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कहानी- वो लड़की कम हंसती है… (Short Story- Who Ladki Kam Hasti Hai…)

नेहा शर्मा

“सब मुस्कुराते हैं, कोई खुल कर तो कोई चुपचाप और चुपचाप वाली मुस्कुराहट ज़्यादा सच्ची होती है.” ये कहते हुए उस अजनबी ने तुरंत पलटकर उसकी ओर देखा. वो लाख चाहकर भी अपनी मुस्कान को अंदर ना ले सकी.

“तुम हंसती क्यों नहीं?”

आज फिर उसे किसी ने टोका. इस एक बात को सुनने की उसे इतनी आदत हो चुकी थी कि उसने कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया कि आज ये बात किसने कही. पहले-पहले जब कोई ये सवाल पूछता, तो वो हैरान हो जाती. धीरे-धीरे उसने इन बातों को ही सुनना छोड़ दिया था. वो ख़ुश रहती, पर सब उसे बेहद सीरियस क़िस्म की लड़की कहा करते और वो भी अपनी इस इमेज से ख़ुश थी. सब उससे दूर ही रहा करते और बस काम पड़ने पर ही बात करते. ऑफिस में भी कोई नया आता, तो उससे मिलने से पहले ही उस नए इंसान को बता दिया जाता कि उससे मुस्कान की उम्मीद ना रखी जाए. सब यूं ही चल रहा था कि ऑफिस में उसकी एंट्री हुई. बड़ा अजीब-सा इंसान था वो, जब उसके पास बाकियों की तरह अभिवादन के लिए आया, तो उसे भी वही बात कही गई. लेकिन इससे पहले कि वो अपनी मुस्कान को वापस ले पाती, उस अजनबी के जवाब ने मुस्कान को वापस जाने से रोक दिया.

उसने कहा, “सब मुस्कुराते हैं, कोई खुल कर तो कोई चुपचाप और चुपचाप वाली

मुस्कुराहट ज़्यादा सच्ची होती है.” ये कहते हुए उस अजनबी ने तुरंत पलटकर उसकी ओर देखा. वो लाख चाहकर भी अपनी मुस्कान को अंदर ना ले सकी. चेहरे से मुस्कुराहट जैसे चिपक सी गई थी. वो भी जवाब में मुस्कुराया और अपना नाम बताकर चला गया. वो सोच में डूब गई कि क्या उसकी मुस्कान दिखाई देती है या आज भी नहीं दिखाई दी? तभी उसने सोचा उसने क्या नाम बताया था अपना... शायद ऋषभ.

ऑफिस में काफ़ी कुछ बदल गया था. ऋषभ जहां होता, वहां से हंसी-ठहाके गूंजते. ना चाहकर भी उसके होंठों पर मुस्कान खिल जाती. उस दिन वाणी ऑफिस में आई, तो जैसे सब कुछ बदला हुआ था. वो चुपचाप अपनी सीट पर बैठकर काम करने लगी.

ज़ोर की आवाज़ सुनकर उसकी तो चीख ही निकल गई. घबराकर देखा तो सामने केक लिए मुस्कुराता हुआ ऋषभ खड़ा था. वाणी कुछ समझ-पूछ पाती, उसके पहले ही सभी ने एक सुर में गाना शुरू कर दिया, “हैप्पी बर्थडे टू यू...” ऋषभ चहकता हुआ बोला, “हैप्पी बर्थडे वाणी, सेलिब्रेशन अकेले नहीं करने देंगे.”

तभी बॉस की आवाज़ ने सबका ध्यान खींचा, “हैप्पी बर्थ डे वाणी एंड थैंक यू यंग बॉय, हमारी बेस्ट एम्प्लॉई का बर्थडे ढूंढ़ने के लिए.” ऋषभ बॉस से मिली शाबाशी पर इतरा रहा था. बॉस के सामने वाणी को न चाहते हुए भी केक काटना पड़ा. सब पार्टी का आनंद ले रहे थे. वाणी वॉशरूम की ओर बढ़ी. वो नहीं चाहती थी कि उसकी रुलाई सभी के सामने फूट पड़े और बेवजह का तमाशा बने. वो गलियारे में ही थी कि पीछे से आवाज़ आई, “अरे बर्थडे गर्ल, न कोई थैंक यू, न शाबाशी. ये भी कोई बात है?” ख़ुद पर इतराता ऋषभ बोलता हुआ चला आ रहा था. वाणी इस वक़्त किसी भी तरह का तमाशा नहीं बनाना चाहती थी. वो आगे बढ़ी कि ऋषभ सामने आ खड़ा हुआ और बोला, “सुन के अनसुना कर दिया. भलाई का तो ज़माना ही नहीं है.” अचानक वाणी की डबडबाई आंखें देख ऋषभ सकपका गया. उसे तो इस बात का अंदाज़ा ही नहीं था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है. वाणी नज़रें झुकाकर वॉशरूम में चली गई और कुछ देर बाद बाहर आई. उसके चेहरे से दर्द को शायद ही कोई जान पाता, लेकिन ऋषभ ने उसकी आंखें पढ़ ली थीं.

शाम को ऑफिस से बाहर निकली, तो वही हुआ जिसका डर था. ऋषभ अपना सवाल लिए सामने ही खड़ा था. नज़रें चुराते हुए वाणी सामने से आ रहे एक ऑटो को रोक घर की ओर निकल गई. आगे पहुंचते ही बजट का होश आया और वो ऑटो छोड़ बस के लिए खड़ी हो गई कि तभी बाइक के साथ ऋषभ सामने आ गया, “चाय या कॉफ़ी? चाहो तो नाश्ता भी कर सकते हैं.”

“मेरी बस आने वाली है.”

“आपकी बस से ज़्यादा तेज़ मेरी बाइक पहुंचा देगी. अगर चाय-नाश्ते के बाद भरोसा हो तो, वरना दूसरी बस एक घंटे बाद आएगी.” वाणी असहज हो रही थी उसे लगा कि सब उसे ही देख रहे हैं. वो बस इतना ही बोल पाई, “पर मैं पैदल चलूंगी.”

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ऋषभ मुस्कुराकर अपनी बाइक से उतरते हुए बोला, “चलिए.” दोनों साथ पैदल चलने लगे. एक छोटा होटल बस स्टॉप के पास था. ऋषभ ने कॉफी और वाणी ने चाय मंगवा ली. ऋषभ ने पूछा, “कुछ खाएंगी?” वाणी के ना कहने पर भी ऋषभ ने दो समोसे मंगवा लिए. “मुझे कुछ नहीं खाना है. वहां बस स्टॉप पर सब देख रहे थे. मैं बस चाय पीकर चली जाऊंगी.” कहते उसकी आवाज़ रुंधने लगी. वाणी को समझ नहीं आ रहा था कि वो ग़ुस्सा करने की जगह रो क्यों रही है.

“ठीक है ठीक है... मैं खा लूंगा दोनों समोसे. वैसे भी आज आपकी आंखें देखने के बाद से कुछ खा ही नहीं पाया हूं.” ऋषभ ने तक़रीबन फुसफुसाते हुए कहा. वाणी ने ग़ुस्से से देखा, लेकिन आंखें डबडबाने लगीं.

ऋषभ हैरान रह गया और लगभग हाथ जोड़ता हुआ फुसफुसाकर बोला, “मोहतरमा! आपके आंसू क़यामत ढा रहे हैं और अगर यहां गिर गए, तो मुझ पर वाक़ई क़यामत बरस जाएगी. मैं अभी यहां से चला जाता हूं.” ये कहते हुए ऋषभ उठने लगा, तो वाणी ने हड़बड़ाकर उसे बैठने का इशारा किया.

“ऐसे मत जाओ.” ऋषभ अपने चिर-परिचित अंदाज़ में बालों पर हाथ फिराकर मुस्कुराता हुआ बोला, “अच्छा, तो मेरा जादू चल ही गया.”

“कोई जादू वादू नहीं है. मेरे पास बिल चुकाने के पैसे नहीं हैं और मैं अपनी चाय के पैसे दे रही हूं.” नाराज़ होती वाणी ने पर्स से बीस रुपए निकालकर सामने रख दिया. ऋषभ ने आश्‍चर्य से देखा और नोट वापस करते हुए कहा, “पैसे नहीं, जवाब दो. जन्मदिन पर ये हाल क्यों है? केक पसंद नहीं आया क्या? एक दोस्त के नाते तो बता सकती हो.” वाणी ने ऋषभ को खा जाने वाली नज़रों से देखा. “अच्छा ठीक है, दोस्त न सही कलीग समझ लो. पर जब दोस्त को ही नहीं बता रही हो, तो कलीग को क्या ख़ाक बताओगी.”

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वो कप उठाकर एक सांस में चाय पी गई और बीस रुपए ऋषभ के सामने रखती हुई बाहर निकल गई. ऋषभ बिल चुकाकर लगभग दौड़ता हुआ सा बाहर आया, पर वाणी कहीं नहीं दिखी.

वाणी ने उस दिन के बाद से ऋषभ को पूरी तरह से इग्नोर करना शुरू कर दिया था. वाणी के इस बदले व्यवहार का ऑफिस में किसी पर असर नहीं हुआ सिवाय ऋषभ के. वो वाणी की इस चुप्पी के लिए ख़ुद को गुनहगार मानता. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आख़िर वो वाणी की मुस्कुराहट कैसे वापस लाए?

एक रोज़ ऑफिस में बॉस ने अर्जेंट मीटिंग रखी, जिसमें सभी को ऑफिस के समय से पहले पहुंचना था. ये ज़िम्मेदारी ऋषभ की थी कि वो सभी तक ये मैसेज पहुंचाए. वाणी को आधी मीटिंग होने के बाद पहुंचते देख सभी हैरान थे. पहली बार वो देर से आई थी और सबको मीटिंग में देख उसका दिल धक्क से हो गया.

बॉस कुछ कहते इससे पहले ही ऋषभ बोल पड़ा, “सॉरी सर, वाणी जी को भी बुलाना था? मैंने इन्हें मैसेज भेजा ही नहीं था.” बॉस के सामने ही ऋषभ ने वाणी को भी सॉरी कहा. वाणी मन ही मन ऋषभ पर ग़ुस्सा होने लगी. आख़िर उसने ऐसा क्यों किया? वैसे तो मैसेज भेज-भेजकर तंग करता रहता है. वो जवाब न देती, फिर भी भेजता रहता. अब तो बिना पढ़े ही डिलीट करना शुरू कर दिया था. यही सोचते-सोचते अचानक उसे याद आया कि कल रात ऋषभ का मैसेज आया तो था, लेकिन उसने बिना पढ़े डिलीट कर दिया था. उसे लगा कि वो उसे परेशान कर रहा है, पर वो मैसेज तो शायद मीटिंग का... ये बात याद आते ही वाणी के पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई. ऋषभ ये बात सर को बता भी सकता था, परंतु उसने सारा इल्ज़ाम अपने ऊपर ले लिया. और तो और उसने सबके सामने मुझे सॉरी भी कहा. वाणी ने ऋषभ की ओर सरसरी निगाह दौड़ाई. वो पूरी तरह से सर की बातें सुनने में व्यस्त था. अचानक उसने वाणी की ओर देखकर एक मुस्कान दी और वापस बॉस की बात सुनने लगा. अब वाणी अपने ग़ुस्से पर ख़ुद ही पछताने लगी. पहली बार उसे लगा कि ऋषभ जितना वो सोचती है, उतना ग़ैर ज़िम्मेदार है नहीं. मीटिंग के बाद वाणी के मन में एक बेचैनी सी बनी हुई थी. उसने ऋषभ की डेस्क पर जाकर कहा, “आपसे कुछ बात करनी है, ज़रा बाहर आइए.” ऋषभ चुपचाप उठकर वाणी के पीछे चल दिया.

“ये सब क्या है? आपने झूठ क्यों कहा? मैं नहीं चाहती कि मेरी ग़लती को कोई अपने सिर ले. लेकिन...”

“देखिए ये आपका तरीक़ा होगा. हम तो उस स्कूल से पढ़कर आए हैं जहां दोस्त की मदद के लिए दूसरा दोस्त किसी भी हद तक जाता है.” ऋषभ हंसता हुआ बोला.

“मैं आपकी दोस्त नहीं हूं.”

“ये तो आपका मानना है, पर मैं तो आपको अपना दोस्त मानता हूं और आप ख़ुद से मेरी दोस्ती भले ही न होने दें, लेकिन मैं तो आपसे दोस्ती कर चुका हूं और आपको जो सॉरी कहा वो लंबे समय से बचा हुआ सॉरी था. सबके सामने कहना था तो मौक़ा पाकर कह दिया. अब आपकी पूछताछ ख़त्म हो गई हो तो मैं कुछ काम कर लूं? मैं सीरियस दिखता नहीं, पर काम पूरा रहता है मेरा.” कहकर मुस्कुराता हुआ ऋषभ अंदर चला गया.

ऋषभ तो अंदर चला गया, लेकिन उसे जाता देख वाणी कुछ पल को वहीं खड़ी रह गई. दोस्त और दोस्ती शायद ये शब्द इतनी शिद्दत से उसने पहली बार सुने थे. उसके जीवन में इस रिश्ते का कभी कोई ख़ास महत्व न रहा. इंसान जब पेट भरने और ज़िंदा रहने की जद्दोज़ेहद में डूबा हो, तो उसके सामने हर रिश्ता दम तोड़ता है. उसे सालों बाद विनीता की याद हो आई. न जाने उसके और आंटी के कितने एहसान हैं. वो न होतीं तो शायद आज वाणी सड़कों की धूल छान रही होती. न जाने अब विनीता कैसी होगी. उसके रोज़ाना “शादी कर ले... शादी कर ले...” की रट से तंग आकर वाणी ने बात ही बंद कर दी थी. आज सालों बाद जब याद आई, तो लंच ब्रेक में ही वाणी ने विनीता को कॉल किया. जब रिंग होने लगी, तो एक बार को मन हुआ कि फोन काट दे, उसी पल दूसरी ओर से आश्‍चर्य मिश्रित स्वर गूंजा, “हेलो मैडम, आज हमारी याद आ ही गई. वही मैं सोचूं कि मेरा जन्मदिन हो और वाणी कॉल न करे हो ही नहीं सकता.”

“जन्मदिन! देख मैं तो भूल गई थी, बस आज तेरी याद आई तो कॉल कर लिया.” वाणी ने बिना लाग लपेट के सीधे ही कह दिया.

“बस, यही चेक कर रही थी कि इतने सालों में बदल तो नहीं गई? पर बिल्कुल वैसी की वैसी है तू. तुझे बता दूं कि मेरा जन्मदिन आज नहीं है, बल्कि अगले महीने आएगा.” कहकर विनीता ठहाका लगाने लगी.

वाणी ने सोचा कि विनीता भी बिल्कुल नहीं बदली. वही मस्ती-मज़ाक़ की आदत और अपनापन. तभी विनीता बोल उठी, “और बता... लाइफ में किसी की एंट्री हुई?”

वाणी कुछ कहने को ही थी कि उसे सामने से कैंटीन में आता ऋषभ नज़र आया. वो एक पल के लिए ख़ामोश हो गई. बस विनीता को बहाना मिल गया, “ओह माई गॉड! इस सवाल पर तूने मुझे फटकारा नहीं. कुछ तो गड़बड़ है. अब तो जल्द ही तुझसे मिलना होगा.” विनीता की बातों से अचानक वाणी होश में आई और बोल पड़ी, “ऐसा कुछ नहीं है. बस एक दोस्त कलीग है.”

“अच्छा जी, शुरू में तो सब दोस्त ही होते हैं. चलो बात यहां तक तो पहुंची.” विनीता ने छेड़ना शुरू कर दिया और वाणी को ख़ुद पर आश्‍चर्य हुआ कि ये बात आई कहां से? शायद ऋषभ? रात में भी वाणी के दिमाग़ में दो बातें चलती रहीं. जब ऋषभ ने उसे दोस्त कहा, तो वाणी ने साफ़ इनकार कर दिया, लेकिन ख़ुद विनीता के सामने ऋषभ को अपना दोस्त बता बैठी. कहीं उसे ऋषभ अच्छा तो नहीं लगने लगा? लेकिन अपने दर्दनाक अतीत को याद करते हुए वो फिर से रो पड़ी और अपने में सिमट सी गई.

अगले दिन ऑफिस में वाणी पूरे दिन सिर झुकाए काम करती रही. उसे पता था कि उसका चेहरा देख किसी को भी अंदाज़ा हो जाएगा कि वो सारी रात रोती रही है. उस रोज़ ऋषभ ऑफिस नहीं आया था ये जानकर उसे संतुष्टि हुई. बाकी ऑफिस के लोगों को तो उससे कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन ऋषभ ज़रूर जांच-पड़ताल करता. न जाने उसके जीवन में ऐसे दोस्त अपने आप कैसे टपक पड़े, जो उसकी मर्ज़ी के बिना सारे काम करते है. अब चाहे कुछ हो जाए उसे ऋषभ से भी दूरी बनानी ही होगी. उसकी ज़िंदगी में वो दोबारा नहीं होगा, वैसे अब खोने के लिए उसके पास है भी क्या?

दिनभर काम और दिमाग़ की उथल-पुथल से ऑफिस ख़त्म होने तक वाणी काफ़ी थक चुकी थी. बस स्टॉप पर खड़ी बस का इंतज़ार कर रही थी कि लगा पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई है. देखते ही देखते आंखों के सामने अंधेरा छा गया. जब आंख खुली, तो जिस जगह वो थी वो उसका घर तो नहीं था. तभी सामने सिस्टर को देखते ही वाणी घबरा गई और अचानक बिस्तर पर एक ओर सिमट गई.

जैसे ही सिस्टर पास आई वाणी ने लगभग चिल्लाना शुरू कर दिया, “वो मर जाएगी उसको बचा लो. उसका ख़ून निकल रहा है... बहुत निकल रहा है...” सिस्टर ने उसे शांत करने की कोशिश करते हुए कहा, “हां, उसका इलाज डॉक्टर कर रहे हैं. तुम दवाई ले लो.”

“नहीं, तुम उसको मार डालोगे. वो भाग गया. तुमने रोका नहीं.” सिस्टर और वाणी की आवाज़ सुनकर बाहर बैठा ऋषभ भी अंदर आ चुका था. ऋषभ जो ऑफिस के काम से ही बाहर गया था और जब लौट रहा था तो बस स्टॉप पर भीड़ देख पहुंच गया. वाणी को बेहोश देख वो उसे तुरंत अस्पताल ले आया था. सिस्टर ने ऋषभ को वाणी की ओर आने का इशारा किया. ऋषभ को पास देखते ही वाणी उसका हाथ पकड़कर चिल्लाने लगी, “ऋषभ, उसको रोका नहीं इसने... उसको रोका नहीं...” कहते-कहते वाणी अपनी सुध खो बैठी.

वाणी को इस तरह देख ऋषभ भी हैरान रह गया. सिस्टर ने वाणी को एक इंजेक्शन लगाया और ऋषभ को बाहर बैठने का इशारा किया. सिस्टर ने उसे समझाया कि कई बार बहुत ज़्यादा तनाव के कारण पेशेंट के साथ ऐसा होता है, लेकिन वाणी की हालत देख ऋषभ की आंखें नम हो गई थीं.

“हेलो मिस्टर...”

सिस्टर की आवाज़ से वेटिंग टेबल पर सोए ऋषभ की नींद खुली. उसे ये समझने में भी एक पल का समय लगा कि वो यहां क्यों है? तभी उसे वाणी की कल की हालत भी याद हो आई. ऋषभ सोच में डूबा था कि सिस्टर ने उसे एक बार और पुकारा, “हेलो मिस्टर, वो तुम्हारे पेशेंट को देखो ज़रा.”

“क्या हुआ वाणी को?” पूछता हुआ ऋषभ वाणी के वार्ड की ओर लपका. जाकर देखा तो हैरान रह गया. वाणी चुपचाप अपने बिस्तर पर सहमी सी बैठी थी. ऋषभ ने पास जाकर आवाज़ दी, “वाणी, अब कैसी हो?”

अपना नाम सुनकर वाणी हतप्रभ सी ऋषभ की ओर देखी और उसे वहां पाकर जैसे उसके सब्र का बांध टूट गया. वो ऋषभ को अपनी ओर खींचकर उससे लगकर रोने लगी. ऋषभ अब तक तो वाणी की रुलाई से परेशान हो जाता था, लेकिन उसे पता था कि ये रुलाई बहुत ज़रूरी है. इससे ही वाणी के मन का सारा दुख बह जाएगा. वो उसे हर दुख से दूर कर देना चाहता था. अस्पताल से दवाओं के साथ छुट्टी मिल चुकी थी.

वाणी चुपचाप ऑटो में ऋषभ के बगल में बैठी थी. ऑटो वाणी के घर के सामने रुकी. ऋषभ ने ऑटो का किराया देते हुए कनखियों से वाणी को देखा और माहौल हल्का करने के लिए मुस्कुराकर कहा, “चिंता मत कीजिए एक खाते में लिखता जा रहा हूं. सारे पैसे वसूल लूंगा.”

वाणी ने फीकी-सी मुस्कान के साथ कहा, “जो उधार चढ़ा है, वो चुका नहीं पाऊंगी.”

“अच्छा अब चलिए. आपको आराम की बहुत ज़रूरत है.” कहता हुआ ऋषभ वाणी को सहारा देकर उसके फ्लैट की ओर ले आया. उसके आराम और खाने-पीने की सारी व्यवस्था करके ऋषभ वहां से चलने को तैयार हुआ. उसका मन तो नहीं था कि वो वाणी को छोड़कर जाए, लेकिन वो उसके लिए कोई उलझन पैदा नहीं करना चाहता था. यही सोचकर उसने कहा, “आराम और खाने-पीने की सारी चीज़ें आपकी टेबल पर है. उठने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है और कुछ भी चाहिए तो बेझिझक फोन कर दीजिए. अब मैं चलता हूं.”

“आप...” वाणी जैसे कुछ कहती हुई रुक गई. ऋषभ इस चुप्पी में छुपे आग्रह को पहचान गया था.

“हां तो मैं हॉल में ही हूं. टीवी पर एक अच्छी फिल्म आ रही है. घर तक जाऊंगा, तो आधी छूट जाएगी. अगर आपको ऐतराज़ न हो तो मैं यहीं देख लूं? वॉल्यूम बिल्कुल कम रहेगा.” वाणी ने मुस्कुराकर हां में सिर हिलाया और सोचने लगी कि कोई ऐसे भी मदद करता है भला?

टीवी चलाकर ऋषभ तो कब का सो चुका था. यूं भी दो रातों की थकान से शरीर बोझिल था. इसी बीच जब फोन बजा, तो वो चौंककर उठा. वाणी ने ही कॉल किया था. फोन उठाने की बजाय सीधे नॉक करके उसके कमरे में पहुंचा. देखा तो वाणी के सामने एक संदूक खुला है और वो बिस्तर पर बैठी है.

“ये इतना बड़ा संदूक आपने उठाया? अभी आपको आराम की ज़रूरत है.” ऋषभ ने चेताया. वाणी ने थकी आवाज़ में कहा, “वाक़ई अब आराम की ज़रूरत है. आपकी फिल्म का मज़ा किरकिरा नहीं करना चाहती, पर कई दिनों से आपके मन में कई सवाल हैं, जिनका जवाब अगर मैं दे दूं तो मेरा सारा उधार चुकता हो जाएगा न?”

ऋषभ के मुंह से निकला, “हां, वो जवाब ज़रूरी है.”

“तुम्हें अपने सारे जवाब इसमें मिल जाएंगे.” कहते हुए वाणी ने एक पुरानी डायरी ऋषभ की ओर बढ़ा दी.

“अब कुछ देर आराम कर लूं.” कहकर वाणी ने संदूक खसकाना चाहा, तो ऋषभ ने ख़ुद ही आगे बढ़कर उसकी मदद की और फिर बाहर आ गया. उसकी आंखों से नींद कोसों दूर थी. उसके सारे सवालों का जवाब वाणी की मुस्कुराहट की चाबी उसके हाथ में थी.

सारी रात वाणी की डायरी पढ़ते हुए ऋषभ को ये अंदाज़ा हुआ कि वो किस हद तक ख़ुद को संभाले हुए है. जन्मदिन का पन्ना पढ़ते हुए ऋषभ के हाथ कांप गए और आंखों से आंसू झरने लगे, ख़ुद पर ग़ुस्सा आने लगा. किस तरह उसने वाणी की सबसे बुरी याद को ही कुरेदकर रख दिया था.

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वाणी के लिए ये एक शोक से भरा दिन था.  जहां वाणी ने अपने पूरे परिवार को एक साथ खो दिया और उसे अपने ज़िंदा बच जाने का मलाल था. ऋषभ चाहता था कि वाणी उस दिन को सेलिब्रेट करे. कम से कम एक बार जान तो लेता कि अब तक उसने ऑफिस में अपना जन्मदिन क्यों नहीं मनाया? लेकिन इसके बाद वाणी की ज़िंदगी में आया तूफ़ान इससे भी बड़ा था. जब उसे पता चला कि उसकी मां ने जिस व्यक्ति से प्यार किया, उसी ने उनकी जान भी ली. ये केस विनीता की मम्मी ने लंबे समय तक लड़ा भी, लेकिन एक रुतबेदार इंसान के सामने आम इंसान कब तक लड़ पाएगा? वाणी को उस इंसान से ही नहीं, बल्कि प्यार से ही नफ़रत हो गई थी. वाणी की ज़िंदगी की ये डायरी उसके अकेलेपन की साथी थी, जिसने उसके साथ बहुत सी कड़वी यादों को बांटा था. इसे पढ़ते-पढ़ते ऋषभ की आंखें भर आई थीं. वो एकाएक उठा और वाणी के कमरे की ओर बढ़ गया. अब वो वाणी को एक पल के लिए भी अकेला नहीं रहने दे सकता था.

ऋषभ वाणी के सामने बैठा था और वाणी उसे देख रही थी. रोज़ाना ढेरों बातें करने वाला ऋषभ आज ख़ामोश बैठा था. फिर हिम्मत जुटा बोल पड़ा, “मैं तुमसे एक ऐसी बात कहने वाला हूं, जो शायद तुम्हें नागवार गुज़रे या उसे सुनने के बाद तुम मुझे यहां से निकाल दो. पर मेरी बस एक ही गुज़ारिश है. मेरी पूरी बात सुन लेना, फिर तुम जो भी ़फैसला करो, मुझे मंज़ूर होगा.”

वाणी ने हामी में सिर हिलाया. ऋषभ ने आगे बढ़कर उसका हाथ थामा और कहने लगा, “तुम्हें मेरी वजह से जो भी दुख पहुंचा, उसके लिए माफ़ी मांगना बहुत छोटा है. तुमने आज तक जो भी सहा वो कोई नहीं कर सकता, पर मैं चाहता हूं कि अब से तुम कुछ न सहो...हर मुश्किल को छोड़कर तुम बस ख़ुश रहो. मुस्कुराती रहो और मेरे साथ रहो. अगर तुम चाहो तो मैं वादा करता हूं कि तुम्हारे चेहरे पर मुस्कुराहट सजाने की हर कोशिश मैं करूंगा. अब तुम जो चाहो कह सकती हो.” कहकर ऋषभ ने वाणी का हाथ छोड़ना चाहा, लेकिन वाणी ने वापस उसे थाम लिया और बोली, “मैं शायद ये सब न कर सकूं अगर तुम्हारा साथ न हो. मैं इन सारी चीज़ों से बाहर आना चाहती हूं... जीना चाहती हूं, पर मैं तुम्हारी तरह हर बात पर हंस नहीं सकूंगी. शायद कहीं कम पड़ जाऊं, पर मैं पूरी कोशिश करूंगी.”

“ये तुमने हां कहा है न?” ऋषभ के इस सवाल पर मुस्कुराती हुई वाणी के आंखों से आंसू छलक गए. उसने हां में सिर हिलाया.

ऋषभ ने उसे गले लगाते हुए कहा, “मां तुमसे मिलकर बहुत ख़ुश होंगी.”

“मां... तुम्हारी मां?”

“नहीं, हमारी मां.” वाणी ने ऋषभ के कंधे पर सिर टिका दिया. अब उसने अतीत की ज़ंजीरों से आज़ाद होने का फैसला कर लिया था. अब उसने अपनी मुस्कान हासिल कर ली थी.

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