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लोक कथा- सच्चा साथी (Lok Katha- Sachcha Sathi)

हुआ यूं कि पिछली बार फेर बदल करने के लिए जो कीलें ठोकी गई थीं, उनमें से एक उस छिपकली के पैर को चीरती हुई दूसरे तख़्त में चली गई थी. मालिक को बहुत दुख हुआ, परन्तु इस बात का आश्चर्य भी कम न था कि पिछले पांच वर्षों से यह छिपकली जीवित कैसे बची रही?

इंग्लैंड में घरों की दीवारें लकड़ी के दो तख़्तों को पास-पास खड़ा करके बनाई जाती हैं. इससे बाहर की सर्दी भीतर कम असर करती है और घरों की हीटिंग अधिक असर करती हैं.
साथ ही इस विधि से बने घरों में नक़्शा बदलने में भी आसानी होती है और आवश्यकता अनुसार फेर बदल कर दिया जाता है.
ऐसे ही एक घर के मालिक ने जब अपनी दीवार के एक तख़्त को हटाया, तो उसने देखा एक छिपकली वहां फंसी हुई है. हुआ यूं कि पिछली बार फेर बदल करने के लिए जो कीलें ठोकी गई थीं, उनमें से एक उस छिपकली के पैर को चीरती हुई दूसरे तख़्त में चली गई थी. मालिक को बहुत दुख हुआ, परन्तु इस बात का आश्चर्य भी कम न था कि पिछले पांच वर्षों से यह छिपकली जीवित कैसे बची रही?


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कुछ असम्भव सी बात थी यह. वह हैरान खड़ा सोच रहा था कि उसने सामने से एक अन्य छिपकली को मुंह में कुछ दबाए आते देखा और उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया.
पिछले पांच वर्षों से बिना उम्मीद छोड़े वह छिपकली अपने साथी को भोजन उपलब्ध कराती रही थी.

मन में यह विश्वास लिए कि कभी न कभी वह इस बंधन से छुटकारा पा ही लेगी. उनमें कौन नर थी कौन मादा इसकी पहचान तो नहीं हो पाई और न ही इसकी ज़रूरत है. असली बात तो साथ निभाने की है. एक-दूसरे की ज़रूरत के समय काम आने की है.
हम मानवों को गुमान है कि हम अन्य जीवों की तुलना में बहुत उच्च हैं, परन्तु अनेकों बार ही तो हम अपने स्वार्थ को औरों से ऊपर रखते हैं.

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याद रहे- दुनिया बहुत बड़ी हैं, परन्तु आपके किसी अपने के लिए सिर्फ़ आप ही हैं, जो उसकी ज़रूरत के काम आ सकते हैं. अतः मुश्किल में किसी अपने का साथ कभी मत छोड़िए.

Usha Wadhwa
उषा वधवा

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Photo Courtesy: Freepik

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