नारी के शरीर के साथ खेलने के बाद पुरुष अपने कुकर्म को छुपा सकता है पर नारी इसे कैसे छुपाए? उसके कृत्य को तो उसका शरीर ही दुनिया के सामने उजागर कर देता है.
एक सप्ताह पूर्व दो पंक्तियों का पत्र आया, 'अलका की मृत्यु हो गई है. उसकी तेरहवीं १० नवंबर को होनी है.' इस दुखद ख़बर से दिल दहल गया. वैसे जब से मैं और मेरी पत्नी अपमानित होकर भाभी के घर से आए थे, तभी से मैं शंकित था कि अलका के साथ यह अनहोनी कभी भी घट सकती थी. बदलते हुए युग के साथ लड़कियों को स्वतंत्रता दी जानी चाहिए, पर एक सीमा के अंदर, क्योंकि असीमित स्वतंत्रता अक्सर लड़कियों के जीवन के लिए अभिषाप बन जाती है. पर अफ़सोस कि मेरी भाभी को यह बात समझ में नहीं आई. वे अत्याधुनिक मां तो बन गईं, पर समझदार मां न बन सकीं.
हमारा समाज विवाह के पूर्व यौन संबंधों को अब भी उचित नहीं ठहराता. समाज के इस दायरे से बाहर आना लड़कियों के लिए अभिषाप बन जाता है और यही अलका के साथ भी हुआ, जिसने उसे आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया.
नारी के शरीर के साथ खेलने के बाद पुरुष अपने कुकर्म को छुपा सकता है पर नारी इसे कैसे छुपाए? उसके कृत्य को तो उसका शरीर ही दुनिया के सामने उजागर कर देता है.
एक प्रतिभाशाली लड़की के जीवन के ऐसे दुखद अंत से मेरा हृदय कांप उठा. पिछले वर्ष ही तो उसने बी.ए. की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था. तब सक्सेना साहब ने लिखा था, "अब अलका का इरादा अर्थशास्त्र में एम.ए. करने का है. फिर पी.एच.डी. करेगी, दस बेटों पर जो नाज माता-पिता को होता है, उससे ज़्यादा नाज हमें हमारी बेटी पर है."
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अक्सर मैंने अनुभव किया है कि अपनों के साथ हमारे रिश्ते उतने आत्मीय नहीं रह पाते, जैसे परायों के साथ हो जाते हैं. सक्सेना परिवार से हमारा खून का रिश्ता तो नहीं था, पर ग्वालियर में दस वर्ष तक उनके पड़ोस में रह कर आपस में भाइयों से ज़्यादा आत्मीयता हो गई थी. भाभी ने दो बार गर्भपात होने के बाद अलका को जन्म दिया था, इसलिए उन्होंने अपने हृदय में संचित सारा प्यार-दुलार अलका पर लुटाया.
जब हम ग्वालियर में सक्सेना साहब के पड़ोस में रहने आए, तो अलका हमें बहुत अपनी सी लगी. अलका बहुत चंचल थी. हम जहां जाते वो हमारे साथ हो लेती. हमारी कोई संतान नहीं थी, अतः मेरे दफ़्तर जाने के बाद पत्नी अकेली हो जाती थी. लेकिन अलका उसका यह अकेलापन दूर करने में बहुत मददगार साबित हुई.
भाभी ने सक्सेना साहब से उस समय प्रेम विवाह किया था. वे पति के प्रति अपने दायित्वों को पूर्ण तो करती थीं, पर इस विचारधारा की विरोधी थीं कि पति को परमेश्वर मानना चाहिए. वे अक्सर कहतीं, "शादी एक पार्टनरशिप है, जब तक पार्टनर से निभ रही है तब तक ठीक है, न निभे तो वैवाहिक संबंधों को ढोते रहने की कोई ज़रूरत नहीं है."
ऐसे विचारों के बावजूद, उनकी पति के साथ ढंग से निभ रही थी, क्योंकि वे कभी उत्तेजित नहीं होते थे और विपरीत परिस्थितियों में भी पत्नी के साथ सामंजस्य स्थापित कर लेते थे.

जैसे-जैसे अलका बड़ी होने लगी, सक्सेना साहब चिंतित रहने लगे. वे अक्सर पत्नी से कहते, "यह तो अच्छी बात है कि तुम अलका की शिक्षा पर इतना ध्यान दे रही हो. तुम्हारे द्वारा बेटी को स्वतंत्रता देना भी ग़लत नहीं है. लेकिन बच्चों की स्वतंत्रता की एक सीमा होनी चाहिए, अन्यथा वे ग़लत दिशा की ओर भी जा सकते हैं. ख़ासतौर पर लड़की यदि ग़लत कदम उठा ले तो उसे इसकी सज़ा आजीवन भुगतनी पड़ती है."
लेकिन भाभी ने कभी उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया. वे हमेशा उन्हें रूढ़िवादी विचारों का कहकर उनकी बातों को मज़ाक में उड़ा देतीं. भाभी को जो समय अलका को देना चाहिए था, वह पार्टियों में बीतता. लगभग रोज़ भाभी के घर महिलाओं का जमघट लगा रहता और वे उसी में उलझी रहतीं. अलका को खाना खिलाने की ज़िम्मेदारी रसोइए को और पढ़ाने की ज़िम्मेदारी उन्होंने ट्यूटर को सौंप रखी थी. जब हमारा तबादला जबलपुर हुआ तो अलका बहुत रोई थी.
ख़ैर वक़्त बीतता गया, सक्सेना साहब जब लगभग पंद्रह वर्ष बाद दौरे पर जबलपुर आए तो हमारे घर पर ही ठहरे. हमसे मिलकर वे ख़ुश तो थे पर साथ ही उनके चेहरे पर चिंता की रेखाएं भी दिखीं. कारण पूछा तो बोले, "मैं बहुत परेशान हूं. अलका पढ़ाई-लिखाई में तो कुशल है, पर उसकी मां ने उसे हद से ज़्यादा आज़ादी दे रखी है. मां की तरह अब वह भी अक्सर पार्टियों में जाने लगी है. ड्रेस भी ऐसे पहनती है कि पूरा अंग प्रदर्शित होता है. उसके कई पुरुष मित्र भी हैं. मुझे तो डर है कि उसकी मां ने अपनी आंख पर आधुनिकता की जो पट्टी बांध रखी है, उसके कारण बेटी के साथ किसी दिन कोई अनर्थ न हो जाए."
हम उनसे क्या कहते? एक पिता के रूप में बेटी के भविष्य के प्रति उनकी चिंता स्वाभाविक थी, पत्नी ने मुझसे कहा, "अलका को आपने गोद में खिलाया है. हम तीन-चार दिन के लिए ग्वालियर चलते हैं. मुझे विश्वास है कि आप अलका को अवश्य समझा सकेंगे."
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हम जून में ग्वालियर गए. सभी लोग बड़े प्यार से मिले. अलका भी हमारे आने से बहुत ख़ुश थी. तीन दिन कब बीत गए पता ही नहीं चला. रविवार को हमें वापिस लौटना था. शनिवार की शाम को मैंने अलका से कहा, "तुम्हें याद है, तुम बचपन में मेरे साथ अक्सर न्यू कॉफ़ी हाउस में डोसा खाने जाती थीं. क्यों न फिर हम दोनों चलें." वह राजी हो गई.
मैंने उससे पूछा, "तुम सप्ताह में छह दिन तक तो कॉलेज में पीरियड अटेन्ड करने में व्यस्त रहती हो. रविवार को क्या करती हो?"
"रविवार को मैं और मेरे दोस्त मिलकर किसी होटल में पार्टी रखते हैं. मज़े करते हैं." अलका बोली.
"देखो अलका, न पार्टियों में शामिल होना बुरा है और न लड़कों से दोस्ती करना ग़लत है, पर तुम्हारे पापा कह रहे थे कि तुम पार्टियों में ड्रिंक भी करती हो." मैंने कहा
"अंकल मॉडर्न सोसायटी में तो यह आम बात है." अलका बोली.
"बेटी, तुमने अभी युवावस्था में प्रवेश किया है. लड़की का मन बहुत भावुक होता है. यदि कोई भी लड़का ऐसे वातावरण में उसे बहकाए तो वह स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाती और फिर ऐसी स्थिति में लड़कियों का जीवन बर्बाद हो जाता है. तुम समझने की कोशिश करो." मैंने उसे समझाने की कोशिश की.
"मुझे कुछ नहीं समझना, मैं आपको अपना हमदर्द समझती थी, पर आप भी पापा की तरह उपदेश देने पर उतर आए हैं. में वयस्क हूं और अपना हित अहित अच्छी तरह समझती हूं." वह तमतमा कर बोली.

"अलका तुम वयस्क अवश्य हो गई हो पर समझ नहीं पा रही हो कि तुम्हारा हित-अहित किस में है. तुम्हें पता है, तुम्हारे कारण तुम्हारे पापा कितने व्यथित हैं." मैंने कहा.
"वे अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जी चुके हैं और मुझे अपने ढंग से जीने का पूरा हक़ है." वह बोली.
"बिटिया, मैंने तुम्हें जो स्नेह दिया, उसका वास्ता देता हूं, तुम कभी शराब मत पीना." मैंने उससे अनुरोध किया.
"स्नेह देने के लिए मैं आपकी आभारी हूं, पर आप मुझ पर इतना दबाव क्यों और किस हक़ से डाल रहे हैं?" वह झुंझला कर बोली और बाहर चली गई.
मैने अलका को बेटी मानकर स्नेह के धागे जोड़े थे, पर अलका ने मुझे उन संबंधों की निरर्थकता का एहसास करा दिया था.
जब पत्नी को सारा हाल बताया तो वह बहुत आहत हुई. वह स्वयं अलका को समझाना चाहती थी, पर वह अपनी सहेली के यहां चली गई और हमारे रवाना होने तक वापस नहीं आई.
भाभी बोली, "अलका बहुत भावुक है. आपको उससे ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए थी. यदि बच्चे युवा होने के बाद बदलते हुए युग के साथ ख़ुद को एडजस्ट करें, बोल्ड बनें तो इसमें बुराई ही क्या है? आप अपने बच्चों को दक़ियानूसी बनाकर रखना चाहें तो यह आपकी इच्छा है, पर
हमारी बेटी के जीवन में हस्तक्षेप न करें तो बेहतर होगा. अलका के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा, इसकी समझ हमें है."
मैं अब कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था. भाभी ने मुझे एहसास करा दिया था कि अब मैं उनके लिए पराया हो गया हूं. मैं अपमानित होने के बाद भी अलका को समझाना चाहता था कि समाज के रीति-रिवाजों के दायरे से बाहर आकर अमर्यादित आचरण करना ग़लत है, पर मैं क्या करता, वह तो हमारे सामने ही नहीं आना चाहती थी.
अनामंत्रित अतिथियों की तरह हमने वह रात सक्सेना साहब के यहां बिताई. सुबह भी भाभी के व्यवहार में ठंडापन था. हमेशा फिर आने का अनुरोध करने वाली भाभी ने इस बार ऐसा कुछ नहीं कहा. यह संबंधों की समाप्ति का संकेत था. सुबह हम जबलपुर चले गए और उस दिन जब अचानक अलका की मौत की ख़बर मिली तो हम स्तब्ध रह गए. अलका ने जीते जी हमें अपने स्नेह के साम्राज्य से निष्कासित कर दिया था, पर हम उसकी यादों को कैसे भूल सकते थे. यात्रा के दौरान अलका के बचपन से किशोरावस्था तक की एक-एक बात हमें याद आती रही और हम आंसू बहाते रहे.
ग्वालियर पहुंच कर जब सक्सेना साहब के घर गए तो हृदय विदारक दृश्य देखना पड़ा. भाभी बेटी की मृत्यु का दुख सहन नहीं कर पाई थीं, उन्हें एक दिन पहले दिल का दौरा पड़ा और वे चल बसी. सक्सेना साहब पथराई हुई दृष्टि से सबको देख रहे थे. जिस गृहस्थी की नींव उन्होंने रखी थी, वह उजड़ चुकी थी.
उनके छोटे भाई से पता चला कि अलका के घर उसके सहपाठी कमल का आना-जाना था. वह एक उद्योगपति का पुत्र था. लड़कियों पर पैसा ख़र्च करके उन्हें अपनी ओर आकर्षित करना उसके लिए कठिन न था. जिस दिन से उसने अलका को देखा था, वह उसे पाना चाहता था. जब किसी युवक के लिए युवती का दैहिक आकर्षण ही प्रमुख हो, तब भावनात्मक लगाव का प्रश्न ही नहीं उठता. कमल भी अलका को केवल वासना का शिकार बनाना चाहता था, पर अफ़सोस अलका इसे समझ नहीं पाई. अलका कमल की ओर आकर्षित थी. उसने जीवनसाथी के रूप में कमल को चुन लिया था.
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'भाभी को भी कमल पसंद था. कमल ने उनसे कहा, "आंटी जी, हम कुछ दिनों तक एक साथ घूमकर एक-दूसरे को समझ लें, फिर शादी कर लेंगे." भाभी ने दोनों को घूमने की अनुमति दे दी. कमल ने अलका के सामने डेटिंग पर पंचमढ़ी चलने का प्रस्ताव रखा. दोनों ने दो दिन पंचमढ़ी में बिताए. इस दौरान कमल ने अलका के साथ यौन संबंध स्थापित कर लिया.
घर लौटने पर अलका ने घरवालों से यह बात छुपाई, पर उसे गर्भ ठहर गया. भाभी को विश्वास था कि कमल, अलका का हाथ थामने के लिए तैयार हो जाएगा, पर उनका विश्वास चकनाचूर हो गया.
कमल ने मां से कहा, "मैं अलका के साथ पंचमढ़ी ज़रूर गया था, पर मैंने उसके साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाए." मां-पिता ने बेटे की इस बात पर विश्वास कर लिया और भाभी को अपमानित करके घर से निकाल दिया.
भाभी बुरी तरह से टूट गईं. जीवन के इस कड़वे अनुभव से अलका का मन भी बुरी तरह आहत हो गया था. भाभी ने उसे सांत्वना देने की कोशिश की, पर वे ख़ुद अंदर तक हिल गई थीं. सक्सेना साहब ने रिश्तेदारों के कटाक्षों को सहन किया, पर बेटी से कुछ नहीं कहा.
जब भाभी ने बेटी को गर्भपात करवाने की राय दी तो वह फूट-फूट कर रो दी. पापा से उसे बहुत प्यार था, पर इस एहसास ने कि मेरे कारण पापा समाज में अपनी प्रतिष्ठा खो चुके हैं, उसके मस्तिष्क को असंतुलित कर दिया था. आख़िर एक रात उसने सल्फर की गोलियां खाकर आत्महत्या कर ली.
भाभी इकलौती संतान की मृत्यु को सहन नहीं कर पाईं और दिल का दौरा पड़ने से चल बसीं, भाभी की अति आधुनिकता की प्रवृत्ति ने परिवार की ख़ुशियां छीन लीं. इस हादसे के बाद सक्सेना साहब सब कुछ बेचकर हरिद्वार में बस गए और ईश्वर के सहारे अपने दिन बिता रहे हैं. अलका की मृत्यु को विधि का विधान भी नहीं माना जा सकता था. यह तो इंसान की अपनी करनी का फल था.
- ललित कुमार शर्मा

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