कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भारत ने वैक्सीन लगाने की मुहिम शुरू तो कर दी है, पर अब भी कई पहलुओं पर ध्यान देना है. तकनीक बातों के अलावा वैक्सीन को लेकर अफ़वाह और भ्रम से संभलना होगा. इसलिए बड़े पैमाने पर टीका देने हेतु तकनीक के उपयोग करने में भारत की ताकत और अनुभव का लाभ उठाते हुए सरकार ने अपने टीकाकरण अभियान पर हर समय निगरानी रखने के लिए कोविड वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (को-विन) बनाया और इसे लॉन्च किया.
हर किसी को टीका देने के लिए यह डिजिटल प्लेटफॉर्म एक आधार बनाता है. को-विन ऐप को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि अनूठे डिजिटल प्लेटफॉर्म को डिज़ाइन करते समय विशिष्टता, गति और प्रसार को ध्यान में रखा गया है, जिसके साथ ही यह बहुत ज़्यादा और अनावश्यक निर्भरता के बिना पोर्टेबल, सिक्रोनस होगा. जैसा कि टीकाकरण शुरू हो गई है और यह पाया गया कि डिजिटल सिस्टम में कुछ गड़बड़ियां हैं और इस पर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है.
मज़बूत वैक्सीन वितरण इकोसिस्टम बनाने हेतु सभी हितधारकों के बीच एकजुट सहयोग के लिए सरकार द्वारा डिज़ाइन और विकसित किए गए, को-विन ऐप में हाल ही में कुछ गड़बड़ी हुई. भारत में 1.3 अरब लोगों को वैक्सीन देना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम है. इसकी सफलता काफ़ी हद तक लोगों की सक्रिय भागीदारी और कई हितधारकों के जुड़ने पर निर्भर होगी. दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू करने से पहले सरकार को एहसास था कि इसे सफल बनाने के लिए तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका होगी.
शुरुआत में यह पाया गया कि सरकार ने पहले कुछ दिनों में टीकाकरण के लिए पंजीकरण करनेवाले लोगों को शामिल नहीं किया था, बल्कि उन्हें प्रकट भी नहीं किया था. अनुपस्थित लोगों के प्रबंधन के लिए प्रावधान की कमी से संबंधित तकनीकी गड़बड़ियां सामने आईं. अनुपस्थित लोगों की जगह लेने हेतु किसी अन्य व्यक्ति को जोड़ने के लिए एक डिजिटल पंजीकरण सिस्टम बनाने की ज़रूरत थी. अनुपस्थित लोगों को कवर करने के लिए सूची को रियल टाइम में अपडेट और प्रमाणित करने की ज़रूरत है. अब आधार के माध्यम से रियल टाइम प्रमाणीकरण भी इस सुविधा के लिए पेश किया जा रहा है.
इसके बारे में एपीएसी रीजन- डे टूडे हेल्थ के प्रेसिडेंट राजीव मिश्रा का कहना है कि वैक्सीन के निर्माण की लोकेशन से लेकर नागरिकों के टीकाकरण तक वैक्सीन की खुराक की ट्रैकिंग और ट्रेसेबिलिटी दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान को सफल बनाने के लिए ज़रूरी है. इस प्रोग्राम की लाइव ट्रैकिंग होने चाहिए और हर कदम पर इस पर निगरानी रखी जानी चाहिए. पहले दिन से लेकर 21वें दिन के अगले राउंड तक ट्रैकिंग, डेटा प्रबन्धन, एनालिटिक्स के लिए बहुत ज़रूरी है. यह किसी भी तरह की खामियों से बचने के लिए भी महत्वपूर्ण है. इसके अलावा सुरक्षा और गुणवत्ता का सुनिश्चित करने तथा कालाबाज़ारी और भ्रष्टाचारी को रोकने के लिए भी ट्रैकिंग और ट्रेसिंग ज़रूरी है. हालांकि सरकार सही दिशा में प्रयास कर रही है. प्रभावी और अनुकूल परिस्थितियों के लिए मज़बूत आर्टीफिशियल इंटेलीजेन्स और मशीन लर्निंग सिस्टम को मज़बूत बनाना आवश्यकत है. पैमाना बढ़ाने के लिए सरकार को अपनी प्रभाविता के लिए थर्ड पार्टी सेवा प्रदाताओं पर ध्यान देना चाहिए और ऐसे उत्पाद के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए, जो अपना प्रयोजन पूरा करने के साथ-साथ उपभोक्ताओं को उत्कृष्ट अनुभव प्रदान करे.‘’
को-विन प्लेटफॉर्म निश्चित तौर पर इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (eVIN) का विस्तार है. यह नेटवर्क वैक्सीन स्टॉक को डिजिटाइज़ करता है और स्मार्टफोन एप्लिकेशन के माध्यम से कोल्ड चेन के तापमान पर नज़र रखता है. साल 2012 में इसकी शुरुआत की गई थी, तब कोल्ड चेन पॉइंट्स पर कुशल वैक्सीन लॉजिस्टिक्स प्रबंधन का समर्थन करने के लिए बारह राज्यों में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया गया था. इनोवेटिव नेटवर्क भारत के यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम का समर्थन करता है और देशभर में सभी कोल्ड चेन पॉइंट्स पर वैक्सीन स्टोरेज, स्टॉक और फ्लो और स्टोरेज के तापमान पर रियल टाइम डेटा प्रदान करता है.
विशेषज्ञों के अनुसार, टीकाकरण करवानेवाले व्यक्ति की स्पष्ट रूप से पहचान करना और यह सुनिश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण है कि किसे, किसने, कब और कौन-सा टीका लगाया. पहले चरण में, निर्धारित किए गए प्राथमिकतावाले समूह- स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों (70 लाख) और फ्रंटलाइन वर्कर्स (2.1 करोड़) को टीका लगाया जाएगा. 21 अगस्त तक केवल पहले चरण में ही 30 करोड़ लोगों को टीका लगाया जाएगा, जिसमें 50 वर्ष से ज़्यादा उम्रवाले लोग (26 करोड़) और किसी अन्य बीमारीवाले अन्य लोग (1.2 करोड़) शामिल होंगे. कुल मिलाकर दो साल में सभी वयस्क आबादी (60%) को कवर करना इसका लक्ष्य है.
दो साल की लंबी टीकाकरण मुहिम की सफलता के लिए भारत को न केवल ट्रैकिंग उद्देश्यों के लिए, बल्कि लाभार्थियों को प्राथमिकता देने, लक्षित इलाकों की पहचान करने, अनुपस्थित लोगों का प्रबंधन करने, और लक्षित सेगमेंट में पूरे टीका वितरण सिस्टम को बेहतर बनाने हेतु एक योजना बनाने और पूर्वानुमान लगाने के एनालिटिक्स के लिए भी एक मज़बूत एनालिटिक्स इंजन में निवेश करना होगा.
स्वास्थ्य पेशेवरों और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं सहित आम जनता वैक्सीन लगवाने के लिए भयभीत हैं. इस डर का मुख्य कारण यह है कि भारतीय नियामक ने कैंडिडेट्स आपातकालीन उपयोग के लिए दो वैक्सीन उम्मीदवारों कोविशिल्ड (Covidshield) और कोवैक्सीन (Covexin) को मंज़ूरी दे दी है. इसका तीसरा चरण परीक्षण डेटा अभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया है, इसलिए लोग इसकी प्रभावकारिता पर असंबद्ध हैं. टीके को विकसित होने में लम्बा समय लग जाता है और इसमें एक दशक भी लगता है. मानव पैपिलोमावायरस (सर्वाइकल कैंसर के लिए) और रोटावायरस के लिए 25 साल (गैस्ट्रोएंटेरिटिस के ख़िलाफ) के लिए एक टीका विकसित करने में 26 साल लग गए. पिछले 40 वर्षों में पैंतीस मिलियन लोगों की एड्स से मृत्यु हो गई है. 1987 से 30 वैक्सीन उम्मीदवारों का मानव नैदानिक परीक्षणों में परीक्षण किया गया है, लेकिन किसी भी उम्मीदवार ने तीसरे चरण के परीक्षण को आज तक मंज़ूरी नहीं दी है. भारी निवेश के बावजूद मलेरिया और SARS और MERS जैसे अन्य कोरोनविरस के लिए कोई टीका नहीं है.
सरकार टीकाकरण (AEFI) के बाद प्रतिकूल घटना के ख़िलाफ जांच पर स्पष्ट रुख के साथ नहीं आई है, इसलिए टीकाकरण के प्रभावों पर आम जनता को संदेह और डर है. हालांकि वे मामूली प्रभावों या दुष्प्रभावों के बारे में जानते हैं, जो किसी भी टीकाकरण के साथ आते हैं. जहां पहले काफ़ी लोग टीका लगाने से हिचक रहे थे, अब बड़ी तादाद में लोग आगे आकर लगवा रहे हैं.
- ऊषा गुप्ता