घर, शिक्षा या फिर कोई इमर्जेंसी की स्थिति में हमें कई बार बैंक से लोन लेने की ज़रूरत पड़ जाती है. ख़ासकर अपने सपनों का आशियाना बनाने के लिए अक्सर हमें होम लोन लेना पड़ता है. लेकिन होम लोन लेते समय अक्सर लोग कन्फ्यूज़ हो जाते हैं कि फिक्स्ड ब्याज दर पर लोन लें या फ्लोटिंग दर पर. तो आइए, जानते हैं कि ब्याज दर के क्या फ़ायदे-नुक़सान हैं.
वर्तमान समय में होम लोन की ईएमआई पहले से अधिक हो गई है. साथ ही इसकी अवधि भी बढ़ा दी गई है. रेपो दर में बढ़ोतरी के बाद होम लोन का न्यूनतम इंटरेस्ट रेट 7.7 प्रतिशत हो गया है. दरअसल, निरंतर बढ़ती महंगाई की वजह से रेपो दर में भी इज़ाफ़ा होता जा रहा है, जिससे होम लोन भी महंगा होता जा रहा है. वैसे महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 0.90 प्रतिशत रेपो दर बढ़ाया है. भविष्य में भी रेट में इज़ाफ़ा किए जाने की गुंजाइश है. सेंट्रल बैंक के रेपो दर में इज़ाफ़ा करने के बाद अन्य बैंकों ने भी होम लोन पर इंटरेस्ट रेट बढ़ाया है. इसके अलावा होम लोन की ईएमआई व अवधि भी बढ़ा दी गई है. इस स्थिति में यह जानना बेहद आवश्यक हो जाता है कि होम लोन लेने पर ब्याज़ की किश्त भरने के लिए फिक्स्ड रेट बेहतर रहेगा या फ्लोटिंग.
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दरअसल, जो फ्लोटिंग ब्याज दर होती है, वो फिक्स्ड दरों से कुछ कम रहती है. लेकिन यदि आपको लगता है कि भविष्य में इंटरेस्ट रेट बढ़ेंगे, तो होम लोन के लिए आप फिक्स्ड रेट का विकल्प चुन सकते हैं. और यदि आप इंटरेस्ट रेट में होनेवाले उतार-चढ़ाव को लेकर संतुष्ट नहीं हैं और आपको लगता है कि आगे रेट कम हो सकती है, तो ऐसे में आप फ्लोटिंग रेट ले सकते हैं. आइए, सरल तरी़के से फिक्स्ड इंटरेस्ट रेट और फ्लोटिंग रेट के बारे में जानते हैं.
जब आप फिक्स्ड इंटरेस्ट रेट पर होम लोन लेते हैं, तब लोन के पूरे टाइम पीरियड तक आपके इंटरेस्ट रेट निश्चित यानी एक समान ही रहता है. न ईएमआई कम होती है और न ही अधिक. आपकी ब्याज़ दर एक ही रहती है. जबकि फ्लोटिंग रेट मार्केट की सिचुएशन व बैंकों के पॉलिसी पर निर्भर करती है और उसी के अनुसार इसके इंटरेस्ट रेट अधिक व कम होते रहते हैं. एक और बात, यदि आपने इंटरेस्ट रेट को बेस व फ्लोटिंग रेट के साथ लिंक किया है, तो बेस रेट में बदलाव होने पर फ्लोटिंग रेट भी बदल जाता है. इसमें आपको पहले से अधिक ईएमआई भरनी पड़ती है.
उदाहरण के लिए आप 20 साल के लिए सात प्रतिशत ब्याज पर 50 लाख रुपए का होम लोन ले रहे हैं. आपको हर माह 38,765 रुपए की ईएमआई भरनी पड़ रही है. ऐसे में यदि इंटरेस्ट रेट बढ़कर 7.5 पर्सेंट हो जाता है और आप अपना ईएमआई नहीं बढ़ाना चाहते हैं, तो आप फिक्स्ड रेट पर होम लोन ले सकते हैं. आपकी लोन की समय सीमा 23 माह और बढ़ जाती है. इसके अलावा 8.5 प्रतिशत इंटरेस्ट रेट होने पर लोन की समय सीमा तक़रीबन दस साल तक के लिए बढ़ जाती है.
इनकम के अनुसार निर्णय लें…
आरबीआई द्वारा पिछले दो महीने में रेपो रेट अधिक कर देने के बाद से बहुत सारे बैंकों ने फ्लोटिंग व फिक्स्ड रेट पर लोन दिए हैं. ऐसे में अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस रेट पर होम लोन लेना चाहते हैं. एकबारगी देखें, तो समयानुसार दोनों ही इंटरेस्ट रेट उपयुक्त हैं. ध्यान रहे, आपकी जितनी इनकम और सेविंग होती है, उसी के अनुसार आपको फिक्स्ड या फ्लोटिंग रेट सिलेक्ट करना चाहिए. वैसे फ़िलहाल भविष्य को देखते हुए इंटरेस्ट रेट कम होने की गुंजाइश ना के बराबर ही लग रही है.
इन स्थितियों में फ्लोटिंग रेट होम लोन का करें चुनाव
जब आपको इंटरेस्ट रेट के कम होने की आशा हो.
- इंटरेस्ट रेट के उतार-चढ़ाव को लेकर अनिश्चितता रहे.
- कम समय में अपने इंटरेस्ट रेट पर कुछ सेविंग करने की इच्छा हो.
- इसमें सबसे बड़ा फ़ायदा यह होता है कि यदि भविष्य में आप लोन की एक बड़ी किश्त समय से पहले चुकाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको पेनाल्टी नहीं भरनी होगी. जबकि फिक्स्ड रेट में ऐसा करने यानी प्रीपेमेंट करने पर आपको ज़ुर्माना भरना पड़ता है.
- जो इसे लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि ब्याज़ दरें कहां बढ़ेंगी, उन्हें फ्लोटिंग दर ही लेना चाहिए.
फिक्स्ड रेट होम लोन इन सिचुएशन में ले सकते हैं…
- जो ईएमआई आप ले रहे हैं, उसे भरने को लेकर आप निश्चिंत हैं.
- इंटरेस्ट रेट के बढ़ने की उम्मीद हो.
- आपका इंटरेस्ट रेट कम हो गया है और आप उसे लॉक करने की इच्छा रखते हैं.
उपरोक्त दोनों यानी फिक्स्ड और फ्लोटिंग रेट को लेकर आपके दिलोदिमाग़ में असमंजस हो, तो आप कॉम्बिनेशन लोन भी ले सकते हैं. इसमें दोनों ही सुविधा आपको मिलती है यानी इस तरह के लोन में आपको फिक्स्ड व फ्लोटिंग दोनों के ही फ़ायदे मिलते हैं. बस, एक छोटी-सी रकम फीस के तौर पर देकर फ्लोटिंग व फिक्स्ड रेट के बीच स्विच कर सकते हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं कि हम जितनी मेहनत घर ढूंढ़ने में करते हैं, उससे कई ज़्यादा मशक्कत होम लोन लेने में होती है. फिर महत्वपूर्ण निर्णय यह भी होता है कि निश्चित ब्याज दर पर कर्ज़ लिया जाए या फ्लोटिंग पर. चूंकि इस निर्णय का असर हमारे फाइनेंस पर भी पड़ता है, तो ऐसे में बहुत सोच-समझकर दोनों में से एक विकल्प को चुनना चाहिए. तो क्यों न कुछ ज़रूरी बातों के बारे में भी जान लिया जाए, ताकि भविष्य में कोई परेशानी न हो.
- फिक्स्ड रेट होम लोन में फिक्स्ड रेट लोन होने के साथ-साथ ऐसे लोन वेरिएंट भी होते हैं, जहां आप तीन, चार, दस साल की समय सीमा तक लोन का इंटरेस्ट रेट तय कर सकते हैं. साथ ही आपके पास यह सुविधा भी रहती है कि आप जब चाहे, इंटरेस्ट रेट को रीसेट भी कर सकते हैं.
- यदि आप फिक्स्ड रेट पर लोन लेते हैं, तो आपको पता होता है कि आपको निश्चित अवधि तक एक फिक्स्ड रकम भरनी है. इससे आप अपना बजट और फाइनेंस प्लान भी अच्छी तरह से बना सकते हैं.
- वैसे फिक्स्ड रेट का लोन फ्लोटिंग रेट से थोड़ा अधिक होता है. यदि अंतर अधिक हो, तो फ्लोटिंग रेट चुन सकते हैं. और यदि ख़ास अंतर न हो, तो यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपनी आवश्यकताओं और स्थिति को देखते हुए देखें कि आपके लिए फिक्स्ड व फ्लोटिंग रेट में से कौन-सा सिलेक्ट करना बेहतर रहेगा.
संक्षेप में यह समझ लें कि फिक्स्ड इंटरेस्ट रेट में हमें होम लोन लेते समय तय की गई राशि को ही चुकाना होता है. जबकि फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट में मार्केट के अनुसार बदलाव होते रहते हैं. ये बदलाव बेस रेट पर आधारित होते हैं. साथ ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया व सरकार द्वारा भी समय-समय पर इंटरेस्ट रेट में बदलाव होते रहते हैं.
- ऊषा गुप्ता