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FILM REVIEW: मज़ेदार फिल्म है ‘ढिशूम’
रोहित धवन की 'ढिशूम' एक हल्की-फुल्की मनोरंजक फिल्म के तौर पर पसंद आ सकती है. सबसे पहले बात कहानी की करते हैं, कहानी में क्रिकेट, ख़ूबसूरत लोकेशन्स और कॉमेडी का तड़का लगा है.
कहानी में क्रिकेट के प्रति दीवानगी से लेकर मैच फिक्सिंग तक के मुद्दों को दिखाया गया है. लेकिन कहानी में लॉजिक की कोई जगह नहीं है. कब, क्यों और कैसे? जैसे सवालों में उलझे बिना अगर आप फिल्म देखें तो इसका भरपूर मज़ा उठा सकते हैं. ढिशूम में आपको वह सब मिलता है, जिसकी उम्मीद लेकर आप कोई भी मसाला फिल्म देखने जाते हैं. जॉन और वरुण का तालमेल कहानी की ढीली पकड़ की कमी को पूरा करता है. कहानी में हालांकि दम नहीं है, लेकिन अरेबियन नाइट्स जैसे लोकेशन्स, बैकग्राउंड में चलता गाना और कॉमेडी परोसती पंच लाइन्स फिल्म को बांधे रखती है. जॉन एक सख्त पुलिस ऑफिसर की भूमिका के साथ न्याय करते नजर आते है. तो वहीं वरुण की कॉमिक टाइमिंग शानदार है. फिल्म में एक चोरनी के किरदार में नज़र आईं जकैलिन फर्नांडिस के पास एक आइटम सॉन्ग और हीरो को लुभाने के अलावा ज़्यादा कुछ करने को नहीं है. लंबे समय बाद विलेन के रूप में अक्षय खन्ना की वापसी शानदार है. फिल्म में अक्षय कुमार एक छोटे, लेकिन अलग किरदार में नजर आते हैं. सुषमा स्वराज के रूप में गढ़ा गया मोना अंबेगांवकर का किरदार प्रभाव छोड़ता है. मोना जितनी देर भी पर्दे पर रहती हैं, बेहतरीन नज़र आती हैं. अभिजीत वघानी का बैकग्राउंड म्युज़िक लुभाता है और प्रीतम का गाना 'सौ तरह के ..' फिल्म को दम देता है. मनोरंजन परोसने के चक्कर में फिल्म की कहानी में थ्रिल अपना असर खोता नजर आया. अयानंका बोस की सिनेमैटोग्राफी ऊंचे दर्ज़े की है.
फिल्म का दम यही है कि कमियों के बावजूद यह मनोरंजन करने में कामयाब है. अगर दिमाग़ लगाए बिना केवल मनोरंजन के लिहाज़ से फिल्म देखना चाहें तो फिल्म देखने ज़रूर जाएं.