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कमज़ोर बनाता है डर (Kamzore Banata Hai Dar)

डर दुनिया में शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जो किसी चीज़ से डरता न हो, डर एक सहज प्रवृति है, मगर जब ये हद से बढ़ जाए और आपके विकास को प्रभावित करने लगे, तो संभल जाइए. किसी चीज़ को लेकर ज़रूरत से ज़्यादा डर आपको आगे बढ़ने नहीं देता है. अतः ज़िंदगी की रेस में जीतने के लिए सबसे पहले अपने डर पर जीत हासिल करिए. आख़िर क्यों लगता है डर? जब इंसान को अपनी क्षमताओं/योग्यताओं पर विश्‍वास नहीं होता, उसमें आत्मविश्‍वास नहीं होता, वो हमेशा नकारात्मक सोचता है, ये नहीं हुआ तो? ऐसा हो गया तो क्या करूंगा? आदि. ऐसा इंसान हमेशा किसी अनहोनी की आशंका से घिरा रहता है, क्योंकि उसमें हालात का सामना करने की हिम्मत नहीं होती. ऐसे लोगों के मन में हमेशा डर बना रहता है, कभी सामाजिक प्रतिष्ठा खोने का डर, कभी किसी चीज़ में हार का डर, कभी करियर तो कभी रिश्ते में असफलता का डर. इसके अलावा भी ये न जाने और कितने डरों से घिरे होते हैं. एक हाउसवाइफ जिसकी दुनिया बस पति तक ही सीमित हो, उसे डर रहता है कि कहीं उसका पति अपने ऑफिस की किसी कलीग की तरफ़ आकर्षित न हो जाए, किसी की ख़ूबसूरती, किसी के फिगर पर फिदा न हो जाए. अपने इसी डर के कारण वो पति के सामने हमेशा बन-ठनकर रहती है, पति के साथ होकर भी उसका मन भटकता रहता है यही सोचकर कि पता नहीं आज ऑफिस में क्या हुआ होगा? उसका डर उसे सहज और ख़ुशहाल ज़िंदगी जीने नहीं देता. इतना ही नहीं हमेशा पति के बारे में सोचकर वो अपना क़ीमती व़क्त बर्बाद करती रहती है, जिसे वो किसी अन्य काम में लगाती, तो शायद पर्सनैलिटी और ज्ञान बढ़ता. कहीं कोई समस्या न होने के बावजूद उसका डर ख़ुद उसके लिए एक समस्या बन जाता है.
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सफलता की राह का रोड़ा है डर आचार्य चाणक्य के अनुसार, डर हमें कमज़ोर बनाता है, जिस व्यक्ति के मन में भय आ जाए वो अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंच सकता. ये बात सौ फीसदी सच है, अपने आसापास नज़र दौराने पर आप पाएंगे कि निडर लोग ही ज़िंदगी में सफल हुए हैं और जो अपने डर पर क़ाबू नहीं कर पाते वो अपनी असफलता के लिए दूसरों को कोसते रहते हैं या फिर ख़ुद से कमज़ोर लोगों पर अपनी खीझ व ग़ुस्सा उतारते हैं. ऑफिस में पति के हाथ से कोई प्रोजेक्ट निकल गया या हर काम के लिए ना-नुकुर करने की वजह से उसकी जगह किसी और को प्रमोशन मिल गया. अपनी इस हार की खीझ अधिकतर पति पत्नी या बच्चों पर उतारते हैं. वो अपने परिवार के सामने ये तो ज़ाहिर नहीं कर सकतें कि उनके डर ने उनकी सफलता का मार्ग अवरूद्ध किया, ऐसे में किसी और बहाने से अपना ग़ुस्सा/चिढ़ उनके सामने ज़ाहिर करते हैं. कैसे काबू में करें डर? हिम्मत, आत्मविश्‍वास और ख़ुद की क्षमताओं का विकास और ख़ुद पर विश्‍वास करके ही आप डर को वश में कर सकते हैं. यदि बॉस आपको कोई काम दे रहा है, तो ये तो बहुत मुश्किल है, पता नहीं कब तक हो पाएगा कहने की बजाय कहें सर ये काम मुश्किल ज़रूर है, मगर हो जाएगा डोन्ट वरी. डर से दूर रहने पर ही आप किसी काम को अपना सौ फीसदी दे पाएंगे और निश्‍चय ही पूरे मन व लगन से किया गया काम सफ़ल होगा. इसके विपरित यदि आप काम शुरु करने से पहले ही डरकर ये कहें कि अरे ये कैसे होगा, तो आप उस काम में कभी क़ामयाब नहीं हो पाएंगे यानी डर आपको असफल बना देगा. स्टीव जॉब्स, अब्दुल कलाम और थॉमस एडिसन जैसे महान व्यक्ति यदि हालात और असफलता से डर जाते, तो शायद आज दुनिया उन्हें महान नहीं मानती, मगर इन शख़्सियतों ने विपरित परिस्थितियों के डर को अपने आत्मविश्‍वास और हिम्मत से दूर करके क़ामयाबी की बेहतरीन मिसाल पेश की. आप भी ऐसा कर सकते हैं.
डर का सकारात्मक असर डर हमेशा बुरा ही हो, ज़रूरी नहीं. कई बार डर के सकारात्मक परिणाम भी होते हैं, जैसे- बच्चों के मन में पैरेंट्स का डर रहने पर वो घर से बाहर कुछ भी ग़लत करने से डरते हैं, अनुशासन में भी रहते हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है कि ऐसा न करने पर मम्मी/पापा नाराज़ हो जाएंगे या फिर डाटेंगे.कहीं मेरी इमेज न ख़राब हो जाए, इस डर से यदि कोई व्यक्ति हमेशा समय पर काम पूरा करता है और हर जगह सही व़क्त पर पहुंचता है, तो ऐसा डर अच्छा है.

कंचन सिंह 

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