धर्म, अर्थ, काम (सेक्स) और मोक्ष- ये चार पुरुषार्थ कहे गए हैं. इन्ही चारों की प्राप्ति के लिए हर मनुष्य प्रयत्नशील रहता है. यह तभी संभव है, जब शरीर और मन पूर्ण रूप सें स्वस्थ (Health) हों, क्योंकि शरीर के स्वास्थ्य से ही अर्थ, काम (सेक्स) जैसे लौकिक कार्यों का संपादन होता है. अस्वस्थ तन-मन से न तो धनोपार्जन किया जा सकता है और न ही यौन सुख प्राप्त किया जा सकता है. शरीर की पुष्टी, अंगों की दृढ़ता, मन और इंद्रियों की प्रसन्नता, शरीर की आरोग्यता आदि योग और यौगिक क्रियाओं से ही संभव है. योग (Yoga) मन और शरीर को स्वस्थ करने के साथ-साथ उनकी कार्यक्षमता भी बढ़ाता है. योग से ही मानसिक शक्ति का विकास होता है. मन ही काम (सेक्स) का नियंत्रक और संचालक है. स्वस्थ मन और स्वस्थ शरीर से ही सही मायने में यौन-आनंद प्राप्त किया जा सकता है.
यौनांगों को विकारमुक्त रखता है योग
– शरीर का मध्य भाग काम-ऊर्जा से संबंधित है. यदि शरीर का यह भाग पूर्णतया विकसित न हो अथवा विकारग्रस्त हो तो सेक्स क्रिया का संपादन संभव नहीं है. शरीर स्वस्थ भी हो और पूर्णतया विकसित भी हो, ये योग से ही संभव है. योग में प्राय: अधिकांश आसन ऐसे हैं, जो शरीर के मध्य भाग पर किसी न किसी रूप में सीधा प्रभाव डालते हैं, चाहे वह सूर्य नमस्कार हो, उत्तानपादासन हो, भुजंगासन हो अथवा पवनमुक्तासन- ऐसे अनेक यौगिक आसन शरीर के मध्य भाग को स्वस्थ और सशक्त बनाकर सेक्स शक्ति
बढ़ाते हैं.
– वैज्ञानिक शोधों से भी पता चला है कि यौगिक आसनों से यौन विकारों का शमन तथा प्रजनन अंगों की पुष्टी होती है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सास की सायकोलॉजिस्ट सिंडी मेस्टन के अनुसार, योगासन करने से महिलाओं के दिल की धड़कन और रक्त प्रवाह में जो तेज़ी आती है, उसका सीधा प्रभाव योनि पर भी पड़ता है, जिसके कारण योनि की मांसपेशियों में रक्तसंचार बढ़ जाता है. इसलिए योग करने वाली स्त्रियों की सेक्स क्षमता आम स्त्रियों से बेहतर होती है.
– कुछ लोग मन की दुर्बलता के कारण नपुंसकता महसूस करते हैं, उनके लिए योगासन किसी वरदान से कम नहीं, क्योंकि योगासन से मन के सभी विकार दूर हो जाते हैं और वह शक्तिशाली बनता है. हाल ही में हुए अध्ययनों से पता चला है कि जो पुरुष नियमित रूप से योगासन करते हैं, उनके नपुंसक होने की आशंका तीन गुना कम हो जाती है. यह अध्ययन अमेरिका के मेसाच्यूसेट्स के एक शोध संस्थान में किया गया.
कामग्रंथियों पर योगासनों का प्रभाव
– योग हमारे सेक्स जीवन पर किस प्रकार प्रभाव डालता है, ये जानने के लिए शरीर स्थित ग्लैंड्युलर सिस्टम (ग्रंथियों की कार्य प्रणाली) को जान लेना ज़रूरी है, क्योंकि ये ग्रंथियां ही यौनशक्ति और सेहत के लिए ज़िम्मेदार हैं. इन्हें ङ्गएन्डोक्राइन ग्लैंड्सफ कहते हैं.
– ये ग्रंथियां ऐसे हार्मोंस का स्राव करती हैं, जिनसे शरीर की अधिकांश क्रियाएं नियंत्रित होती हैं. इन्हीं में से कुछ काम ग्रंथियां हैं (स्त्रियों मे डिंब ग्रंथि और पुरुषों में वृषण ग्रंथि), जिनसे सेक्स हार्मोंस का स्राव होता है. इन्हीं ग्रंथियों पर हमारा सेक्सुअल हेल्थ निर्भर है. यह तभी संभव है, जब ये ग्रंथियां स्वस्थ और विकार रहित हों.
– ग्रंथियों को विकारहित और स्वस्थ रखने में योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हलासन, सेतुबंध, सर्वांगासन, शीर्षासन ऐसे आसन हैं, जिनके अभ्यास से ग्रंथियों की कार्यप्रणाली दुरुस्त बनी रहती है, जिससे हार्मोंस का स्राव सुचारु रूप से होता है – न कम और न अधिक. यही कारण है कि यौगिक आसनों के अभ्यास से जहां अतिकामुकता पर नियंत्रण होता है, वहीं कामशीतलता की स्थिति में कामेच्छा भी जागृत होती है.
– सामान्यत: जहां यौगिक आसन हमारे शरीर में प्राणशक्ति एवं लचीलापन बढ़ाकर हमें यौन दृष्टी से स्वस्थ रखते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ विशेष यौगिक मुद्राएं एवं बंध हैं, जो हमारी खोई हुई यौनशक्ति को पुन: प्राप्त करने में हमारी सहायता करते हैं, जैसे – महामुद्रा, उद्दीय मुद्रा, अश्विनी मुद्रा, मूलबंध, जालंधर बंध आदि. ये मुद्राएं कामेच्छा को बढ़ाकर शरीर में यौन ग्रंथियों एवं प्रजनन अंगों को दृढ़ता तथा उत्तेजना प्रदान करती हैंै. पेल्विक और स्पाइन को भी गतिशीलता एवं लचीलापन प्रदान करने के साथ-साथ ये मुद्राएं शीघ्रपतन, मासिक रक्तस्राव एवं मेनोपॉज़ में आने वाली कठिनाइयों, प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ जाना, स्त्रियों में कामशीतलता तथा पुरुषों में नपुंसकता आदि विकारों को रोकने में भी सहायक होती हैं.
सेक्सुअल हेल्थ में कुछ उपयोगी आसन
काम की उत्तेजना के लिए कोई विशेष आसन नहीं है. यौगिक आसनों का काम यही है कि वे यौन संस्थानों को स्वस्थ और शरीर के अंग-प्रत्यंगों को शक्तिवान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इससे जहां कामशक्ति व्यवस्थित होती है, वहीं यौन रोगों से मुक्ति मिलती है. ऐसे ही कुछ आसन यहां दिए जा रहे हैं, जो हमारे सेक्सुअल हेल्थ को बढ़ाते हैं.
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चक्रासन
– पीठ के बल लेटकर घुटनों को मोड़ें. एड़ियां नितंबों के समीप लगी हुई हों.
– दोनों हाथों को उल्टा करके कंधों के पीछे थोड़े अंतर पर रखें. इससे संतुलन बना रहता है.
– सांस अंदर भरकर कमर एवं छाती को ऊपर उठाएं.
– धीरे-धीरे हाथ एवं पैरों को समीप लाने का प्रयत्न करें, जिससे शरीर की चक्र जैसी आकृति बन जाए.
– आसन छोड़ते समय शरीर को ढीला करते हुए कमर ज़मीन पर टिका दें. यह क्रिया 3-4 बार करें.
यह आसन करने से कामशक्ति बढ़ती है. थायरॉइड, थायमस तथा काम ग्रंथियां उत्प्रेरित होती हैं, जिससे हार्मोंस का स्त्राव संतुलित ढंग से होता है. महिलाओं के डिंबाशय और गर्भाशय को अत्याधिक प्रभावित कर यह आसन उनके समस्त रोगों को दूर करता है. बच्चियों और किशोरियों को यह आसन अवश्य करना चाहिए, क्योंकि इससे उनके जननांगों एवं स्तनों का उचित विकास होता है.
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जानुशिरासन
– दण्डासन में बैठकर दाएं पैर को मोड़कर पंजे को बाएं जंघा के मूल में लगाएं और एड़ी को सिवनी (उपस्थ व गुदाभाग के बीच का भाग) से सटाकर रखें.
– दोनों हाथों से बाएं पैर के पंजे को पकड़कर सांस बाहर निकालकर सिर को घुटने से लगाएं. थोड़ी देर रुकने के पश्चात् सांस लेते हुए ऊपर उठ जाएं और दूसरे पैर से भी इसी प्रकार दोहराएं.
सेक्स के प्रति उदासीन स्त्रियों में इस आसन से कामवासना जागृत होती है. स्त्री-पुरुष दोनों के यौनांग बलवान होते हैं.
सुप्त वज्रासन
– वज्रासन में बैठकर हाथों को पीछे की तरफ़ रखकर उनकी सहायता से शरीर को पीछे झुकाते हुए ज़मीन पर सिर को टिका दें. घुटने मिले हुए तथा ज़मीन पर टिके हुए हों.
– धीरे-धीरे कंधे, गले और पीठ को भी ज़मीन पर टिकाने की कोशिश करें. हाथों को जंघाओं पर सीधा रखें.
– आसन को छोड़ते समय कोहनियों और हाथों का सहारा लेते हुए वज्रासन में बैठ जाएं.
इससे स्त्रियों का योनि प्रदेश मज़बूत होता है तथा उन्हें प्रसव के समय अधिक पीड़ा नहीं होती. स्त्री-पुरुष दोनों की जांघें मज़बूत होती हैं. सेक्स संबंध में यह आसन बहुत उपयोगी है.
इनके अतिरिक्त और भी अनेक आसन और मुद्राएं हैं, जो यौनांगों के विकारों को दूर कर उन्हें सबल और क्रियाशील बनाते हैं. ये आसन कामशक्ति को बढ़ाने के साथ-साथ उसे संतुलित और नियंत्रित भी करते हैं. लेकिन इन आसनों का अभ्यास किसी योग विशेषज्ञ गुरु के निर्देशन में करने से ही समुचित लाभ उठाया जा सकता है.
– आलोक शुक्ल
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