हम प्रार्थना करते हैं
कुछ पाने के लिए
किसी से
निःस्वार्थ प्रार्थना में भी
सर्व कल्याण का भाव निहित रहता है
वरदान मांगते हैं
और स्वतः भी प्राप्त होता है
वरदान जब मांगते हैं
वह शक्ति
असीमित शक्ति के लिए होता है
तब हम तप करते हैं
किसी शक्ति की आराधना
और जब बिना मांगे
मिलता है वरदान
तब कृपा होती है तुम्हारी
स्वार्थ से परे
पूजा, ध्यान और प्रार्थना से भी आगे
वास्तविक वरदान
सोचा और मांगा नहीं जाता
प्राप्त होता है
और तब
दिखाई देती हैं
असीमित उपलब्धियां
और हमारे पास
परमात्मा के सम्मुख
निःस्वार्थ भाव से
नतमस्तक होने के अतिरिक्त
कोई विकल्प नहीं बचता
बस हम अपने जीवन में
प्राप्त हो रहे
मिले वरदान को
कभी देख सकें
महसूस कर सकें
यह जो नित नई सांस है
हम कितने कृतज्ञ हैं इसके प्रति
कितना महसूस करते हैं इसे
अपने भीतर संचारित होता
यह दर्शन नहीं
जीवन का सत्य है
अत्यंत सरल शब्दों में
वरदान की इस अनुभूति के लिए
मात्र जागरण चाहिए
किसी भी प्रार्थना, पूजा और आराधना से परे…
- मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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