बचपन अपने आप को तरंगित करता है खिलौने से. कभी कोई बच्चा अनमना-सा हो, तो एक खिलौना दीजिए, वो चहकने लगेगा. इसीलिए किसी भी शहर, नगर, कस्बे का बाज़ार खिलौनों पर बहुत प्रयोग करता है. बाल मनोविज्ञान के हिसाब से बने परंपरागत खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक टॉय, प्लस टॉय, पजल तथा गेम्स सहित आधुनिक खिलौने से सराबोर खिलौने देखकर उदास और सुस्त बच्चा भी किलक कर उत्साहित हो जाता है. उसका मन मचल उठता है. वो क्रियाशील होने लगता है. तब समझ मे आता है कि इन खिलौनों का हर बच्चे के जीवन में विशेष महत्व होता है. कह सकते हैं कि बच्चों की साइकोमोटर क्षमताओं को प्रभावित करते हैं खिलौने. खिलौने जहां हर उम्र के बच्चे के मानसिक व शारीरिक विकास के लिए ज़रूरी होते हैं, वहीं उन्हें शिक्षित करने का भी एक माध्यम हैं.
वर्तमान में बच्चों की तर्कशक्ति व मानसिक विकास के लिए हर तरह के खिलौने बाज़ार में उपलब्ध हैं. सस्ते और टिकाऊ भारतीय खिलौने बच्चों के सामाजिक और मानसिक विकास में यूं भी बहुत सहायक होते हैं. धागे और गत्ते के समायोजन से बने विभिन्न खिलौने हर मेले उत्सव में एक रुपए से भी कम क़ीमत में मिल जाते हैं.
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हमारे यहां खिलौने की समृद्ध परंपरा रही है. दादी-नानी के खिलौने पीढ़ियों से चले आ रहे हैं. उसमें स्मृति की महक होती है. मनोरंजन करनेवाले दिमाग़ सक्रिय करनेवाले और बगीचे के लिए उपयोगी खिलौने तो कमाल ही होते हैं. ज़रा-सी धागा खींचने पर डम-डम की आवाज़ करनेवाले खिलौने तोते उड़ा देती है और बगीचों में फलों की रक्षा करती है.
बच्चा अपने आसपास के लोगों, खिलौनों, घर और प्रकृति की हर चीज़ को निहारता है और उससे खेलता है. बच्चे के शारीरिक और बौद्धिक विकास के बारे में थोड़ी-सी भी जानकारी और समझ से माता-पिता बच्चे को सही उम्र में सही खिलौने व उचित वातावरण दे कर उसके विकास को सही दिशा प्रदान कर सकते हैं. बच्चों और खिलौनों का तो चोली-दामन का साथ रहा है.
पहले बच्चे घर में रुई, कपड़े और मिट्टी के खिलौनों से खेलते थे, पर आज इलेक्ट्राॅनिक खिलौनों का युग है. बाज़ार में महंगे से महंगे खिलौने उपलब्ध हैं, लेकिन खिलौनों के महत्व एवं उपयोगिता को उनकी क़ीमत से नहीं आंका जा सकता. खिलौनों से खेल कर बच्चे की बुद्धि कुशाग्र होती है, कल्पनाशक्ति बढ़ती है, शरीर तंदुरुस्त होता है, जिससे उसकी योग्यता बढ़ती है. अच्छे खिलौने बच्चों की कार्यक्षमता, कार्यकुशलता और रचनात्मकता को बढ़ाते हैं.
ऐसा खिलौना, जो बच्चों को अपनी कल्पनाशक्ति से कुछ नया रचने के लिए प्रोत्साहित करे, उन खिलौनों से बेहतर है, जिनसे कुछ पूर्व निर्धारित चीज़ें ही बन सकती हैं. खिलौने ख़रीदते समय बच्चे की उम्र का ध्यान ज़रूर रखें.
आइए, देखें कि किस उम्र में बच्चों को किस प्रकार के खिलौनों की ज़रूरत होती है.
खिलौने के साथ भारत का पुराना रिश्ता रहा है. यह रिश्ता उतना ही पुराना है, जितना इस भू-भाग का है. भारतीय खिलौने में ज्ञान होता है, तो विज्ञान भी होता है. मनोरंजन होता है, तो मनोविज्ञान भी होता है. प्राचीन काल से जब दुनिया के यात्री भारत आते थे, तो वे यहां खेल सीखते भी थे और उसे अपने साथ लेकर भी जाते थे.
हमें खेल और खिलौने की भूमिका को अवश्य समझना चाहिए. बच्चों के विकास में इसकी जो भूमिका है, उसे समझना चाहिए. हमारे खिलौने बच्चों के मस्तिष्क विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. साथ ही मनोवैज्ञानिक गतिविधि तथा ज्ञान की कुशलता बढ़ाने में बच्चों की मदद करते हैं.
खेल और खिलौने के क्षेत्र में स्वयं को आत्मनिर्भर बनाना है. हमारे खिलौने में मूल्य, संस्कार और शिक्षाएं भी होनी चाहिए. उसकी गुणवत्ता अंतर्राष्ट्रीय मानकों के हिसाब से होनी चाहिए.
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खिलौने बच्चों के खेल के साथ-साथ उनका शारीरिक एवं बौद्धिक विकास भी करते हैं. माता-पिता सिर्फ़ अच्छे खिलौने देकर उनके विकास की प्राकृतिक प्रगति को गति प्रदान कर सकते हैं.
बच्चों के शुरुआती वर्षों यानी बचपन के महत्व को भूल से भी अनदेखा नहीं करना चाहिए. बच्चे के जीवन के पहले पांच वर्ष संरचनात्मक होते हैं. खिलौने और बच्चों की एक रोचक बात और है कि उच्च आय वर्ग वाले माता-पिता, तो क़ीमती खिलौनों में अपने बच्चों को व्यस्त कर देते हैं, मगर उनके मुक़ाबले कम आय या मध्यम आमदनीवाले माता-पिता अपने बच्चों को ज़्यादा समय देेते हैं. इस वर्ग की कामकाजी महिलाएं भी अपने बच्चों को ज़्यादा समय देने के लिए प्रयासरत रहती हैं.
कम आमदनीवाले परिवारों में बच्चों की ख़ुशी और आनंद को लेकर भी ज़्यादा सजगता देखी गई है. चूंकि वो अपने बच्चों को ख़ुद ही पढ़ाना पसंद करते हैं, इसलिए अपने बच्चों की कमज़ोरियों और कमियों को बेहतर समझ पाते हैं.
ऐसे में समय रहते माता-पिता अपने बच्चों की कमियों को दूर करने की काेशिश करते हैं. इससे बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता है. इससे पहले किए गए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दावा किया था कि जिन बच्चों के पिता महंगे खिलौने की बजाय घर पर खिलौने बनाकर खेलने में मदद करते हैं, वो बच्चे ख़ुश रहते हैं और उनका स्कूल में प्रदर्शन बेहतर होता है.
- पूनम पांडे
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