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एआई डिप्रेशन सिंड्रोमः यंग जनरेशन तेज़ी से हो रहे शिकार (AI Depression Syndrome: Younger Generations Are Rapidly Falling Victims)

देश की 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम उम्र की यानी युवाओं की है. यही जनरेशन एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) टूल्स का अधिक इस्तेमाल भी कर रही है. स्टूडेंट्स अपने कई प्रोजेक्ट्स व असाइनमेंट्स के लिए एआई पर डिपेंड होते जा रहे हैं, जिससे उनकी क्रिएटिविटी, सीखने-समझने की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित हो रही है.

डॉ. माधवी सेठ (काउंसलिंग सायकोलॉजिस्ट एंड करियर काउंसलर) कहती हैं कि हमें इस सच को स्वीकार कर लेना चाहिए कि समय की रफ़्तार के साथ चीज़ें बदलती रहती हैं. एक वक़्त था जब मुनीमजी हिसाब-किताब देखते थे, फिर कैलकुलेटर ने काम आसान किया, एक्सेल आया, टैली आदि के साथ सब ईज़ी होता गया और हम भी टेक्नोलॉजी के साथ आगे बढ़ते गए. यही बात एआई पर भी लागू होती है. दरअसल, कइयों ख़ासकर युवाओं के मन में यह डर पनपने लगा है कि एआई उनकी जगह ले रहा है. इससे उनकी नौकरी, करियर ख़तरे में है. लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि ज़िंदगी में कामयाब होना है, तो नए तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना ही होगा. इसे लेकर डर, तनाव, डिप्रेशन क्यों? यह हमेशा से ही होता आया है. समय के साथ हम अपने काम और जीवनशैली में बदलाव लाते रहे हैं. क्या हमने बदलते वक़्त के साथ नए-नए टेक्नोलॉजी को नहीं अपनाया? फिर अब तनाव क्यों? बल्कि आपको चाहिए कि एआई को सहजता से अपनाएं और कुछ नया करने और सीखने के लिए हमेशा ही तत्पर रहें. यह न भूलें कि इस डिजिटल दुनिया में हम हर रोज़ ही कुछ न कुछ नया सीखते हैं, इसलिए अपने अंदर के स्टूडेंट को हमेशा अलर्ट रखें. जितनी जल्दी आप इस लेकर सकारात्मक सोच अपनाएंगे, उतना ही टेंशन फ्री हो जाएंगे. 

यह कैसा टेक्नो स्ट्रेस...

युवाओं में तुरंत रिजल्ट पाने की चाह के चलते एआई की डिमांड बढ़ती जा रही है. यानी लोगों को यह शॉर्टकट तरीक़ा अधिक रास आने लगा है. उन्हें धीरे-धीरे इसकी आदत होती चली जाती है और वे एआई डिप्रेशन सिंड्रोम के शिकार होते चले जाते हैं. इसे टेक्नो स्ट्रेस व एआई इंडयूस्ड एंग्जायटी भी कहते हैं. यह हमारे चिंता-तनाव को इस कदर बढ़ा देती है कि इसके डिप्रेशन में हम उलझ कर रह जाते हैं. 

टेक्नोलॉजी की बूम...

वक़्त बदला हालात, बदले और बदली हमारी जीवनशैली... जहां इसके अच्छे परिणाम देखने  मिले, वहीं नुक़सान भी कुछ कम नहीं. समय के साथ टेक्नोलॉजी में हम बेहद तऱक्क़ी कर रहे हैं और आगे बढ़ते हुए करते ही जा रहे हैं. माना एआई ने हमें कई लाजवाब सौग़ातें दी हैं, लेकिन यह भी उतना ही कड़वा सच है कि इसने हमारी सेहत के साथ भी ख़ूब खिलवाड़ किया है, जिसकी गंभीरता को फ़िलहाल हम समझ नहीं पा रहे. ख़ासकर एआई डिप्रेशन का शिकार यंग जनरेशन तेज़ी से हो रहे हैं.

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युवाओं में बढ़ता एआई का क्रेज़...

एआई डिप्रेशन जैसा कि नाम से ही आप समझ चुके होंगे कि यह एआई से जुड़ा तनाव है. इसमें व्यक्ति तमाम एआई टूल्स में इस कदर खो जाता है कि वो अपने हर ज़रूरी कामों में इसे आवश्यक समझने लगता है. इसका क्रेज़ युवाओं में इस कदर बढ़ता जा रहा है कि उन्हें इसके बिना अपनी

ज़िंदगी अधूरी सी लगने लग गई है. अब तो आलम यह है कि स्कूल-कॉलेज से लेकर सरकारी-प्राइवेट संस्थानों तक में इसका साम्राज्य बढ़ता जा रहा है.

एआई वर्ल्ड दूसरा ना कोई...

यंग जनरेशन को अपना करियर और फ्यूचर एआई में दिखने लगा है. दरअसल, ऐसा माहौल बना दिया गया है कि हर कोई इसे उपयोग करने की होड़ में लगा हुआ है. एआई के विभिन्न टूल्स से टीनएज व युवा दिन-रात खेलते रहते हैं. इससे वे मशीनी ज़िंदगी की गैजेट्स की दुनिया में इस कदर इंवॉल्व हो जाते हैं कि बाहरी दुनिया से कट से जाते हैं. उनमें व्यावहारिकता की कमी आने लगती है. अपनों ही नहीं, दोस्तों से भी दूरियां सी बन जाती हैं. बस, वो और उनका एआई वर्ल्ड दूसरा ना कोई.

सोशल मीडिया, डिजिटल के उफान में आज की पीढ़ी इस कदर डूबती जा रही है कि उनकी सोशल लाइफ बुरी तरह से प्रभावित हो रही है. न कहीं आना-जाना, न किसी से मिलना-जुलना, पारिवारिक समारोह से लेकर दोस्तों की पार्टीज़ तक से वे कन्नी काटने लगे हैं.

एआई डिप्रेशन से बचें...

चूंकि सब कुछ डिजिटल होता जा रहा है, तो सबसे अधिक प्रभावित हमारी सेहत हो रही है. मानसिक रूप से हम इसमें उलझते से जा रहे हैं. टेक्नो के इस जाल से बाहर निकलने का फ़िलहाल तो कोई उपाय नज़र नहीं आ रहा, लेकिन हम अपनी सूझबूझ से इसे बैंलेस ज़रूर कर सकते हैं.

दरअसल, एआई के एडिक्ट मानसिक रूप से इस कदर थक जाते हैं कि इसका असर दिलोदिमाग़ के साथ-साथ शरीर पर भी होने लगता है. सिरदर्द, उदासी, बेचैनी, घबराहट जैसी समस्या से लेकर भूख-प्यास की कमी और अकेलेपन तक से घिरने लगते हैं.

एआई डिप्रेशन सिंड्रोम से ग्रस्त शख़्स को चूंकि अत्यधिक एआई टूल्स इस्तेमाल करने की लत लग जाती है, जिससे उसकी पूरी लाइफस्टाइल डिजिटल हो जाती है. स्थिति तब अधिक गंभीर हो जाती है, जब बिना फोन, टैब, कंप्यूटर आदि के उन्हें जीवन निरर्थक सा लगने लगता है. उनके दिन की शुरुआत वर्चुअल प्लेटफॉर्म्स से जो शुरू होती है, वो सोने तक बनी रहती है. इससे मशीनी कनेक्शन के तार तो अटूट बन जाते हैं, पर हक़ीक़त की धरातल पर असल जीवन से नाता बिखरने व टूटने लगता है. और फिर धीरे-धीरे वे एआई डिप्रेशन सिंड्रोम के शिकार हो जाते हैं. उनमें आत्मविश्‍वास की कमी आने लगती है. वे हर काम के लिए एआई पर निर्भर रहने लगते हैं. इससे डिज़ाइनर, कंटेंट, आईटी के क्षेत्रों में एआई रिप्लेसमेंट फोबिया यानी नौकरी खोने का डर भी अधिक बढ़ता जा रहा है. साथ ही रिश्ते-नातों से कम और चैटबॉट्स पर अधिक समय बिताते रहने से रिश्तों में नीरसता आती जा रही है. वे एआई की दुनिया में इस खो जाते हैं कि सोशल इंटरैक्शन न के बराबर हो जाता है. उनमें अपने इमोशंस को एक्सप्रेस करने की क्षमता में कमी आने लगती है. वे अकेलेपन से घिरने लगते हैं. इनके अलावा यदि इसके अन्य लक्षणों की बात करें, तो नींद में कमी, नकारात्मकता, थकान, चिड़चिड़ापन व एग्रेसिवनेस भी बढ़ता जाता है.  

बदलें लाइफस्टाइल...

सबसे पहले जितने भी गैजेट्स हैं, उनसे कुछ समय के लिए दूरी बना लें. यहांं पर हम यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि अपने ज़रूरी काम या फिर ऑफिस वर्क के अलावा जो भी आप सोशल प्लेटफॉर्म्स पर डटे रहते हैं, जैसे- फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूटयूब, एक्स पर, ऐसा न करें. 

डिजिटल डिटॉक्स करें यानी अपने दिलोदिमाग़ में कुछ समय के लिए सोशल मीडिया को बैन कर दें. 

नेचर से कनेक्शन

सोशल मीडिया छोड़कर कुछ देर नेचर से जुड़ें. इससे आप सेहतमंद भी बने रहेंगे. सुबह सैर करने, बगीचे में नंगे पैर चलने, योग प्राणायाम-मेडीटेशन करने, आउटडोर एक्टिविटीज़ व एक्सरसाइज़ करने से डिप्रेशन से उबरने में मदद मिलती है. 

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अपनों व दोस्तों का साथ...

पढ़ाई, काम, नौकरी, बिज़नेस, एआई इत्यादि पर निर्भर रहते-रहते हम सोशल इंटरैक्शन से डिसकनेक्ट हो जाते हैं. इसे रिवाइव करने की ज़रूरत है. इसके लिए फैमिली गेट-टुगेदर में शामिल हों. शादी-ब्याह, पार्टी, फंक्शन, अन्य समारोह में अधिक से अधिक शामिल होने की कोशिश करें. भले ही कुछ वक़्त के लिए ही सही आपकी उपस्थिति जाने कितने चेहरों पर मुस्कुराहट ला देगी, वहीं आपको रिलैक्स और ख़ुशियों का एहसास कराएगी.

दोस्ती केवल फ्रेंडशिप-बर्थडे मनाने के लिए नहीं होती, बल्कि वक़्त-वक़्त पर एक-दूसरे से मिलने-जुलने, बीते हुए यादगार ख़ुशनुमा लम्हों को जीने के लिए भी होती है. इससे न केवल मेंटल सिस्टम स्ट्रॉन्ग होता है, बल्कि इमोशनल इम्यूनिटी भी बूस्ट होती है और इससे एआई डिप्रेशन भी दूर होता है.

आज एआई की जिस अंधी दौड़ में हम भागे जा रहे हैं, वहां थोड़ी देर रुककर यह ज़रूर सोचना चाहिए कि हम किस क़ीमत पर और क्या चाहते हैं. मॉडर्न लाइफस्टाइल व टेकनोलॉजी से अपडेट रहना अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए अपने तन-मन, सेहत से समझौता करना समझदारी कतई नहीं है. ध्यान रहे, टेक्नोलॉजी सफल होने और काम को आसान बनाने के लिए हो, न कि मेंटल व फिजिकल लेवल पर डिस्टर्ब कर डिप्रेशन में जाने के लिए. अपनी जीवनशैली व डिजिटल लाइफ को बैलेंस करके एआई डिप्रेशन से बचा जा सकता है.

रिसर्च

सिनाई के रिसर्च से पता चला है कि एआई से मेंटल हेल्थ का भी ट्रीटमेंट किया जा सकता है. एक शोध में मानव चिकित्सकों की नकल करने के लिए प्रोग्राम किए गए अवतारों के साथ ट्रीटमेंट सैशन में शराब की लत से जूझ रहे मरीज़ों से पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिले थे.

- ऊषा गुप्ता

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