नवजात बच्चों और शिशुओं को स्तनपान कराने से उनमें भावनात्मक लगाव पैदा होता है और उनका सही मानसिक विकास होता है. इससे उनके भीतर अधिक सुरक्षित लगावों का विकास होता है और नकारात्मक भाव घटते हैं. अनेक अध्ययनों से यह पता चला है कि स्तनपान यानी ब्रेस्टफीडिंग एवं त्वचा के संपर्क से बच्चों के तनाव को दूर करने और बेहतर रिश्ता कायम करने में मदद मिलती है. स्तनपान करनेवाले शिशुओं को कान के गंभीर संक्रमणों, श्वसन नली संक्रमण, अस्थमा, मोटापा, टाइप 1 एवं 2 डायबिटीज़ मेलिटस व बचपन के ल्यूकिमिया का ख़तरा कम होता है.
ब्रेस्टफीडिंग को लेकर और इससे जुड़ी कई उपयोगी जानकारियां दी कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल की गायनाकोलॉजिस्ट और ऑब्स्टेट्रिशियन डॉ. नेहा पवार ने.
डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ जन्म के एक घंटे के भीतर से लेकर जीवन के शुरुआती 6 महीनों के दौरान और कम से कम 2 साल तक की अवधि के लिए विशेष मातृ स्तनपान की सिफ़ारिश करते हैं. स्तनपान को प्रोत्साहित करना प्रत्येक हेल्थ प्रोवाइडर, माता-पिता और देखभाल करनेवाले की साझी ज़िम्मेदारी है. यही इस बार का थीम भी था यानी स्तनपान की सुरक्षा वाक़ई में साझी ज़िम्मेदारी है. इस स्तनपान सप्ताह में उपरोक्त सभी बातों पर प्रकाश डालने के अलावा मांओं को जागरूक भी किया गया.
मां का दूध पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जैसे- आवश्यक फैटी एसिड, विटामिन, खनिज और अमीनो एसिड जिनका संबंध बेहतर संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली, भाषा विकास और ज्ञान तंतुओं के विकास से होता है.
पोषण के दृष्टिकोण से, बच्चे के ज्ञान तंतुओं के विकास के साथ-साथ अन्य विकासात्मक विकारों में मां के दूध की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जैसे- अटेंशन-डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी विकार एवं मोटर डेफिसिट्स. स्तनपान करनेवाले शिशुओं में एटोपिक डर्मेटाइटिस एवं गैस्ट्रोएंटेराइटिस का ख़तरा कम होता है और जीवन में उनका आईक्यू अधिक होता है.
मां के लिए फ़ायदे
स्तनपान करानेवाली मांओं को भी इससे कई फ़ायदे होते हैं, जैसे- उन्हें स्तन कैंसर, ओवेरियन कैंसर, पोस्टपार्टम डिप्रेशन, उच्च रक्तचाप, कार्डियोवैस्क्यूलर रोग एवं टाइप 2 डायबिटीज़ मेलिटस का ख़तरा कम होता है.
स्तनपान के दौरान निकलनेवाले प्रोलैक्टिन एवं ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन्स, मैटर्नल स्ट्रेस के लेवल्स को कम करने और शिशु के साथ बेहतर जुड़ाव पैदा करने में सहायक होते हैं. स्तनपान का मां-शिशु के रिश्ते पर सकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ता है, जैसे- सक्रियतापूर्वक बात करने, आई कॉन्टैक्ट एवं त्वचा संपर्क के ज़रिए उनके बीच बेहतर एवं प्यारपूर्ण रिश्ते का विकास होगा. इससे मांओं को उनके शिशुओं के साथ गहरा रिश्ता बनाने एवं पोस्टपार्टम डिप्रेशन को कम करने में मदद मिलती है.
मां को कोविड होने के बावजूद शिशु के लिए स्तनपान सुरक्षित है…
कोविड-19 अवधि के दौरान नवजात शिशुओं को स्तनपान कराने को लेकर सबसे बड़ा डर ब्रेस्ट मिल्क के माध्यम से वायरस के संक्रमण का है. स्तन के दूध में SARS-CoV-2 के संचरण के संबंध में अभी भी कोई पुख्ता सबूत उपलब्ध नहीं है. यह सर्वविदित है कि स्तन का दूध जीवन के पहले कुछ महीनों के दौरान एंटीबॉडी प्रदान करके शिशु की रक्षा करता है, जबकि शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली अभी भी विकसित हो रही होती है.
डब्ल्यूएचओ ने सिफारिश की है कि जिन मांओं को कोविड-19 की पुष्टि या संदेह है, उन्हें स्तनपान कराना बंद नहीं करना चाहिए, क्योंकि मांओं और नवजात शिशुओं दोनों के लिए स्तनपान का जो फ़ायदा है, वो नवजात को COVID-19 के संचरण के जोखिम से काफ़ी अधिक हैं.
नवजात में संक्रमण के प्रसार से बचने के लिए मां को सभी आवश्यक निवारक उपायों का पालन करते रहना चाहिए, क्योंकि संक्रमण अभी भी मां से बच्चे तक ड्रॉपलेट्स के माध्यम से जा सकता है. जब मांओं के लिए उनकी क्लिनिकल स्थिति के कारण नवजात शिशु से अलग रहना बेहद ज़रूरी हो, तो एक्सप्रेस्ड ब्रेस्ट मिल्क या वेट नर्सिंग के विकल्प का परामर्श दिया जाना चाहिए.
कोविड-19 माताओं के लिए सुरक्षित स्तनपान हेतु निवारक उपाय
• स्तनपान या ब्रेस्ट मिल्क एक्सप्रेस से पहले हाथों को साबुन और पानी से अच्छी तरह से धो लें.
• साबुन और पानी मौजूद न होने पर, न्यूनतम 60 प्रतिशत अल्कोहल युक्त हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें.
• स्तनपान या ब्रेस्ट मिल्क एक्सप्रेसिंग के दौरान फेस मास्क की मदद से मुंह और नाक को ढंक लें.
• ब्रेस्ट पंप्स के निर्माताओं के दिशानिर्देशों के अनुसार उनके उपयोग से पहले पंप्स को अच्छी तरह से धो लें और उन्हें सैनिटाइज कर लें.
• सेहतमंद देखभाल करनेवाले से ही नवजात शिशु को एक्सप्रेस्ड ब्रेस्ट मिल्क दिया जाना चाहिए.
कोलोस्ट्रम
कोलोस्ट्रम वैज्ञानिक रूप से ज्ञात सबसे शक्तिशाली प्राकृतिक प्रतिरक्षा बूस्टर है. बच्चे का पहला टीका, कोलोस्ट्रम (जन्म के दिन निकलने वाले दूध), पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत होने के अलावा, इसमें विभिन्न सुरक्षात्मक कारकों की उच्चता होती है, जिसमें एंटी-संक्रमण क्रिया होती है, जो प्रतिरक्षा प्रदान करती है और साथ ही शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली के विकास को बढ़ाती है.
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