महाश्वेता देवी: जिन्हें पाकर कलम भी धन्य हो गई (Birth Anniversary: mahasweta Devi was great writer and a social worker)
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14 जनवरी 1926 में अविभाजित भारत के ढाका में एक बच्ची का जन्म हुआ. तब किसे पता था कि आगे चलकर वो नन्हीं परी महाश्वेता देवी बन जाएगी, जिनकी रचनाएं समाज के लिए आईने का काम करेंगी. इस महान लेखिका और समाज सेविका को मेरी सहेली की ओर से शत-शत नमन. महाश्वेता देवी पहले एक स्कूल में पढ़ाती थीं, लेकिन उन्हें लगा कि इससे काम नहीं चलेगा, इसलिए आगे चलकर उन्होंने पढ़ाना छोड़ दिया और अपना पूरा टाइम लेखन और समाज सेवा में लगा दिया.
महाश्वेता देवी की कलम की बेबाकी ने उन्हें समाज के एक ऐसे हिस्से का मसीहा बना दिया, जिनका अस्तित्व न के बराबर रहा. अपनी कलम से उन्होंने ग़रीबों के स्थिति का रेखाचित्र खींचा और बड़े तबके तक पहुंचाया. महाश्वेता को लोग मां कहकर बुलाते थे. उनकी कई ऐसी रचनाएं थीं, जिन्होंने समाज को ये सोचने पर मजबूर कर दिया. अपने अंतिम दिनों में महाश्वेता कई बीमारियों से परेशान थीं और अंत में जुलाई के महीने में साल 2016 में उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया. भले ही वो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी कृतियां पग-पग पर लोगों को राह दिखाती रहेंगी.
इनकी कई रचनाओं पर फ़िल्म भी बनाई गई. इनके उपन्यास रुदाली पर कल्पना लाज़मी ने रुदाली तथा हज़ार चौरासी की मां पर इसी नाम से 1998 में फिल्मकार गोविन्द निहलानी ने फ़िल्म बनाई.
महाश्वेता देवी ने आदिवासियों के लिए बहुत काम किया. इसमें बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात के आदिवासी आते थे. उन्होंने किसानों की ज़मीन को बड़े लोगों के हाथ बेचने का विरोध किया. कलम के साथ-साथ वो ख़ुद भी समाज के हर तपके लिए काम करती रहीं.
महाश्वेता देवी को 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1986 में पद्मश्री, 1997 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. ज्ञानपीठ पुरस्कार इन्हें नेल्सन मंडेला के हाथों दिया गया. इस पुरस्कार में मिले 5 लाख रुपये इन्होंने बंगाल के पुरुलिया आदिवासी समिति को दे दिया था. उनकी यही आदत उन्हें लोगों में अमर कर गई.