
अक्सर फिल्म बनाने का उद्देश्य मनोरंजन, कमाई, संदेश, प्रेरणा इत्यादि रहती है. लेकिन जब सारी सीमाओं को लांघकर बस कई फिल्मों से ली गई कहानी, संवाद और दृश्य हो, तो कोफ्त सी होने लगती है. आख़िरकार फिल्ममेकर कब समझ पाएंगे कि इस तरह पैसे व समय की बर्बादी उचित नहीं है.
केवल फिल्म का नाम भर मालिक रख देने और राजकुमार राव जैसे बेहतरीन अभिनेता को लेने भर से ही कोई एंटरटेनमेंट का मालिक नहीं बन जाता! हां, तो हम बात कर रहे हैं राजकुमार राव और मानुषी छिल्लर स्टारर फिल्म 'मालिक' की. पहली बार दोनों की जोड़ी साथ आई है. मानुषी छोटी सी भूमिका में आकर्षक भी लगी हैं.

राजकुमार राव ऐसे सशक्त कलाकार है कि वे अपनी हर फिल्म में रोल छोटा हो या बड़ा जान फूंक देते हैं. उनके अभिनय से दर्शक, फैंस ही नहीं, को-स्टार भी बेहद प्रभावित होते रहे हैं. तभी तो एक बार अक्षय कुमार ने उन्हें एक्टिंग स्कूल खोलने की सलाह तक दे डाली थी.
किसी भी फिल्म रूपी जहाज का निर्देशक कैप्टन रहता है, जो उसे सही दिशा देता है. लेकिन यहां तो ‘मालिक’ के निर्देशक पुलकित ही असमंजस वाली स्थिति में दिखाई देते रहे हैं. प्रयागराज, जो कभी इलाहाबाद हुआ करता था, के एक किसान राजेंद्र गुप्ता के बेटे दीपक, राजकुमार राव के ग़रीब से अमीर मालिक बनने की कहानी है. उनकी भी ख़्वाहिश रहती है कि अपने गांव के बाहुबली सौरभ शुक्ला की तरह वो भी नाम-शौहरत कमाए, फिर चाहे उसके लिए ग़लत रास्ता ही क्यों न अख़्तियार करना है.
इस तरह के संघर्ष, मारधाड़, माफिया, राजनीतिज्ञ दबदबा से जुड़ी कहानियां आपने तमाम फिल्मों में देखी होंगी. बस, यही पर मात खा गए पुलकित. कोई नयापन नहीं दे पाए. जब कथा-पटकथा कमज़ोर हो, तो फिल्म को लड़खड़ाते देर नहीं लगती. हां, फिल्म निर्माता-निर्देशक भी इस गफ़लत में न रहें कि लोगों को गुमराह किया जा सकता है. अरे भई, ये जो पब्लिक है, वो सब जानती है.

कलाकारों के अभिनय की बात करें, तो राजकुमार राव का कोई सानी नहीं. पहली बार वे जमकर ख़ून-ख़राबा करते नज़र आए, पर अभिनय का लोहा मनवा ही लिया. मानुषी छिल्लर से लेकर प्रोसेनजीत चटर्जी, अंशुमान पुष्कर, तिग्मांशु धूलिया, सौरभ सचदेव, मेघा शंकर, स्वानंद किरकिरे, सौरभ शुक्ला ने अपनी-अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है, पर फिल्म को बचा नहीं पाए. हुमा कुरैशी ने आइटम सॉन्ग में अपना जलवा बिखेरा है.
निर्देशक ने ज्योत्सना नाथ के साथ मिलकर कहानी लिखी है और क्या ख़ूब ये तो वे ही बेहतर समझ सकते हैं. कुमार तौरानी व जय शेवक्रमणी ने इस फिल्म के निर्माण से जुड़कर क्या नया देने की कोशिश कर रहे थे, ये तो वे ही बता सकते हैं. अनुज राकेश धवन की सिनेमैटोग्राफी ठीक-ठाक है. जुबिन शेख फिल्म को थोड़ी और छोटी कर देते तो कुछ नहीं बिगड़ता.
गाली-गलौज व एक्शन के तांडव के कारण ए सर्टिफिकेट मिलना भी वाजिब ही था. टिप्स इंडस्ट्रीज व नॉर्दर्न लाइट्स फिल्म्स के 'मालिक' में सचिन-जिगर का संगीत और केतन सोढ़ा का स्कोर प्रभावित नहीं कर पाता. अमिताभ भट्टाचार्य के गीत 'राज करेगा मालिक...' ठीक है. रश्मीत कौर व राणा मजूमदार का गाया दिल थाम के... सुमधुर है. यदि आप राजकुमार राव के प्रशंसक हैं, तो ही ‘मालिक’ को झेल सकते हैं.
- ऊषा गुप्ता

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