एक वक़्त था जब बच्चे स्कूल से मिला होमवर्क ख़त्म करके बाहर जाकर सड़कों और गलियों में दोस्तों के साथ सारे देसी खेल खेला करते थे. कभी गिल्ली-डंडा, कभी कंचे, कभी लंगड़ी तो कभी खो-खो या छुपा-छुपी. और जब थककर चूर हो जाते, तो घर आकर खाना खाकर राजा-रानी की कहानियां, परिकथाएं या लोरी सुनकर सो जाते थे. उनके सवाल और बातें बेहद मासूम होती थीं. लेकिन आज ऐसा नहीं है. आज का बचपन हाईटेक युग में बेहद स्मार्ट और कुछ हद तक शातिर भी हो गया है. आज के बच्चों को न तो दादा-दादी या नाना-नानी की कहानियां सुनना पसंद है और न ही मां की लोरियां, उन्हें न तो दोस्तों के साथ देसी खेल खेलना भाता है और न ही मासूम बातें करना. यही वजह है कि आज बचपन मासूम नहीं रहा. क्या है वजहें, आइए जानें.
एक्सपोज़र: आज का टाइम ही ऐसा है कि बच्चे हों या बड़े- सभी के पास एक्सपोज़र है. आजकल हर जानकारी और हर चीज़ आसानी से उपलब्ध यानी आसानी से उपलब्ध है. बच्चे तो वैसे भी बहुत सेंसिटिव होते हैं और आसानी से सही-ग़लत का पता हुए बगैर चीज़ों से प्रभावित हो जाते हैं.
टेक्नोलॉजी: माना तकनीकी क्रांति ने जीवन आसान बनाया है, लेकिन उतनी ही परेशानियां भी खड़ी कर दी हैं. आजकल के बच्चे गुड्डे-गुड़ियों से नहीं खेलते और न ही उन्हें खिलौने ज़्यादा पसंद हैं, उनको वीडियो गेम्स या मोबाइल गेम्स लुभाते हैं. वो अधिकांश समय फ़ोन पर ही बिताते हैं, क्योंकि आजकल पढ़ाई से लेकर हर चीज़ ऑनलाइन होती है. बच्चों के पास स्मार्ट फ़ोन होते हैं, जहां वो बिना कंट्रोल के कुछ भी देख और सीख सकते हैं.

सोशल मीडिया: चाहे इंस्टाग्राम हो या यूट्यूब- इन प्लेटफॉर्म्स पर बच्चे अपनी मौजूदगी बनाए रखते हैं. चैट करते हैं, रील्स बनाते हैं. इतना जी नहीं बच्चों के पैरेंट्स भी उनको डांस या अन्य तरह के रील्स बनाने के लिए उकसाते हैं. सभी को वायरल होना है आज और पैसे-लाइक्स व फॉलोअर्स बढ़ाने हैं. छोटे-छोटे बच्चे इन रील्स में फूहड़ डांस और अश्लील एक्सप्रेशंस देते दिख जाएंगे, जो बेहद शर्मनाक और दुखद है.
सस्ता मनोरंजन: आजकल जिस तरह का सस्ता मनोरंजन मिल रहा है, उससे सबसे ज़्यादा बच्चे ही प्रभावित होते हैं. ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर हर चीज़ खुलेआम परोसी जा रही है. क्रिएटिविटी के नाम पर जिस तरह से अश्लीलता फैलाई जा रही है और फ्रीडम के नाम पर जिस तरह के कपड़े और स्टाइल को ट्रेंड बनाया जा रहा है, वो किसी के लिए भी सही नहीं है.
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प्रैक्टिकल अप्रोच: बच्चा बड़ों से ही सीखता है. वो देखता है कि किस तरह से उसके पैरेंट्स पैसों, सुविधाओं और महंगी चीज़ों को महत्व देते हैं. किस तरह रिश्तेदारों और अपनों से ही कतराते हैं, किस तरह स्टेटस सिंबल के नाम पर झूठा दिखावा करते हैं, ज़रूरत न होने पर भी महज़ शौक के लिए पैसा खर्च करते हैं, तो ज़ाहिर है बच्चे को भी यही सब सही लगता है. यही कारण है कि आजकल बच्चे इमोशनल कम और प्रैक्टिकल ज़्यादा हो रहे हैं. वो भी रिश्तेदारों से दूर भागता हैं. मॉल से ब्रांडेड चीज़ें लेना उन्हें पसंद आने लगता है और गैजेट्स के पीछे भागना उनको कूल लगता है.
रीडिंग हैबिट्स कम होना: मशीनी युग में बच्चे किताबों से दूर होते जा रहे हैं और सारा वक्त गैजेट्स और इंटरनेट के टच में रहते हैं. अच्छा साहित्य पढ़ना उनको बोरिंग लगता है और टीवी, मोबाइल या लैपटॉप उनके नए खिलौने बन चुके हैं. बच्चे अब संस्कार नहीं सीखते, क्योंकि उनमें पेशंस कम होता जा रहा है और वो हाइपरऐक्टिव होते जा रहे हैं, क्योंकि लाइफस्टाइल और खानपान उन्हें ऐसा बना रहा है.
जंक फूड भाता है: बच्चों को घर का खाना कम ही पसंद आता है, इसलिए ये पैरेंट्स पर है कि वो कैसे हेल्दी खाना बच्चों को खिलाएं. जंक फूड कभी-कभार ठीक है, लेकिन आजकल पैरेंट्स इतने बिज़ी रहते हैं कि वो ख़ुद भी हेल्दी खाना नहीं खाते और न बच्चों को ही खिलाते हैं. यही कारण है कि बच्चों में मोटापा और बड़ों के रोग तेज़ी से बढ़ रहे हैं.

आसान नहीं है पैरेंटिंग
• आजकल पैरेंटिंग की कई चुनौतियां हैं, क्योंकि दोनों पैरेंट्स वर्किंग होते हैं.
• न्यूक्लीयर फैमिली होती है.
• बच्चों के लिए समय कम होता है, जिससे कम्युनिकेशन कम हो पाता है.
• पैरेंट्स को काफ़ी सतर्क रहने की ज़रूरत है अपने व्यवहार को लेकर.
• अपने शब्दों का चयन सोच-समझकर करें.
• बच्चों को ज़रूरत और शौक में फ़र्क़ समझाएं.
• उन्हें पैसों की अहमियत बताएं, लेकिन रिश्तों की प्राथमिकता भी समझाएं.
• बच्चों को यह ज़रूर बताएं कि पैसा कमाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए कोई शॉर्ट कट नहीं होता और ईमानदारी व मेहनत का कोई सब्सटीट्यूट नहीं होता.
• बच्चों से छोटे-मोटे घर के काम करवाएं, इससे वो ज़िम्मेदार बनेंगे और रिसर्च कहता है कि घरेलू काम बच्चों को आत्मविश्वासी बनाता है.
• अनुशासन में रखें, क्योंकि आजकल अक्सर पैरेंट्स की यही सोच होती है कि हम कड़े अनुशासन में पले-बढ़े, इसलिए हम अपने बच्चों को खुली छूट देंगे. ऐसा करने पर बच्चे ग़लत रास्ते पर जा सकते हैं.
• हर ज़िद पूरी न करें. हमको बचपन में अभाव रहा, तो हम अपने बच्चे को क्यों तरसाएं, ये सोच टॉक्सिक होती है, इससे बच्चे बिगड़ेंगे.
• बच्चों को अपने धर्म और त्योहारों का मतलब बताएं. साइंस के उदाहरणों के साथ समझाएं.
बच्चों में बढ़ रही है हिंसक और आपराधिक प्रवृत्ति
• हाल ही में बेंगलुरु में 10 साल की बच्ची के साथ दो नाबालिगों ने रेप किया. बच्ची स्कूल से घर जा रही थी कि तभी लड़के ने चाकू दिखाकर उसे अपने साथी के साथ अपने किसी परिचित के घर ले गया, जहां उसके साथ दुष्कर्म किया. बच्ची का इलाज जारी है और दोनों आरोपी पुलिस हिरासत में है.
• नाबालिगों में अपराध करने के मामलों में लगभग 50% की बढ़ोतरी हुई है. पंजाब में 13 साल के लड़के ने अपनी ही 7 साल की बहन से बलात्कार किया.
• सिर्फ यौन शोषण ही नहीं, लूट, हत्या और चोरी जैसे मामलों में भी नाबालिग पीछे नहीं हैं.
• बच्चों में नशे से लेकर पोर्न देखने की लत बढ़ती जा रही है, जो उनमें हिंसक और आपराधिक मानसिकता को बढ़ावा देती है.
• दिखावे की ज़िंदगी और पैसों की बेलगाम ख़्वाहिश बच्चों को अपराधी बना रही है.
• ख़बरें और रिसर्च के मुताबिक़ स्कूली बच्चों में भी ड्रग्स की लत बढ़ रही है. कुछ ख़ास इलाकों में स्कूल के बाहर आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक्स की दुकानों पर ड्रग्स बेचे जाते हैं.
• बच्चों में बढ़ती नशे की लत पर एक ग़ैर सरकारी संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर कोर्ट ने कहा यह बहुत गंभीर मामला है और इस मामले को सीजेआई के पास भेजते समय यह आग्रह किया गया कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा स्वतः संज्ञान लिए गए मामले के साथ सुनवाई की जाए.
• इसलिए ज़रूरी है कि पैरेंट्स बच्चों की गतिविधियों और बदलते व्यवहार के प्रति सतर्क रहें.
• बच्चों के फ्रेंड सर्कल के बारे में जानकारी हासिल करें.
• समय की पाबंदी ज़रूरी है. बाहर कब तक रहना है और घर कब तक लौटना है- ये रूल सेट करें.
• अगर बच्चा लत का शिकार हो गया है, तो सच को स्वीकारें और मेडिकल व एक्सपर्ट की मदद लें. बच्चे को प्यार से हैंडल करें.
- गीता शर्मा

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