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व्यंग्य- शादी का आठवां वचन और हरिद्वार में हनीमून (Satire- Shadi Ka Aathvaan Vachan Aur Haridwar Mein Honeymoon)

आजकल हालात इतने ख़राब हैं कि ऑनलाइन शादी वालों का धंधा चौपट हो रहा है. पुलिस सब से पहले इनकी साइट ही खंगाल रही है और ढूंढ़ रही है कि कहीं ये कोई ऐसी वैसी सर्विस न शुरू कर दें. ऐसे में जब मैंने एक पंडितजी को शादी का आठवां वचन देते हुए मैंने फेरे लगवाते सुना तो मेरी आंखें नम हो गईं.

वह ज़माने गए जब ट्रेन से गुज़रते हुए दीवार पर लिखा मिलता था- रिश्ते ही रिश्ते, एक बार मिल तो लें. उस दौर में मामा, फूफा, दूर के चाचा-चाची, नाऊ और पंडितजी की बड़ी मांग रहती थी. जिसे भी रिश्ता करना होता वह सभी से बना कर रखता. लोग बड़े दूरगामी होते थे, जो खानदानी लोग थे वे बस इशारा कर देते. देखो आपकी बिटिया सयानी हो रही है कोई योग्य वर हो तो बताइएगा. वैसे ही पंडित जी हों या नाऊ (आज के हेयर ड्रेसर) अच्छे बच्चों पर नज़र रखते और गाहे-बगाहे तकाज़ा देते रहते, "राजा भैया बड़े हो रहे हैं मेरी नज़र में एक सुंदर सुयोग्य कन्या है आप अनुमति दें तो बताऊं." फिर वह जोड़ते, "बड़ी ही सुशील और खानदानी लड़की है, बस थोड़ा ख़र्च-पानी में कमज़ोर परिवार है. वैसे आप तो राजा ठहरे आपको दान-दहेज की क्या ज़रूरत. वैसे शादी में कमीं नहीं रखेंगे. इतना कह देते हैं."

इधर परिवारों में बात होती, उधर लड़के लड़की में लुका-छिपी के बीच शादी तय हो जाती. थोड़े नाज़-नखरे होते कुछ मान-मनौवल, मगर शादी सफल होती. कुछ होता तो बड़े-बुज़ुर्ग कभी समझा-बुझा कर तो कभी डांट-डपट कर मामला सुलटा देते. 

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वैसे मेरा मानना तो यह है कि अरेंज मैरेज न हो तो हमारे देश के नब्बे प्रतिशत लड़के कुंवारे रह जाए. वे बातें चाहे जितनी कर लें अपनी शादी के लिए एक लड़की खोज पाना या किसी को शादी के लिए तैयार करना उनके बस की बात नहीं है. इसी का नतीज़ा है कि अभी तक पुरानी परंपरा चली आ रही है. जैसे मेरे पिताजी की शादी दादाजी ने कराई और मेरी शादी पिताजी ने वैसे ही मैं भी अपने बच्चों की शादी के ख़्वाब देखने लगा था. मगर अचानक मुझे पता चला दुनिया बदल गई है. आजकल शादी ऐसे नहीं होती और न ही यह लुका-छिपी का खेल है कि लड़के-लड़की ने एक-दूसरे को तिरछी आंखों से शर्माते हुए देखा और मां बाप ने पूछा, "क्यों बेटा लड़की पसंद आई." और बस बेटे की गर्दन ज़रा सी हिली नहीं की ताल ठोक दी.

"लो जी मिठाई खाओ, रिश्ता पक्का."

लड़की से पूछने का तो चलन ही नहीं रहा. लड़की का बाप तो आधा किलो मिठाई का डिब्बा लड़की को दिखाते समय साथ लाता था. रिश्ता हुआ तो मुंह मीठा करा देंगे, नहीं तो मंदिर में चढ़ा कर गरीबों की दुआ लेंगे. चलो यह रिश्ता हाथ से गया तो गया अब अगला जल्दी हो जाए. 

आजकल तो बाक़ायदा कई ऐप आ गई हैं, जिस पर प्रोफ़ाइल डालो, बातचीत करो, मीटिंग करो, मिलो-जुलो ठीक लगे तो आगे बढ़ो. अब मां-बाप और रिश्तेदारों की जगह सोशल मीडिया के प्रोफाइल ने ले ली है. अब जिसे आसपास के लोग सुंदर, सुशील और खानदानी बता कर उसके गुण गाते हैं, उसे लड़का उसकी फेसबुक और इंस्टा प्रोफाइल देख कर ही हाथ जोड़ देता है और कहता है, "मम्मी प्लीज़ आप जैसा समझ रहीं हैं वैसा नहीं है. इसके एक लाख फालोवर्स और सौ से ज़्यादा बॉयफ्रैंड्स हैं. बट यू सी मैं एडजस्ट कर लूंगा, बट पापा आप सोच लो मम्मी को दिक्क़त आएगी. ऐसी-ऐसी फोटो लोड है. इसके बाद तो बस रिश्ता आगे बढ़ने से पहले ही सन्नाटा छा जाता है.

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जितना ही यह छांटने का ऑप्शन बढ़ा है, रिश्ता मिलना मुश्किल हो गया है. कभी कलर नहीं मिलता , तो कभी हाइट का लफड़ा आता है , यह मिल भी जाये तो एज्युकेशन और जॉब प्रोफाइल आड़े आती है. वह तो वर्क फ्रॉम होम ने फिर भी सहूलियत दे दी है, वरना एक भारत में तो दूसरा लंदन में बैठा है. मामला किसी तरह से फाइनल होने वाला होता है, तो पता चलता है कहीं वेज तो कहीं नॉन वेज का चक्कर पड़ गया. भगवान ने कृपा कर भी दी तो लड़की या लड़का मांगलिक निकलेगा, लो हो गया लोचा और खुदा न खास्ता सब ठीक निकला तो फैमिली सही नहीं मिलेगी . बस यह समझ लीजिए आज साइट से शादी कर देना आसान नहीं है. इसके बाद इस शादी की कोई गारंटी नहीं कि कितनी चलेगी. यहां तक कि जो मैरेज साइट्स रिश्ते बनवाती हैं, वे ही तलाक़ के लिए सही वकील भी बताती हैं.

किसी रिश्तेदार को आप ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते और साइट वाला बस पेड सब्सक्रिप्शन लेने के बाद किनारे हो जाता है, यह कह कर कि हमने तो वेरिफाइड प्रोफाइल बताई थी और आपको दिक्क़त फेरे के बाद आई है. हमारी ज़िम्मेदारी शादी करने की है उसे निभाने की ज़िम्मेदारी तो आपकी है.

ख़ैर यह सब ऐसे ही चलता रहता कि अभी एक दो साहसिक जोड़े सामने आ गए, जो अपने हिसाब ख़ुद करने पर आमादा हो गए. जैसे किसी लड़की का कोई चक्कर है तो वह शादी करके पति को हनीमून पर ले जा कर निपटने लगी. किसी ने झूठा केस कर तलाक़ की अर्जी लगा दी तो कोई दबाव बना कर पति को छोड़ प्रेमी संग भाग गई. ऐसे में लड़के तो लड़के बड़े-बुज़ुर्ग तक डरे हुए हैं.

आजकल हालात इतने ख़राब हैं कि ऑनलाइन शादी वालों का धंधा चौपट हो रहा है. पुलिस सब से पहले इनकी साइट ही खंगाल रही है और ढूंढ़ रही है कि कहीं ये कोई ऐसी वैसी सर्विस न शुरू कर दें. ऐसे में जब मैंने एक पंडितजी को शादी का आठवां वचन देते हुए मैंने फेरे लगवाते सुना तो मेरी आंखें नम हो गईं.

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सात फेरों के बाद पंडितजी ने कहा, "और अब यह अंतिम फेरा है. इसे व्हाट्स एप और सोशल मीडिया के युग में आठवें फेरे के नाम से जाना जाएगा." यह कहकर वे बोले, "वर वधू अब अपने सिम निकाल कर हवन कुंड में डालेंगे और वचन लेंगे की अब अपने सभी पुराने सोशल मीडिया अकाउंट बंद कर माता पिता द्वारा इसी मंडप में प्रदान किए गए सिम से नई आई डी बना कर एक दूसरे को पासवर्ड शेयर करेंगे, तभी यह विवाह संपन्न होगा. अन्यथा इसी मंडप में उल्टे फेरे लगवा कर शादी तोड़ दी जाएगी."

इसके बाद उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप गंगा किनारे हरिद्वार के प्रतिष्ठित आश्रम की बुकिंग देते हुए कहा, "नए युग में वर-वधू के परिवार और उनके जीवन की रक्षा हेतु इन्हें हनीमून हरिद्वार में मनाना होगा. साल भर और कहीं जाने की इज़ाजत नहीं होगी. और पहाड़ पर तो बिल्कुल नहीं."

इतना सुनना था कि वर-वधू के परिवार के लोग पंडितजी के चरणों में साष्टांग दंडवत करते हुए बोले, "जय गुरुदेव सातों वचन का तो पता नहीं पर आठवें वचन और हरिद्वार में हनीमून की शर्त तो बहू-बेटे को माननी होगी!"

इति पूर्णम.

- शिखर प्रयाग 

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