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आमिर खान- रिश्तों को लेकर भले ही मैं असफल रहा हूं, परंतु तलाक़ के मामले में कामयाब रहा‌ हूं…  (Aamir Khan – Rishton ko lekar bhale hi main asafal raha hun, parntu talaq ke mamle mein kamyab raha hun…)

'सितारे ज़मीन पर' फिल्म में मैं एक बास्केट बॉल कोच हूं. मुझे सज़ा के तौर पर एक टूर्नामेंट के लिए इंटैलेक्चुअली डिस्एब्लैड लोगों की टीम को ट्रेंड करने के लिए मजबूर किया जाता है, जो चुनौतीभरा है. फिल्म में काम करते हुए 'तारे ज़मीन पर' फिल्म की बरबस याद आ जाती थी.

आर. एस. प्रसन्ना द्वारा निर्देशित 'सितारे ज़मीन पर' में भारतभर से चुने गए स्पेशल एबल्ड खिलाड़ियों को कास्ट किया गया और उन्हें एक्टिंग की ट्रेनिंग भी दी गई. ये सभी न्यूकमर स्पेशल हैं, जिनमें अरूश दत्ता, गोपी कृष्ण वर्मा, संवित देसाई, वेदांत शर्मा, ऋषि साहनी, ऋषि जैन, नमन मिश्रा, सिमरन मंगेशकर, आयुष भंसाली व आशीष पेंडसे हैं.

यह एक स्पोर्ट्स कॉमेडी ड्रामा फिल्म है. इसमें मेरे साथ जेनेलिया डिसूज़ा भी ख़ास भूमिका में हैं. इसके अलावा मेरी मां जीनत ने भी फिल्म में कैमियो किया है. इसकी कहानी दिव्य निधि शर्मा ने लिखी है. यह स्पैनिश फिल्म 'चैंपियंस' का ऑफिशियल रीमेक है.

ये हम सबके लिए एक ख़ास विषय है. आमतौर पर क्रिएटिव लोगों में डिफरेंसेस आते हैं, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इस फिल्म को बनाते समय कोई विवाद नहीं हुआ.

फिल्म करते समय ज़िंदगी के न जाने कितनी भावनाओं से होकर गुज़रना पड़ा. मेरे अनुसार, माफ़ करना बहुत बड़ी चीज़ होती है. जिसने आपको दुख, नुक़सान, चोट पहुंचाया, लेकिन आप दिल से उसे माफ़ कर देते हो, तो एक तरह से आप ख़ुद को और उस बंदे को भी आज़ाद कर देते हो. मेरी नज़र में किसी को माफ़ कर देने का स्वभाव ही किसी व्यक्ति का सबसे बड़ा गुण होता है.

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मेरी थींकिंग यह है कि हमको बच्चों को आज़ादी देनी चाहिए. हर बच्चे का अपना कैरेक्टर होता है. उसकी अपनी ख़ूबी होती है और हम अक्सर बच्चों को शैतानी करने से रोकते हैं. नहीं, बच्चों को शैतान होना चाहिए. वो उनका पीरियड है शैतानी करने का. हर चीज़ में हम उसे टोकते रहेंगे, तो वो रोबोट जैसा हो जाएगा. मुझे लगता है बच्चों को हमें कंट्रोल नहीं करना चाहिए. उनको सही सीख देनी चाहिए.

यह बात मैंने कहीं बताई नहीं आज तक पर अब बता रहा हूं कि मेरे बेटे जुनैद को डिस्केलसिया था. अब तो फिल्म 'तारे ज़मीन पर' को रिलीज़ हुए तक़रीबन 17-18 साल हो चुके हैं. जब मैंने इसकी कहानी पहली बार सुनी तब मेेरे दिल को छू गई थी, क्योंकि मैं भी इस दौर से गुज़र रहा था. फिल्म के क़िरदार नंदकिशोर की तरह शुरू-शुरू में मैं भी जुनैद को डांटता रहता था. क्योंकि जब वो छोटा था, तब उसकी हैंडराइटिंग बहुत ख़राब थी. जब मैं उसे पढ़ाता था तो वो फॉर की जगह फॉर्म बोल दे, ऑफ बोल दे. वह अच्छी तरह से पढ़ नहीं पाता था. तो मैं उसे समझाने की कोशिश करता था और कंफ्यूज भी रहता था कि इतनी सिंपल सी चीज़ें वो कैसे नहीं समझ पा रहा है. बाद में हमें पता चला कि उसको डिस्केलसिया है और फिर हमने उससे उबरने में उसकी मदद की. उस वक़्त ये बातें मैंने किसी को नहीं बताई, क्योंकि मेरा सोचना है कि मुझे नहीं, बल्कि जुनैद को ही अधिकार था कुछ भी कहने का.

हंसी-मज़ाक में गंभीर बात कह जाना या फिर अपना ही मज़ाक उड़ाना हर किसी के बस की बात नहीं होती. एक बार जावेद अख़्तर जी ने कहा था कि ह्यूमर की अच्छी समझ सिर्फ़ मौज-मस्ती और खेल के लिए नहीं होती, बल्कि यह वास्तव में तब काम आती है जब आप ज़िंदगी में मुश्किलभरे दौर से गुज़र रहे होते हैं. ऐेसे में यदि उस समय आपके पास हास्य की अच्छी समझ होती है, तो यह एक शॉक एब्जॉर्बर की तरह काम करती है. मैं यह मानता हूं कि मेरी ह्यूमर को लेकर अच्छी समझ रही है.

अपनी हाइट को लेकर मेरी अक्सर डांवाडोल वाली स्थिति रही है और एक डर भी बना हुआ था. मेरे करियर के शुरुआती दौर में अमिताभ बच्चन जी सुपर स्टार थे, जो लंबे और प्रभावशाली थे. विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे स्टार काफ़ी लंबे थे. इन सबको देख मुझे अपने कद को लेकर घबराहट सी होती थी. इस बात को लेकर परेशान रहता था कि इन सबके सामने शायद मैं टिक ना पाऊं. लेकिन शुक्र है कि मेरे अभिनय की गाड़ी अच्छी तरह चली.

साउथ के लोकेश कनगराज और मैं एक दिलचस्प विषय पर फिल्म कर रहे हैं, जो अगले साल बनेगी, क्योंकि फ़िलहाल वे 'कैथी' फिल्म की शूटिंग में व्यस्त हैं.

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रिश्तों को लेकर भले ही मैं असफल रहा हूं, परंतु तलाक़ के मामले में कामयाब रहा हूं. लेकिन मेरी फैमिली के लिए यह कोई अच्छी बात नहीं थी. कोई भी जानबूझकर कुछ नहीं करता, कई बार परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि हमें अलग होने के सिवा दूसरा कोई रास्ता नहीं दिखता. यदि मैं चाहता तो झूठ कहकर किरण (दूसरी पत्नी) के साथ वैवाहिक जीवन बिता सकता था, लेकिन मुझे यह ठीक नहीं लगा. करियर और उम्र के इस पड़ाव पर मुझे अब एहसास होने लगा है कि मैंने फैमिली को उतना समय नहीं दिया, जितना मुझे देना चाहिए था.

फिल्मों की शूटिंग और बिज़ी लाइफ में इस कदर डूबता चला गया कि मानो करियर के 30 साल काम के नशे में ही रहा. परंतु अब एहसास हो रहा कि इन सबको मुझे इतना ज़्यादा इर्म्पोटेंस नहीं देना चाहिए था. काम के जुनून के आगे मैंने रिश्तों को दरकिनार कर दिया था, जो ग़लत था.

- ऊषा गुप्ता

Photo Courtesy: Social Media

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