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40 ग़लतियां जो पैरेंट्स करते हैं (40 Mistakes parents make today)

 
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ना तो कोई पैरेंट्स परफेक्ट होता है, ना हर बच्चा आदर्श. हां, हर पैरेंट्स की ये ख़्वाहिश ज़रूर होती है कि उनका बच्चा दुनिया का सबसे अच्छा बच्चा हो, बड़ा होकर ख़ूब नाम कमाए, उसे ज़िंदगी की हर ख़ुशी मिले. इस चक्कर में वे कभी बहुत ज़्यादा उदार हो जाते हैं, तो कभी बहुत ज़्यादा सख़्त. और कई ग़लतियां भी कर बैठते हैं. यहां हम कुछ ऐसी ही ग़लतियों पर चर्चा कर रहे हैं, जो अक्सर पैरेंट्स कर बैठते हैं और जिनका बच्चे के मन पर बुरा असर होता है.
1. अपना पैरेंटल अधिकार बनाए रखें. भले ही बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करें, लेकिन सीमा ज़रूर निर्धारित करें. शेयरिंग, केयरिंग, हंसने-खेलने में उनका रोल भी समान होना चाहिए, किंतु मार्गदर्शन, शिक्षा, सुरक्षा व अनुशासन आपकी ज़िम्मेदारी है. 2. खिलौना हो या पुस्तक, स्वतंत्रता हो या ज़िम्मेदारी- न समय से पहले दें, न ज़रूरत से ज़्यादा, ताकि बच्चा चीज़ों व भावनाओं की कद्र करना जाने. 3. बच्चों से यदि कोई वादा किया है तो उसे निभाएं ज़रूर. कभी-कभी पैरेंट्स को समय नहीं मिल पाता और चाहते हुए भी उसे समय पर नहीं निभा पाते हैं, ऐसे में बच्चा आपको झूठा समझ लेता है. 4. हर बात में नुक्ताचीनी न करें. वो आपसे भले ही कुछ न कहे, लेकिन अपनी मित्र मंडली में दूसरों को टोकना, छेड़ना या बुली करना उनका स्वभाव बन सकता है. 5. उनके डर का मज़ाक न बनाएं. कोई बच्चा अंधेरे से डरता है, कोई प्लास्टिक की छिपकली से तो कोई पेड़ की टहनी से. उनके डर का मज़ाक न उड़ाएं, न ही बार-बार उस स्थिति में उसे ले जाएं, जिससे वो डर रहा है. 6. अपने बच्चों को लेकर बहुत अधिक महत्वाकांक्षी न बनें. अक्सर माता-पिता की महत्वाकांक्षा पर खरे न उतर पाने पर बच्चे कुंठाग्रस्त हो जाते हैं और फिर आत्महत्या जैसे मामले सामने आते हैं. 7. बच्चों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों की अनदेखी न करें. पैरेंट्स की लापरवाही एक ओर बच्चों को गैरज़िम्मेदार बनाती है तो दूसरी ओर मनमाना रवैया अपनाने में उसे देर भी नहीं लगती. 8. उनकी बातों को ध्यान से सुनें. हमारे भारतीय परिवारों में प्राय: इसे ज़्यादा ज़रूरी नहीं समझा जाता. ज़्यादातर पैरेंट्स बोलते हैं और बच्चे उनकी हर बात सुनते हैं, किंतु बाल मनोविज्ञान के जानकारों का मानना है कि बच्चे को अपनी बात कहने का मौक़ा दिया जाना चाहिए और उसे ध्यान से सुना भी जाना चाहिए. इस प्रकार बच्चे को दिशा देना आसान हो जाता है. 9. हर व़क़्त उन्हें अनुशासन के दायरे में न रखें, ना ही एक दिनचर्या बनाकर उसका अनुसरण कराएं. इस तरह बच्चे की अपनी रचनात्मकता तथा व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता. 10. दायरा संकुचित न करें. उसे जितना अधिक एक्सपोज़र या खुलापन मिलेगा, वह जितनी ज़्यादा दुनिया देखेगा, जितनी ज़्यादा पुस्तकें पढ़ेगा, उतना ही ज़्यादा मानसिक विकास होगा. 11.अच्छी फ़िल्में और टीवी प्रोग्राम भी बच्चे को एक्सपोज़र देते हैं. 12. पॉकेटमनी देने के बाद यह आशा न करें कि वह आपकी मर्ज़ी के मुताबिक ख़र्च करे. हां, पैसे की क़ीमत, प्राथमिकताएं और बचत के बारे में उसे अवश्य समझाएं. 13. उम्र के फ़ासले या जेनरेशन गैप को लेकर विचारों मेंे टकराव न आने दें. हमेशा ही पीढ़ियों के अंतर के कारण बदलते समय के साथ विचार भी बदल जाते हैं. देखना ये है कि समय और परिस्थिति के साथ किसके विचार सही हैं. 14. अपने बच्चों के बीच परस्पर ईर्ष्या या द्वेष को जन्म न लेने दें, ना ही ओवर रिएक्ट करें. बच्चों के लड़ाई-झगड़े विकास के स्वाभाविक अंग हैं, किंतु पैरेंट्स का पक्षपातपूर्ण रवैया उनकी नासमझी तथा अपरिपक्वता का संकेत है. 15. संकोची बच्चे को बार-बार ‘संकोची’ न कहें और न ही उसके व्यवहार की दूसरों के सामने चर्चा करें, वरना बच्चा और भी संकोची हो जाएगा. उसके प्रति हमेशा प्रेरणात्मक रवैया अपनाएं. 16. बच्चों के दोस्तों की आलोचना न करें, ख़ासकर किशोर बच्चों के मित्रों की. 17. बच्चों की ज़िद को उनका स्वभाव न समझें. ज़िद करना बाल सुलभ स्वभाव है. आपके समझदारीपूर्ण रवैए से यह आदत स्वत: ही कम हो जाएगी. 18. बच्चों के सामने तर्क-वितर्क या अपशब्दों का प्रयोग कभी न करें. इस तरह उनमें असुरक्षा की भावना पैदा होने लगती है और वो घर से बाहर मित्रों या मित्रों के परिवार के बीच समय गुज़ारना पसंद करने लगते हैं. पढ़ाई के प्रति उनकी एकाग्रता भी कम होने लगती है. 19. परस्पर बच्चों के बीच या अन्य किसी बच्चे से किसी भी बच्चे की तुलना नहीं की जानी चाहिए. इससे बच्चे में या तो सुपिरियोरिटी कॉम्प्लेक्स या फिर आत्महीनता का भाव आने लगता है. याद रहे, हर बच्चा एक अलग व्यक्तित्व है. उसके श्रेष्ठ गुणों को उभारना माता-पिता की ज़िम्मेदारी है. 20. ख़ुद को इतना व्यस्त न करें कि बच्चों के लिए समय ही न हो. बच्चों के विकास और दिनचर्या में शामिल होना भी बच्चों के संपूर्ण विकास का हिस्सा है. यह भी पढ़े: पैरेंटिंग गाइड- बच्चों को स्ट्रेस-फ्री रखने के स्मार्ट टिप्स 21. बच्चों से अपनी आर्थिक स्थिति न छिपाएं. पैसे का मूल्य व प्राथमिकताओं की ज़रूरत बताएं. यदि आप ख़र्च का सही तरीक़ा अपनाते हैं तो बच्चों की मांग भी आपकी आर्थिक स्थिति के अनुरूप होगी. 22. बच्चों के सामने झूठ न बोलें. यदि झूठ बोलना ही पड़ा है तो आगे-पीछे उसकी वजह बताएं और उसे विश्‍वास दिलाएं कि अगली बार आप सच्चाई के साथ परिस्थिति का सामना करेंगी. 23. बच्चों को अपने संघर्ष की कहानी सुनाकर उनके साथ अपनी तुलना न करें. यदि आप संपन्न हैं तो उन्हें ख़ुशहाल बचपन दें. आपका संघर्ष उनकी प्रेरणा बन सकता है. 24. पढ़ाई को लेकर ताने न मारें. बेहतर होगा, उनकी टीचर्स से संपर्क करें. कक्षा में ज़्यादा अंक प्राप्त करने वाले बच्चे से उसकी तुलना न करें. 25. पीयर प्रेशर (दोस्तों की देखादेखी) को अनदेखा न करें. इससे बच्चों में कॉम्प्लेक्स आ सकता है. 26. बच्चों को अपने आपसी झगड़ों के बीच इस्तेमाल न करें और न ही उनके सामने पारिवारिक विवाद, झगड़ों की चर्चा करें. इसका बच्चे के दिलोदिमाग़ पर बुरा असर हो सकता है. 27. बच्चों की जिज्ञासा की अवहेलना न करें. बच्चे नई चीज़ छूना या देखना चाहते हैं. बड़ों के बीच होने वाले वार्तालाप में अचानक ही प्रश्‍न कर बैठते हैं. ऐसे में उन्हें डांट कर चुप करा देने की बजाय सही मैनर्स से अवगत कराएं. 28. हर समय बच्चों को ख़ुश करने की कोशिश न करें, ना ही घर के हर निर्णय में उनकी दख़ल हो, विशेषकर आपके सामाजिक या पारिवारिक संबंधों में. 29. छोटे बच्चों को डिस्ट्रक्टिव (विध्वंस) गेम्स खेलने न दें. जहां तक हो, उन्हें रचनात्मक खेलों के लिए प्रेरित करें. डिस्ट्रक्टिव गेम्स बच्चों को उधमी व उद्दंड बनाते हैं. 30. टीवी पर हिंसात्मक कार्यक्रमों को ज़्यादा न देखने दें. इससे भी बच्चे डिस्ट्रक्टिव बनते हैं. साथ ही भय व असुरक्षा महसूस करते हैं. 31. हर उम्र में बच्चों से समान व्यवहार की अपेक्षा न करें. कल तक बच्चा आपकी हर बात मानता रहा है, लेकिन हो सकता है कि आज उसी बात के लिए आपसे प्रश्‍न करने लगे. 32. बच्चे को ग़ुस्सा आए तो उसे दंड न दें. साथ ही अनुशासन को भी दंड न बनाएं. 33. बच्चों को बहुत जल्दी आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश न करें. उम्र के अनुसार उन्हें उतनी ही ज़िम्मेदारी सौंपें, जितनी वो संभाल सकें. 34. डॉमिनेटिंग पैरेंट्स न बनें. ‘जैसे कहते हैं वैसा करो’ वाली भाषा न बोलें, बल्कि अच्छे रोल मॉडल बनकर उनके भावनात्मक व संवेदनात्मक विकास को सही रूप से हैंडल करें. 35. स्कूली समस्याओं के प्रति उदासीन न हों, बल्कि पढ़ाई के अतिरिक्त भी वहां ऐसी स्थितियां होती हैं, जो बच्चे के विकास को प्रभावित करती हैं. 36. पारिवारिक व सामाजिक परंपराओं की उपेक्षा न करें. ये विकास के अंग का आवश्यक हिस्सा हैं. इनसे बच्चे बहुत कुछ सीखते हैं. 37. चोरी-छिपे बच्चों की बातें सुनना या ताका-झांकी करना ग़लत है. इस तरह आपके प्रति उनका आदर प्रभावित होगा. आपकी इस आदत को वे पॉज़िटिव रूप में नहीं लेंगे. 38. टीनएज के विद्रोह को चुनौती न समझें. उनके अंदर कुछ कर दिखाने का ज़ज़्बा होता है, औरों से अलग कुछ करने की चाहत होती है. इसे सहज रूप से लें. 39. फैमिली गेट-टुगेदर या फैमिली मीटिंग से बच्चों को दूर न करें. याद रहे, परिवार जीवन की प्रथम पाठशाला है. 40. सेक्स, ड्रग्स, बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड आदि विषयों पर बातचीत करने से न कतराएं. बातचीत के दौरान सहजता बरतें, ताकि बच्चे इन विषयों पर भी आपसे निसंकोच मशवरा कर सकें.
- प्रसून भार्गव
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