"तुम सब अपनी-अपनी जगह सही हो, तुम्हारे वर्णन में अंतर इसलिए है, क्योंकि तुम सबने हाथी के अलग-अलग भागों को छुआ एवं महसूस किया..."
एक समय की बात है, एक गांव में छह अंधे व्यक्ति रहते थे. वह बड़ी ख़ुशी के साथ आपस मे रहते थे. एक बार उनके गांव में एक हाथी आया. जब उनको इस बात की जानकारी मिली, तो वो भी उस हाथी को देखने गए.
लेकिन अंधे होने के कारण उन्होंने सोचा हम भले ही उस हाथी को न देख पाए, लेकिन छूकर ज़रूर महसूस करेंगे कि हाथी कैसा होता है.
वहां पहुंच कर उन सभी ने हाथी को छूना शुरू किया. हाथी को छूकर एक अंधा व्यक्ति बोला, "हाथी एक खंभे की तरह होता है, मैं अब अच्छे से समझ गया हूं."
क्योंकि उसने हाथी के पैरों को महसूस किया था.
तभी दूसरा व्यक्ति हाथी की पूंछ पकड़ कर बोला, “अरे नहीं, हाथी तो रस्सी की तरह होता है.”
तभी तीसरा व्यक्ति भी बोल पड़ा, “अरे नही, मैं बताता हूं, यह तो पेड़ के तने की तरह होता है.“
"तुम लोग क्या बात कर रहे हो, हाथी तो एक बड़े सूप की तरह होता है.” चौथे व्यक्ति ने कान को छूते हुए सभी को समझाया.
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तभी अचानक पांचवें व्यक्ति ने हाथी के पेट पर हाथ रखते हुए सभी को बताया, “अरे नहीं-नहीं, यह तो एक दीवार की तरह होता है.
“ऐसा नहीं है, हाथी तो एक कठोर नली की तरह होता है.”
छठे व्यक्ति ने अपनी बात रखी.
सभी के अलग-अलग मत होने के कारण उन सभी में बहस होने लगी. और ख़ुद को सही साबित करने में लग गए. उनकी बहस तेज होती गई और ऐसा लगने लगा मानो वो आपस में लड़ ही पड़ेंगे.
तभी वहां से एक बुद्धिमान व्यक्ति गुज़र रहा था. उनकी बहस को देखकर, वह वहां रुका और उनसे पूछा, “क्या बात है, तुम सब आपस में झगड़ा क्यों कर रहे हो?”
उन्होंने बहस का कारण बताते हुए, उस बुद्धिमान व्यक्ति को बताया कि हम यह नहीं तय कर पा रहे हैं, कि आख़िर हाथी दिखता कैसा है.
फिर एक-एक करके उन्होंने अपनी बात उस व्यक्ति को समझाई. बुद्धिमान व्यक्ति ने सभी की बात शांति से सुनी और बोला, “तुम सब अपनी-अपनी जगह सही हो, तुम्हारे वर्णन में अंतर इसलिए है, क्योंकि तुम सबने हाथी के अलग-अलग भागों को छुआ एवं महसूस किया.
यदि देखा जाए, तो तुम लोग अपनी-अपनी जगह ठीक हो, क्योंकि जो कुछ भी तुम सबने बताया, वो सभी बातें हाथी के वर्णन के लिए सही बैठती हैं. लेकिन इसके साथ आप दूसरे की बात और भावनाओं को समझने की कोशिश करते तो बहस होती ही नहीं."
अधिकतर ऐसा ही होता है कि हम सच्चाई जाने बिना अपनी बात को लेकर अड़ जाते हैं कि हम ही सही हैं और बाकी सब ग़लत हैं.
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लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हम केवल सिक्के का एक ही पहलू देख रहे होते है. हमें ज़रूरत है, सिक्के के दोनों पहलुओं को देखकर समझने की. इसलिए हमें अपनी बात तो रखनी चाहिए, पर दूसरों की बात भी सब्र से सुननी चाहिए. और कभी भी बेकार की बहस में नहीं पड़ना चाहिए.
वेद-पुराणों में भी कहा गया है कि एक सत्य को कई तरीक़े से बताया जा सकता है, इसलिए यदि जब अगली बार आप ऐसी किसी बहस में पड़ें तो याद कर लीजिएगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके हाथ में सिर्फ़ कान हो और बाकी हिस्से किसी और के पास हैं.
- रेखा कुंदर
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