तुम मेरी रगों में फिर
नशा बन के बह रहे हो 
क्या मेरी तमन्नाएं 
जी उठी हैं
तुम्हारे दिल में
कि क्या मेरी दुआएं 
रंग लाने लगी हैं
क्या एक बार फिर
ज़िंदगी सांस लेने को
तड़प उठी है 
तुम मेरी रगों में
नशा बन के 
बह रहे हो 
मेरे सीने में
थमी हुई धड़कनें चलने लगी हैं 
मेरी सांसों में गर्मी उठने लगी है
आवाज़ लड़खडा जाती है 
मेरी आंखों में नशा है 
 बढ़ रही है लाली 
 तुम्हारे चेहरे की
 मेरे चेहरे पर 
 कि भर लिया  है
 तेरे चेहरे को अपने हाथों में
 बढ़ रहे हैं मेरे होंठों की ओर
 कि जैसे पी लेंगे तुम्हारे बदन से 
 बह रहे महुए का रस 
 निचोड़ लेंगे तुम्हें 
 अपनी बांहों में भर कर 
 किसी बहके हुए दीवाने सा 
 कि आज फिर तुम मेरी रगों में
 नशा बन के बह रहे हो 
 मुझे थके हुए ज़िंदगी के एहसास से 
 बाहर निकाल
 एक नई ज़िंदगी देने के लिए
 जो तमाम बंधनों से मुक्त है 
 उन्मुक्त है…
- शिखर
यह भी पढ़े: Shayeri
 
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