Close

रक्षाबंधन पर विशेष: कहानी- राखी (Short Story- Rakhi)

"कभी-कभी ख़ुशी से आंखें छलक पड़ती हैं भाई. आओ, आराम से बैठो. पहले तुम्हें राखी बांध दूं. न जाने कितने वर्षों बाद तुम्हें अपने हाथों से राखी बाधूंगी."

"इसीलिए तो आया हूं जीजी, तुम बहनों की राखी ही तो है, जिसने मुझे इस ऊंचाई पर पहुंचाया है."

पत्रवाहक पत्र थमा गया था- भाई राखी पर उसके घर आ रहा है. चकित विव्हल संखी उस दो पंक्ति के पत्र को ऐसे सहलाने लगी, जैसे भाई का राखी बंधा हाथ हो. भाई लोकसभा का चुनाव लड़ रहा है. उसे तो चुनाव प्रचार में व्यस्त होना चाहिए था और वह राखी बंधवाने आ रहा है.

कहां से निकाला इतना अवकाश? क्या वह जानती नहीं कि चुनाव के समय आदमी को खाने तक की फ़ुर्सत नहीं मिलती है, उसके कस्बे में भी तो चुनाव प्रचार में कैसी तेज़ी आ गई है. रात-दिन झंडा लगी गाड़ियां दौड़ रही हैं. प्रचारक लाउड स्पीकरों में चीख रहे हैं और ऐसे समय भाई ने राखी बंधवाने आने का समय निकाल लिया?

पत्र दो दिन पहले ही मिला है, वरना अपनी सभी बहनों को यहीं बुला लेती, कब से तो नहीं बांधी भाई को राखी. अम्मा ने सैकड़ों पत्थर पूजे तब जाकर ये भाई हुआ था. अब तक वे पांचों बहनें बाबूजी को राखी बांधती आई थीं. बाबूजी सबको पांच-पांच रुपए देते. अम्मा ने अपनी कारीगरी दिखा मोतियों के पांच छोटे-छोटे बटुए बनाए थे. बाबूजी से छोटी-छोटी स्लिप लिखाई थी. उसके बटुए में लिखा था, 'संखी की रकम.' सभी बहनों के बटुए में उनके नाम की रकम डाल दी जाती. भाई हुआ तो बाबूजी उसकी तरफ़ से पांच रुपए देने लगे थे.

भाई के जन्म के दो माह बाद ही राखी पड़ी थी. बहनों का उत्साह देखते ही बनता था. बड़े मनोयोग से टीके की थाली सजाई थी. मनपसंद राखी और मिठाई ख़रीदी थी. अन-प्राशन न होने से भाई को मिठाई तो नहीं खिला पाई थीं, पर राखी बड़े उत्साह से बांधी थी. भाई के नन्हें हाथ पांच राखियों में डूब गए थे. राखियां उसे चुभने लगी थीं और वह रोने लगा था. वह हाथ-पैर चला चला कर राखी निकाल न ले, इस भय से संखी ने राखी तनिक कसकर बांध दी थी. अपने लल्ला का रुदन सुन अम्मा रसोई से दौड़ी आई थीं और राखियां उतारकर फेंकवा दी थीं.

"दो माह के बच्चे पर इतना बोझ लाद दिया तुम लोगों ने? राखियां गड़ रही हैं बेचारे को और ये... ये राखी इतनी कस कर किसने बांधी?"

"संखी ने अम्मा. " बड़ी बहन ने बताया, तड़ाक से एक चांटा संखी की कनपटी पर पड़ा था, "भाड़ में गया तेरा त्योहार, लल्ला के हाथ में निशान पड़ गया."

अम्मा ने संखी की राखी तोड़-मरोड़ कर एक तरफ़ फेंक दी थी, बहुत सोच-विचार कर चयन की गई अपनी सर्वोत्कृष्ट राखी की दुर्दशा पर उसे ज़ोर की रुलाई आ गई थी. बाबूजी ने वह राखी उठाई, "ले, मुझे बांध दे. कहा था न, भाई अभी छोटा है. उसके लिए इतनी बड़ी राखी न ले, पर तू माने तब न. रेशम के धागे की पाट वाली राखी ले लेती तो अच्छा होता." वह बाबूजी के हाथ में राखी बांध उनके मलमल के कुर्ते में मुंह छुपा बड़ी देर तक सिसकती रही थी.

भाई थोड़ा बड़ा हुआ तो थाली में सजे मोदक पहले मुंह में भर लेता, राखी बाद में बंधवाता. अम्मा उसके इस क्रिया कलाप पर वारी-न्यारी हो जाती. महंगाई बढ़ी, भाई शिशु से किशोर हुआ, पर उन बहनों का पांच रुपया नहीं बढ़ा. भाई अकड़ता, "पांच रुपए में राखी बांधनी हो तो बांधो वरना फूटो यहां से. मैं राखी बंधवाने के लिए मरता नहीं. पांच राखियां हाथ में लटका कर निकलो तो यार-दोस्त हंसते हैं कि पांच सहोदराओं के ब्याह करते-करते तेरा तो भट्ठा बैठ जाएगा." अम्मा अपने लल्ला की अदाओं पर मुक्त कंठ से हंसती, "देखा, अभी से इसे चिंता है तुम लोगों के ब्याह की. अभी तो लल्ला कमाता धमाता नहीं, पांच रुपए ले लो. जब कमाएगा, तब राखी पर बहुत देगा."

"ठेंगा दूंगा. ये लोग राखी स्नेह के लिए बांधती हैं या रुपए ऐंठने के लिए?" अम्मा के स्नेह की छत्र-छाया में पलता-बढ़ता लल्ला ऐसा ही अशिष्ट हो गया था.

भाई का व्यवहार बहनों से कभी अच्छा नहीं रहा, फिर भी राखी के पर्व में न जाने कौन सा आकर्षण था कि इस त्योहार में मन पुलक से भर जाता. दोनों विवाहित बड़ी बहनें एक माह पहले से लिख भेजतीं, "अम्मा, राखी पर बुलाना न भूलना." दोनों जीजियां आरती, मिठाई, नारियल, भाई के शीश पर रखने के लिए सुंदर-सा रुमाल और जाने क्या-क्या लातीं. मध्य रात्रि तक पांचों बहनें हाथों में मेहंदी के बूटे रचातीं. दोनों जीजियों को अम्मा अब साड़ी देने लगी थीं. कहतीं, "बेटियों, लो, बहुत क़ीमती तो नहीं हैं, पर ले लो, जब तुम्हारा भाई बड़ा आदमी बनेगा, तब राखी में बहुत बढ़िया साड़ी देगा."

यह भी पढ़ें: रक्षाबंधन स्पेशल- भाई-बहन के रिश्ते को मज़बूत करने के ज्योतिषीय और आध्यात्मिक उपाय (Rakshabandhan Special- Astrological and spiritual remedies to strengthen the brother-sister relationship)

संखी हंसती, "भाई जब देगा, तब देगा, अम्मा, अभी तो तुम हमें हमारी रकम लौटा दो. हम लोग अब बटुए अपने पास रखेंगे."

"हां अम्मां, कहां गई हमारी रकम और वो रंग-बिरंगे बटुए?" जीजियां हंसतीं.

अम्मा का चेहरा विवर्ण हो जाता. उनके लल्ला ने एक-एक कर सारे बटुए खाली कर दिए थे और अम्मा देखकर भी अनजान बनी रही थीं. संभवतः इस प्रतीक्षा में कि भाई बड़ा आदमी बनेगा और सूद समेत सबकी रकम लौटा देगा.

भाई सचमुच बड़ा आदमी बन गया था. पढ़ने-लिखने में उसका मन कभी नहीं लगा. बाबूजी कुछ कहते तो अम्मा ढाल बन कर खड़ी हो जाती. भाई बुरी संगत में पड़ता गया, कॉलेज में पहुंच कर उसकी छुटभैये नेताओं से मित्रता हो गई. संक्षिप्त में कहें तो वह स्वयं भी छुटभैया नेता बन चुका था, नेताओं के लिए भीड़ जुटाता, व्यवस्था देखता, जेल भरो आन्दोलनों में भाग ले जेल भी चला जाता. अपनी इन्हीं विशेषताओं के चलते विधानसभा का टिकट पा गया और भारी मतों से विजयी हुआ.

अब तो बाबूजी भी विधायक पुत्र के अवगुणों को चित नहीं धरते थे, भाई का भाग्य ऐसा प्रबल कि लोकसभा का चुनाव लड़ रहा है, जिसमें संखी का कस्बा है.

भाई को विधायकी मिलने के बाद आई राखी पर सभी बहनें बड़ी ललक से गई थीं राखी बांधने. बड़े आदमी के स्तर के अनुरूप ही राखी ले गई थीं. बड़ा आदमी अपने आवास पर नहीं मिला था. विधानसभा सत्र चल रहा था, अतः वह भोपाल में था. बहनों के साथ संखी भी हताश लौट गई थी, पता नहीं, भाई की कलाई पर राखी न बांध पाने से या बड़े आदमी की सम्भावित बड़ी भेंट से वंचित रह जाने से.

अगली राखी तक भाई का ब्याह हो चुका था, भाभी बहुत बड़े घर से आई थी. किसी केबिनेट मंत्री की पुत्री, सभी बहनें इस बार दो राखियां ले गईं. भाई के साथ भाभी को भी तो राखी बांधनी होगी. भाई के आयातित कैमरे से फोटो-वोटो उतरवाएंगी राखी बांधते हुए. पर भाभी राखी मनाने अपने पितृ गृह चली गई थीं. पीछे-पीछे सुबह की फ्लाइट से भाई भी. उसके मंत्री ससुर ने आवश्यक चर्चा के लिए बुला लिया था. राखी के सजे थाल मुंह चिढ़ाते रह गए थे.

अनायास बचपन की राखी बहुत याद आने लगी थी. भाई साल भर धमकाता था, "तुम लोगों से राखी नहीं बंधवाऊंगा, पैसा तो एक न दूंगा."

बहनें लड़तीं, "कैसे नहीं देगा? बाबूजी देंगे. अभी तेरी कमाई नहीं खाते हैं, जो धौंस जमा रहा है." पांच रुपए के लिए ऐसा युद्ध होता था, जैसे शाही ख़ज़ाना हो. अगली राखी पर भाई-भाभी दोनों मिले थे. भाई ने रात्रि भोज पर पत्रकारों को बुला रखा था. वह पत्रकारों से सदैव मधुर संबंध बनाकर चलता था. इस बार बाकी बहनें तो नहीं आई थीं, पर वह नज़दीक होने के कारण चली गई थी. भाई को दिनभर स्त्रियां और क्षेत्र के ब्राह्मण लोग राखी बांधने आते रहे. वह दो क्षण का अवकाश निकाल भीतर आया ही था कि ब्रह्म समाज की सेविकाएं राखी बांधने आ पहुंचीं. भाई पुनः कला कक्ष में चला गया था. ब्रह्माकुमारियां साथ में फोटोग्राफर लाई थीं. बड़ी देर तक फोटो उतरते रहे थे. फिर पत्रकार आने लगे थे.

बियर का दौर आरम्भ हो गया था. भीतर भाभी की भृकुटी तनी थी, "इनके पत्रकारों के मारे इस बार राखी पर मायके नहीं जा पाई. मेरा इकलौता भाई प्रतीक्षा कर रहा होगा. उसकी कलाई आज सूनी पड़ी होगी. उसकी मैं ही तो एक बहन हूं और यहां इनके भोज की व्यवस्था में लगी हूं. पहले बताया होता तो किसी से राखी ही भेज देती."

संखी बोल पड़ी थी, "सुखदा, तुम्हारा भाई दूर है, तुम इसलिए राखी नहीं बांध पा रही और मेरा भाई निकट होते हुए भी मेरी पहुंच के बाहर हो गया है. बड़ा आदमी बन गया है. इतना बड़ा कि मुझसे राखी तक बंधवाने का अवकाश नहीं है उसे."

सुखदा ने नयन तरेरे, "जीजी, तुमको बस अपनी पड़ी है. दिनभर तो सांस नहीं ले पाए बेचारे, अब क्षेत्रीय लोगों, समर्थकों, पत्रकारों को नाराज़ भी तो करते नहीं बनता न. तुम तो अपनी हो, फिर भी भाई की विवशता नहीं समझती. देखना, रात बारह से पहले फ़ुर्सत पा जाए तो." कहकर सुखदा ने आलमारी में रखी गड्डी से सौ रुपए का एक नोट निकाला, "मैं शगुन के पैसे दिए देती हूं, पता नहीं, वे कब फ़ुर्सत पाएंगे, इसीलिए डटी थी न अब

तक, तो लो और दफा हो जाओ." सुखदा के नेत्रों की भाषा पढ़ने में नहीं चूकी थी संखी. राखी वहीं छोड़ पति के साथ पीछे के द्वार से लौट गई थी. सदर द्वार से तो पत्रकारों की आवाजाही लगी थी. वहां से निकल अपने निम्न आर्थिक स्तर का ढिंढोरा पीट विधायक भाई की प्रतिष्ठा कम नहीं होने देना चाहती थी.राखी का बंधन तो भाई-बहन के संबंध को दृढ़ करता है और वह उस संबंध को विषाक्त बनाएगी? नहीं... कदापि नहीं... यत्न से रोका गया बांध घर पहुंचते ही फूट गया था. पशु चिकित्सालय में कम्पाउंडर के पद पर पदस्थ पति तीरथ ने घुड़का था, "बांध आई राखी? किसी ने रुकने तक को नहीं कहा. अरे, तुमसे तो तुम्हारी बहनें अक्लमंद हैं. मान-अपमान समझती हैं. तुम वही गंवार की गंवार, वह बड़ा आदमी बन गया है. उसे हम जैसे निर्धन से संबंध रखते शर्म आती है, कब समझोगी तुम?"

संखी का शीश ग्लानि से कमर तक झुक गया था, तब से वह भी अन्य बहनों की तरह भाई को राखी पोस्ट करने लगी थी. एक-दो बार एक सौ एक रुपए का मनीऑर्डर भी आया, फिर वो भी बंद हो गया.

फिर भी संखी राखी भेजना न भूलती. कल्पना करती, भाई ने उसकी राखी अपनी कलाई पर अवश्य बांध ली होगी, नन्हें हाथों में पांच राखियां बांध प्रलोभी जीभ में दो मोदक ठूसे, माथे पर फैल गए हास्यास्पद आकृति बनाते, अक्षत रोली वाला भाई का शिशु रूप याद आता, दुखी होती. बड़े आदमी पता नहीं कैसे भूल जाते हैं स्नेह के इन कच्चे सुतों को और अब वही बड़ा आदमी बहन से राखी बंधवाने दौड़ा आ रहा है. वह भी चुनाव जैसे व्यस्त माहौल में.

यह भी पढ़ें: राशि के अनुसार कौन सा रंग आपकी राखी के लिए होगा शुभ (Which color will be auspicious for your Rakhi according to your zodiac sign)

भाई की कलाई पर वर्षों बाद राखी बांधने के रोमांच में वह डूब उतरा रही थी, तभी तीरथ पशु चिकित्सालय से लौटा. वह बड़े उत्साह से बताने लगी, "भाई आ रहा है राखी बंधवाने, मैं न कहती थी, वह कितना भी बड़ा आदमी बन जाए, हम बहनों को नहीं भूल सकता, मंत्रियों के पास समय नहीं होता तो बेचारा क्या करे?"

"कुछ न करे, बस मेरे घर न आए. आज तक पूछा नहीं, अब क्या करने आ रहा है?" तीरथ की भृकुटी तन गई.

"भूल जाओ सब. अब तो आ ही रहा है. मंत्री है, उसके साथ भीड़-भाड़ होगी. सबके सामने कुछ कहने न लग जाना, वरना लोग कहेंगे, 'बड़े आदमी से कैसा व्यवहार किया जाता है, हमें मालूम नहीं है. और फिर अपने दीना ने इसी वर्ष बी.ए. किया है, भाई से कहूंगी, कहीं लगवा देगा."

"मुझे उससे कोई एहसान नहीं लेना." तीरथ का रोष जाता ही न था.

"ग़ुस्सा थूको भी. बहुत काम है. किराना, साग-भाजी, फल-फूल लाना होगा. उसकी पसंद का खाना बनाऊंगी, बेचारा रोज़ दौरे पर रहता है, पता नहीं, क्या खाता होगा? सुखदा को तो समाज सेवा, किटी पार्टी, क्लब से फ़ुर्सत नहीं है."

"ठीक है, ठीक है, अधिक पक्ष न करो उसका. चुपचाप बताओ, क्या-क्या लाना है?" कह कर कुप्पा बना तीरथ सौदा सुलफ ले आया था.

मंत्री जी तीरथ के घर आ रहे हैं. यह समाचार स्पेशल बुलेटिन सा ही पूरे मोहल्ले में प्रचारित-प्रसारित हो गया. तीरथ के घर ऐसे भीड़ जुटने लगी, जैसे तीर्थ हो.

लोगों की अपनी-अपनी समस्याएं थीं, जो वे मंत्री जी को बताना चाहते थे. अस्पताल के बड़े सर्जन उसके घर दौड़े आए, "भई तीरथ, तुम तो बड़े आदमी हो. मंत्री जी तुम्हारे साले बाबू है, हमें तो पता ही नहीं था. अटके काम करवाने की एक आड़ हो गई." वैटरनरी सर्जन के मुख से स्वयं को बड़ा आदमी सुन वह एकाएक स्वयं को विशिष्ट समझने लगा. फिर तो उसका रोष ऐसे धुल-पुंछ गया, जैसे पत्ते को झटक कर कोई उस पर गहरी पानी की बूंदों को गिरा दे. पड़ोसियों, परिचितों का सहयोग देखते ही बनता था. उन्होंने आनन-फानन तीरथ के घर का कायाकल्प कर डाला, अतिथि के अनुसार ही घर होना चाहिए.

बहुमूल्य क्रॉकरी, सोफे, लैंप, बेडशीट, पर्दे, बड़े सर्जन ने अपना कारपेट भेजा, साथ में अपना चपरासी भी. संखी विमुग्ध थी, जैसे उसके सपनों का महल ही आकार ग्रहण कर रहा हो.

राखी का दिन, घर में गहमा-गहमी, तीरथ, संखी, दीना और उसके दोनों छोटे भाई अपने-अपने स्तर पर व्यस्त, संखी ने बड़े मनोयोग से रसोई बनाई-भरवां भिण्डी, मुनगे की कढ़ी, दही बड़े, खीर, आलू की टिक्की, मटर पुलाव, मिक्स्ड दाल, पूरी. मिष्ठान बड़े सर्जन ने ला पटका था,

मंत्री जी नियत समय से एक घंटा विलंब से पहुंचे. विश्राम गृह में फ्रेश हुए. विशाल मैदान में विशाल जनसभा को संबोधित किया, विश्राम गृह लौटे. इधर संखी के घर में पूरा मोहल्ला घुसा चला आ रहा था. संखी बार-बार दरवाज़े पर झांक आतीं, लौटती, राखी के थाल का निरीक्षण परीक्षण करती, कुछ कमी तो नहीं? कई अन्य स्त्रियां भी उसके भाई को राखी बांधने के जुगाड़ में थीं.

लगभग तीन बजे भाई पधारा, कारों के काफ़िले को देख संखी की छाती तनी जा रही थी. भाई भीड़ का अभिवादन स्वीकार करता भीतर आया, भाई का प्रभुत्व, ठसक, दबदबा विलक्षण था. चरण छूते भाई की पीठ पर हाथ फेरते हुए संखी को ज़ोर की रुलाई आ गई.

भाई बोला, "ये क्या जीजी? ख़ुशी के अवसर पर कोई रोता है भला?" भाई के मुंह से मधु टपका पड़ता था. संखी बोली, "कभी-कभी ख़ुशी से आंखें छलक पड़ती हैं भाई. आओ, आराम से बैठो. पहले तुम्हें राखी बांध दूं. न जाने कितने वर्षों बाद तुम्हें अपने हाथों से राखी बाधूंगी."

"इसीलिए तो आया हूं जीजी, तुम बहनों की राखी ही तो है, जिसने मुझे इस ऊंचाई पर पहुंचाया है."

"राखी में इतनी शक्ति है, फिर तो तुम्हें आज ढेर सारी राखी बंधवानी होगी. ये सब महिलाएं राखी बांधने के लिए सुबह से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं."

"सबसे बंधवाऊंगा, ये सब मेरी बहनें हैं. इन सबका आशीर्वाद चाहिए मुझे."

लोग मुक्त कंठ से मंत्री जी की विनम्रता की सराहना करने लगे, उनका पी. ए. बोला, "सर तो सीधे यहीं आते, पर लोग छोड़ते ही न थे. सर कह रहे थे कितना अच्छा होता, जो राखी का पर्व पांच दिन तक मनाया जाता, मैं एक-एक दिन पांचों बहनों के घर हो आता." लोग मंत्री जी की भावना को देख वाह-वाह कह उठे.

यह भी पढ़ें: रक्षाबंधन के लिए 25+ स्मार्ट गिफ्ट आइडियाज़ ( 25+ Unique Gift Ideas For Rakshabandhan)

संखी ने भाई को राखी बांध आरती उतारी, मिठाई खिलाने लगीं, पर भाई ने रोक दिया, "जीजी, डायबिटीज़ की शुरुआत हो चुकी है."

"हाय नारायण, इसी उम्र में?"

"कहते हैं न, सकल पदारथ है जग माहीं, करमहीन जन पावत नाहीं. मैं भी ऐसा करमहीन..."

"नहीं... नहीं... भाई. ऐसा न कहो. नारायण तुम्हें ख़ूब सुखी रखे."

संखी के साथ ही उपस्थित स्त्रियां भी भावुक हो उठीं. कई स्त्रियों ने मंत्री जी को राखी बांधी. पांच बजे यह क्रम थमा. तीरथ व्यग्र था दीना की नौकरी के लिए, पर अब तक कहने का अवसर नहीं मिला था.

इधर संखी दिनभर के भूखे भाई को खाना खिलाने के लिए अधीर थी. पता नहीं, साथ में कितने लोग खाएंगे. दस-पंद्रह लोगों की व्यवस्था तो उसने कर रखी है. बोली, "भाई, मैं खाना लगा रही हूं, चलो खाओ, सब तुम्हारी पसंद का बनाया है."

"ओह... हाँ..."

"सर, लंच तो आप डिस्ट्रिक्ट एथॉरिटीज के साथ विश्राम गृह में ले चुके हैं और डिनर का प्रबंध विधायक जी ने कर रखा है."

पी. ए. ने डायरी देख कर बताया.

"ओह... आपने बताया नहीं अब तक?" भाई ने मिथ्याचार का सहारा लिया.

"वक़्त ही कहां मिला सर, सुबह से सब कुछ लेट ही होता रहा, विश्राम गृह में पांच बजे पत्रकारों के साथ मीटिंग..."

"पांच बजे, और आप अभी बता रहे हैं मुझे? समय का कोई मूल्य है कि नहीं?"

पी. ए. को डपट भाई ने बड़ी विवशता से संखी की ओर देखा, "जीजी, इच्छा तो है, तुम्हारे हाथ का बना खाना छक कर खाऊं, पर हम नेताओं का एक भी क्षण अपना नहीं. जब से देश का भार पड़ा है, अपनों से दूर होता जा रहा हूं. पर मुझे विश्वास है, तुम मेरी विवशता समझोगी. तुम बहनें ही तो हो, जो मेरा दुख-दर्द बांटती रही हो. विधायक के यहां नहीं पहुंचूंगा तो दस प्रकार की बातें बनेंगी. क्या करें जीजी, कई बार अपनी और अपने प्रियजनों की इच्छा की बलि देनी पड़ जाती है... मुझे क्षमा करना जीजी, तुम्हारे घर का प्रसाद ग्रहण करना मेरे भाग्य में नहीं है... और फिर मेरे साथ कई लोग हैं... तुम परेशान हो जाओगी, तुम्हें देखना था, देख लिया. चुनाव से फ़ुर्सत मिल जाए, फिर आराम से आऊंगा तुम्हारे घर."

फिर मंत्री जी तीरथ से संबोधित हुए, "जीजाजी, आपने तो मुझे भुला ही दिया. अरे मैं बुरा हूं, पर इतना नहीं कि आप दो-चार दिन के आतिथ्य का सौभाग्य भी मुझे न दें. मैं गाड़ी भेज दूंगा... आपको समय निकाल कर आना ही होगा मेरी कुटिया में." तत्पश्चात् मंत्री जी उपस्थित लोगों से संबोधित हुए, "आप सब लोगों से मिलकर बड़ा अच्छा लगा, घरेलू वातावरण के दो-चार दुर्लभ क्षण मिले. बहनों के स्नेह-बंधन ने तो बांध ही लिया मुझे. आप लोगों को कोई भी काम हो तो मुझसे निःसंकोच आकर मिलें. राजधानी में या मेरे गृह जिले में... यदि मैं पुनः चुनकर सत्ता में पहुंचा तो इस राखी का ऋण चुकाने के लिए सदैव तत्पर रहूंगा."

"मुझ पर देश के हाथ मज़बूत करने का भार डाला गया है. आप सब का सहयोग, प्यार, आशीर्वाद मिला तो मैं अपने दायित्व निर्वहन में अवश्य सफल होऊंगा." उपस्थित जन समुदाय मंत्र-मुग्ध-सा मंत्री जी की अमृत वाणी सुन रहा था. इस व्यस्तता में भी बहन से राखी बंधवाना नहीं भूले मंत्री जी, इसका चमत्कारी प्रभाव लोगों पर स्पष्ट दिख रहा था.

मंत्री जी ने भाव विव्हल होकर उपस्थित लोगों का नमन किया और संखी और तीरथ के पैर छुए. चलते समय ध्यान आया, राखी बंधाई बहन को कुछ नहीं दिया. तत्क्षण पी. ए. से चेक बुक मांगी, बड़ी राशि भर संखी के नाम का अकाउंट पेयी चेक काट दिया, बोले, "जीजी, अपने इस गरीब भाई का ध्यान रखना."

संखी चेक को उलटती-पलटती ठगी सी खड़ी रह गई. भव्य बंगले में रहते, वातानुकूलित कार में घूमते, लाखों का वारा-न्यारा करते भाई को इतना भी ध्यान नहीं की संखी के नाम का कोई अकाउंट नहीं है. फिर वह इस चेक को कहां जाकर कैश कराएगी? संखी के हाथ में अकाउंट पेयी चेक था और दृष्टि उस बृहद भोज पर जा टिकी थी, जो उसने राखी के उपलक्ष्य में बड़े श्रम से भाई के लिए बनाया था.

दूसरे दिन स्थानीय समाचार पत्र में मुख्य पृष्ठ पर स्त्रियों से राखी बंधवाते भाई की तस्वीर छपी. उस तस्वीर में संखी कहीं नहीं दिख रही थी. तस्वीर के नीचे लिखा था, 'कच्चे सूत के बंधन ने मंत्री जी को जीत लिया.'

सुषमा मुनीन्द्र

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

Share this article

https://www.perkemi.org/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Situs Slot Resmi https://htp.ac.id/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor https://pertanian.hsu.go.id/vendor/ https://onlineradio.jatengprov.go.id/media/ slot 777 Gacor https://www.opdagverden.dk/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/info/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/vendor/ https://www.unhasa.ac.id/demoslt/ https://mariposa.tw/ https://archvizone.com/