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जेन्ट्स कॉलेज में मैं अकेली लड़की थी एग्ज़ाम के बाद मेरा सलेक्शन तो हो गया, लेकिन मेरी फ्रेंड का सलेक्शन नहीं हुआ. मेरे लिए ये गर्व की बात भी थी और शॉकिंग न्यूज़ भी कि जेन्ट्स कॉलेज में अकेले मेरा सलेक्शन हुआ है. तब तक पूरे कॉलेज में ये न्यूज़ फैल गई थी कि हमारे कॉलेज में एक लड़की आ रही है. उसके बाद मेडिकल होना था, जिसके लिए सीनियर डॉक्टर्स का बोर्ड आया हुआ था, लेकिन उन्हें लड़कियों के लिए कोई क्राइटेरिया ही पता नहीं था, क्योंकि इससे पहले वहां किसी लड़की का मेडिकल हुआ ही नहीं था. वो मुझसे कहने लगे, बेटा, इतना मुश्किल कोर्स है, क्या तुम यह कर पाओगी? उस दिन से लेकर कोर्स कंप्लीट होने तक हर बार मेरा एक ही जवाब होता, क्यों नहीं? मैं कर सकती हूं. ट्रेनिंग के दौरान भी जब मुझसे कहा जाता कि तुम ये काम कर लोगी, तो मैं कहती, क्यों नहीं? मैं कर सकती हूं. अपने पूरे कोर्स के दौरान मैंने इस वाक्य को हज़ारों बार दोहराया था. ख़ैर, हाइट, वेट, पर्सनैलिटी, कलर ब्लाइंडनेस आदि के बेसिर पर मेरा टेस्ट लिया गया और मैंने वो सारे टेस्ट क्लियर भी कर लिए. कॉलेज में स़िर्फ 30 सीट्स को एडमिशन मिलना था. पर्सनल इंटरव्यू के लिए वहां बड़ी-बड़ी कंपनियों के डायरेक्टर्स आये हुए थे. वो मेरा मेंटल स्टेटस चेक कर रहे थे कि मैं इतना मुश्किल कोर्स कंप्लीट कर सकती हूं या नहीं. मैंने उनके हर सवाल का पूरे आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया. पैरेंट्स को मनाने में वक़्त लगा आख़िरकार रात साढ़े नौ बजे लिस्ट में मेरा नाम भी आ गया- मिस हर्षिनी कान्हेकर, उस कॉलेज के इतिहास में पहली बार किसी लड़की का नाम शामिल हुआ था. ये कॉलेज 1956 से है, लेकिन अब तक वहां किसी लड़की ने एडमिशन नहीं लिया था. मुझे अपने पैरेंट्स को इस बात के लिए तैयार करने में थोड़ा वक़्त लगा कि मैं अकेली लड़की जेन्ट्स कॉलेज में पढ़ने जा रही हूं, लेकिन वो ये भी जानते थे कि एक बार यदि मैंने ऐसा करने की ठान ली है, तो मैं ये कर के रहूंगी.
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क़दम-क़दम पर ख़ुद को साबित करना पड़ा क्लासरूम में क़दम रखते ही मेरा असली चैलेंज शुरू हुआ. हालांकि यह कोर्स मैंने अपने शौक के लिए किया था, लेकिन मेरे हर काम, हर गतिविधि को सारी लड़कियों से जोड़कर देखा जाने लगा था. मैं यदि देर से पहुंचूंगी, तो लड़कियां देर से आती हैं, मैं कोई चीज़ नहीं उठा पाऊंगी, तो लड़कियां कमज़ोर होती हैं... मेरे परफॉर्मेंस पर आने वाले सालों में यहां एडमिशन लेने वाली सारी लड़कियों का भविष्य तय होने वाला था, इसलिए मैं एक भी ग़लती नहीं करना चाहती थी. साढ़े तीन साल के कोर्स में मैंने एक दिन भी छुट्टी नहीं ली, मैं कभी लेट नहीं हुई और मुझे कभी किसी तरह की पनिशमेंट भी नहीं मिली. एनसीसी बैकग्राउंड होने के कारण मेरा परफॉर्मेंस बहुत अच्छा था. मिल गई मंज़िल मुझे कई लोगों ने चाहा भी कि मैं कॉलेज छोड़कर चली जाऊं, लेकिन मैंने ठान लिया था कि ये कोर्स तो मैं कर के रहूंगी. ये कोर्स मैंने स़िर्फ अपने लिए नहीं किया, मैं ये इसलिए भी करना चाहती थी कि मेरे बाद किसी और लड़की को इस कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए इतना संघर्ष न करना पड़े. मेरे सहपाठी मुझसे यहां तक कहते थे कि कोर्स तो तुम कर रही हो, लेकिन जब तुम नौकरी के लिए अप्लाई करोगी, तो हमेशा ग्राउंड ड्यूटी पर ही रहोगी, क्योंकि तुम लड़की हो. उनकी इस सोच को भी मैंने ग़लत साबित कर दिया. कोर्स कंप्लीट करने के बाद मेरा ऑयल एंड नेचुरल गैस कमिशन (ओएनजीसी) में सलेक्शन हो गया. आज मैं फायर ऑफिसर के तौर पर उन सभी सुविधाओं का लाभ ले रही हूं, जो मेरे पुरुष सहपाठियों को मिल रही हैं. इसके अलावा मैं गिटार और ड्रम बजाती हूं, फोटोग्राफी भी करती हूं, क्योंकि ज़िंदगी रुकने का नाम नहीं. - कमला बडोनी
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