप्ता

https://www.merisaheli.com/personal-questions-you-shouldnt-ask-to-your-relatives/

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