"घर-परिवार में रमों पर उतना ही जितनी ज़रूरत है. नई तकनीक को और नई बातों को सीखने के लिए हमेशा समय निकालती रहो, वरना यह आज का समाज तुम्हें दो मिनट में आउटडेटेड घोषित कर देगा. इसलिए सीखना कभी मत छोड़ना."
पति सुमित के ऑफिस और बच्चों के स्कूल जाने के बाद रसोई समेट कर छाया फ़ुर्सत हुई ही थी कि फोन बज पड़ा. स्क्रीन पर सुमित का नाम देखकर जल्दी से गीले हाथों को पोंछकर छाया ने कॉल रिसीव किया.
''हेलो! छाया, यार मैं लैपटॉप घर पर ही छोड़ आया. तुम एक काम करो फ़टाफ़ट मेरा लैपटॉप ऑन करके, एक जरूरी पी.डी.एफ. मुझे मेल कर दो.''
सुमित की बात सुनकर छाया एकदम सोच में पड़ गई. तभी सुमित बोला, ''क्या हुआ? अरे यार, मुझे पता है अब तुम यही कहोगी कि तुमसे यह नहीं होगा. चलो जाने दो मैं ही घर वापस आकर लैपटॉप लेकर जाता हूं. हद है छाया. ज़रा सा काम भी नहीं बनता तुमसे!'' कहते हुए सुमित ने फोन रख दिया पर उसके बाद छाया के चेहरे पर सुमित का काम न कर पाने की उदासी छा गई.
अंजू जी जो उसकी सासू मां थीं, वे वहीं पास बैठी सब देख-सुन रही थीं. दरअसल कल शाम भी कुछ ऐसा ही हुआ था. जब बच्चे अपना स्कूल प्रोजेक्ट तैयार कर रहे थे तब हमेशा कि तरह छाया ने भी उनकी प्रोजेक्ट तैयार करने में मदद करनी चाही, तभी बच्चे उससे बोले, ''मॉम! प्लीज़ आप रहने दो, हम खुद कर लेंगें. आपको आज के ज़माने के हिसाब से काम करना नहीं आता.'' बच्चों के कहे यह शब्द छाया के मन को कितने चुभे थे यह बात वही जान सकती थी.
पूरे घर की हर छोटी-बड़ी चीज़ का ख़्याल रखने वाली छाया बच्चों और पति की कही इन छोटी-छोटी बातों से उदास हो जाती. अंजू जी छाया के चेहरे की उदासी हमेशा पढ़ लेतीं. इसलिए आज जब वह उदास होकर बैठी तो वह बोलीं, ''बहू, यूं उदास होने से काम नहीं चलेगा. उठाओ लैपटॉप और सुमित से पूछों कि क्या और कैसे करना है. पढ़ी-लिखी हो तुम कोई अनपढ़ थोड़ा न हो, जो नई तकनीकों को सीखने से घबराओ.
घर के कामों में उलझी तुम्हारी जैसी पढ़ी-लिखी कितनी ही महिलाएं पता नहीं कैसे ख़ुद को कम आंक लेती हैं. अरे, जब तुम जैसी महिलाएं सारा घर सुचारू रूप से चला सकती हैं तो यह नई तकनीक सीखना कौन सा हौवा है?''
यह कहते हुए अंजू जी ने लैपटॉप खोलकर उसके सामने रख दिया. यहां सुमित को फोन लगाकर अंजू जी बोलीं, ''घर मत आ, पहले बहू को बता कि कैसे लैपटॉप पर तेरा काम करना है?''
यहां छाया भी लैपटॉप के कीबोर्ड पर उंगलियां चलाती हुई पति के बताए निर्देश अनुसार काम करती गई और वहां सुमित को पी.डी.एफ. मिल गई. उसके बाद पति की शाबाशी से छाया की उदासी ख़ुशी में बदल गई.
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दोपहर होते ही बच्चे घर लौटे तो वह छाया का बनाया प्रोजेक्ट देखकर चौंक कर अंजू जी से बोले, ''दादी, यह इतना अच्छा प्रोजेक्ट किसने बनाया?''
बच्चों के प्रश्न पर मुंह मटकाती हुई वे बोलीं, ''तुम्हारी मां ने. तुम लोग क्या समझते हो उसे? तुम्हारी मां रात-दिन इस घर के कामों में लगी रहती हैं, वरना यह प्रोजेक्ट ही क्या, वह तो न जाने क्या-क्या बना ले.''
बच्चे दादी की बात सुनकर, दौड़कर छाया के गले लगकर अपनी कही बात पर पछताने लगे. यहां छाया की ख़ुशी का भी ठिकाना न रहा. छाया के चेहरे की ख़ुशी देखती हुईं अंजू जी बच्चों को वहां से जाते ही उससे बोलीं, ''हम महिलाएं, बच्चों, पति-पत्नी, परिवार में ऐसी रम जाती हैं कि अपने अस्तित्व का हमें ख़्याल ही नहीं रहता.
घर-परिवार में रमों पर उतना ही जितनी ज़रूरत है. नई तकनीक को और नई बातों को सीखने के लिए हमेशा समय निकालती रहो, वरना यह आज का समाज तुम्हें दो मिनट में आउटडेटेड घोषित कर देगा. इसलिए सीखना कभी मत छोड़ना. अब मुझे ही देख लो, अंग्रेज़ी न आने के कारण ये बच्चे मुझसे ज़्यादा बात ही नहीं करते."
छाया सासू मां की बात पर मुस्कुराई और एक किताब उठाकर बोली, ''इसे पढ़िए, इसमें अंग्रेज़ी बोलने का सबसे आसान तरीक़ा सिखाया है. रोज़ पढ़ा करिए. आप भी धीरे-धीरे सीख जाएंगी."
अंजू जी, ''अब इस उम्र में सीखना कहां होगा?''
छाया, ''क्यों? अभी आप ही तो कह रही थीं कि हमें सीखना कभी नहीं छोड़ना चाहिए, वरना हम आउटडेटेड हो जाएंगे.''
छाया की इस बात पर सास-बहू दोनों ज़ोर से हंस पड़ीं.

पूर्ति खरे

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